शिक्षक दिवस पर शिक्षक के अंतर्मन की व्यथा : आँसू बहाता सहायक शिक्षक सूखे करकस कण्ठ से ज्ञान की कोयल वाणी की अपेक्षा हैं बेईमानी
शिक्षक दिवस पर शिक्षक के अंतर्मन की व्यथा:आँसू बहाता सहायक शिक्षक
सूखे करकस कण्ठ से ज्ञान की कोयल वाणी की अपेक्षा हैं बेईमानी
भुवन वर्मा बिलासपुर 5 सितंबर 2020
बिलासपुर:– प्रति वर्ष की भांति आज शिक्षक दिवस हैं इस दिन देश सहित प्रदेश के नेतागण और बड़े प्रशासनिक अधिकारी देश से लेकर प्रदेश में शिक्षक दिवस का आयोजन कर शिक्षको के शान में लम्बे चौड़े भाषण देंगे कोई इन्हें भाग्य निर्माता कहेगा तो कोई राष्ट्र निर्माता कई तो इन्हें भगवान के ऊपर की संज्ञा देते हुए कविता ज्ञान भी करेंगे कहेंगे-गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताय।
किन्तु गुरु की यह महिमा मात्र कविता तक ही सीमित रह गया है वास्तव में हम इनके आत्मा में झांककर देखे तो इनका अंतरात्मा तार-तार है कारण जब अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से शिक्षक का स्वरूप एक कर्मी का हो गया ज्ञान का कण्ठ वही से सुख गया सरकार ने सोचा मुझे मेरे शासकीय एजेंडा सब के शिक्षा को चलाने के लिए मजदूर की आवश्यकता है और उसकी इसी सोच ने शिक्षक को शिक्षाकर्मी बना दिया जिसे उसके बाद के सरकारों ने भी खूब सिंचित किया और शिक्षा को मानव संसाधन विकास की बात न सोच शासकीय कार्य का क्रियान्वयन भर सोचते रहा।आज भी जब हम शिक्षाकर्मी अपने 23वें स्थापना के रूप में शिक्षक दिवस को देखते है तो हमे न तो वह सम्मान नजर आता है जो हमारे पुरखो ने सृजित किया था न वह आर्थिक संसाधन जो कभी शिक्षको के लिए राज्य का खजाना का मुहँ हमेशा खुला रहता था बल्कि आज तो हम शासकीय नीतियों के चलते अपने सम्मान पर इतरा पाते है न अपने जीवन और परिवार का तानाबाना बुन पाते है आज जब मैं एक शिक्षक के रूप में अपने चारों ओर नजरें उठाता हूँ तो कल तक ईमारत के निर्माण में काम करने वाला तिहाड़ी का मजदूर भी भवन निर्माण का ठेकेदार बन गया,ठेकेदार के ऑफिस में रियल स्टेट प्राइवेट लोमिटेड का नेम प्लेट लग गया पर अपनी उच्च शिक्षा पर इठलाता शिक्षक भले नाम से शिक्षाकर्मी से शिक्षक बन गया पर उंसकी उपेक्षा आज भी वही खड़ा है जहाँ से वह चला था कारण सरकार की चुनावी एजेंडा ने उसे शिक्षक तो बना दिया पर नियत ने आज भी उसे एलबी के दर्जे में बांध दिया कारण सिर्फ उसे आर्थिक और सामाजिक रूप से पीड़ित रखना है ऐसे में प्रदेश के पौने दो लाख शिक्षको से शिक्षा की अलख जगाने के लिए कोयल सी मधुरता की अपेक्षा करना बेईमानी ही तो है भला सूखे कण्ठ से कैसे कोयल की सुरीली सुर निकलेगा कौवे की करकस ही तो निकलेगा न।
आज शिक्षक पहले की तरह न तो सर्व सम्मानित व्यक्ति रह गया न राष्ट्र का निर्माता तभी तो आज देश और राज्य के कल्याणकारी सरकार की नजर में कर्मचारी के दर्जा तक ही सीमित रह गया। बड़ी विडंबना है जो शिक्षक 1998 से अपनी भुखमरी पर आँशु बहाता था वह आज भी बदस्तूर जारी है उसके पोछने वाला कोई नही सरकार सोच रही है कि हमने इन्हें शिक्षा विभाग में लाकर और वेतन भत्तो में इजाफा कर अपनी चुनावी घोषणा का क्रियान्वयन कर लिया पर उन्हें शिक्षको का वह अधिकार और सम्मान दिखाई नही देता जिसकी मिथ्या परिकल्प को लेकर ये आज जी रहे है।
आज 5 सितम्बर शिक्षक दिवस है आज मैं अपने शिक्षक होने पर गर्व तो कर सकता हूँ पर अपनी जरूरत को पूरा नही कर सकता क्योंकि आज मैं शासकीय कर्मचारी मात्र हूँ और मेरी जरूरत मेरे सरकार की रहमो करम पर है फिर भी मैं मेरे जनकल्याणकारी सरकार से गुजारिश करता हूँ कि राष्ट्र के प्रारंभिक नीव को मजबूत करने का दायित्व निभा रहे प्राथमिक स्तर के शिक्षक की दशा को समझे और वर्षो से उपेक्षित और शोषित सहायक शिक्षको को उनका हक व अधिकार देवे ताकि वह अपना दायित्व बुझे मन से नही स्वछंदता से निभाकर अखण्ड सम्पन्न भारत बना सके।
शिक्षक की कलम से
✍️शिव सारथी सहायक शिक्षक LB बिलासपुर
997668258