वर्णाश्रम व्यवस्था में सबकी जीविका जन्म से सुरक्षित: शंकराचार्य
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भुवन वर्मा बिलासपुर 29 सितंबर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठ में चार दिवसीय हिन्दू राष्ट्र संघ अधिवेशन के अंतिम दिवस को सतीश सिंह ,सीमा शर्मा जर्मनी , अमिताभ मित्तल शिकागो , मोहन गुप्त उज्जैन , पं. सतीश शर्मा लंदन , प्रकाश सिंह अमेरिका , अभय सिंह रूस ,रमेश भारद्वाज डेनमार्क , कृष्णा बंसल अमेरिका , मेजर जनरल सूर्य प्रसाद उपाध्याय लंदन , आदित्य सत्संगी अमेरिका , श्रीमती उषा रूपनारायण द. अफ्रीका , ओमप्रकाश शुक्ल थाइलैंड , विश्वनाथ गौतम नेपाल , सुशील शराब थाइलैंड ने उपस्थिति के साथ अपने भाव व्यक्त किये। इस अवसर पर पुरी शंकराचार्य जी के कृपापात्र शिष्य पी०सी० झा ने जानकारी दी कि विदेशों के लगभग 100 प्रतिनिधियों ने अधिवेशन में भाग लिया तथा समयाभाव के कारण बहुत से प्रतिनिधियों को समय नहीं मिल पाया , इसलिये पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने पुनः 03 अक्टूबर से उपरोक्त गोष्ठी के द्वितीय चरण आयोजन की अनुमति प्रदान की है । अधिवेशन को संबोधित करते हुये स्वामी निर्विकल्पानन्द सरस्वती जी ने कहा कि विदेशों में विपरीत धर्मावलंबियों के बीच रहकर भी सनातन धर्म के प्रति आस्थापूर्वक प्रचार प्रसार में संलग्न सज्जनों की अपने धर्म के प्रति प्रतिबद्धता भारत के रह रहे अनुयायियों के लिये अनुकरणीय है। पुरी पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाभाग ने अपने आशीर्वचन में कहा कि पूरा विश्व विकास का पक्षधर है परन्तु उसे विकास के लिये आधारबिन्दु की जानकारी नहीं है , इसलिये हर जगह विनाश ही परिलक्षित हो रहा है। सृष्टि संरचना के वेदादि शास्त्रसम्मत प्रयोजन के अनुरूप विकास के प्रकल्प क्रियान्यवयन की आवश्यकता है। महासर्ग के प्रारम्भ में सच्चिदानन्द स्वरूप सर्वेश्वर ने आकाश , पृथ्वी , पानी ,जल ,वायु सहित सृष्टि की संरचना अकृतार्थ जीवों को कृतार्थ करने के अवसर के रूप में की है। पृथ्वी को धारण करने वाले सात प्रमुख तत्त्वों की रक्षा दिव्यता के लिये आवश्यक है। हमारी प्रवृत्ति निवृत्ति मृत्यु के भय से मुक्त होकर अमरत्व को प्राप्त करना है। वर्णव्यवस्था में सबकी जीविका जन्म से सुरक्षित होने के कारण विपन्नता हो ही सकती। आर्थिक विपन्नता दूर करने के लिये प्रत्येक परिवार से एक रुपया अर्थदान तथा एक घंटा श्रमदान प्राप्तकर परस्पर सहयोग की भावना से उसी क्षेत्र विशेष को समृद्ध , संपन्न ,स्वावलंबी बनाने में उपयोग की जाना चाहिये। मैकाले द्वारा स्थापित कूटनीति को निरस्तकर वेदादि शास्त्रसम्मत नीति शिक्षा को लागू करना आवश्यक है। हमारे कुलपरंपरा के धरोहर जैसे कुलगुरु , कुलदेवता , कुलदेवी आदि की प्रतिष्ठा सनातन मानबिन्दुओं की रक्षा में आवश्यक है। अधिवेशन का संचालन हृषिकेश ब्रह्मचारी ने किया।
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