चीन की जाल में फंसे छत्तीसगढ़ के तालाब और जलाशय, नागरकोईल का उद्योग देख रहा मांग उठने की राह

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भुवन वर्मा बिलासपुर 19 अगस्त 2020

बिलासपुर- आर्थिक मोर्चे पर चीन को मात देने के प्रयासों में दोनों देशों के बीच में करार भले ही रद्द किए जा रहे हों लेकिन एक क्षेत्र ऐसा भी है जहां से उसे अभी तक बाहर नहीं किया जा सका है। यह क्षेत्र है मछली जाल के आयात और विक्रय का जहां अब भी चीन की ही तूती बोल रही है। ऐसी स्थितियों के बीच देश का घरेलू मछली जाल निर्माण क्षेत्र तेजी से नुकसान की ओर बढ़ रहा है क्योंकि सीजन सिर पर आ गया है।

भारत और चीन के बीच चल रहा सीमा विवाद हर दिन नया मोड़ ले रहा है। सीमा पर जवाब देने के चल रहे प्रयास के बीच उसे आर्थिक मोर्चे पर भी तगड़ा झटका दिया जा रहा है। दोनों देशों के बीच हुए व्यापारिक करार रद्द किए जा रहे हैं तो चाइनीज सामान का बहिष्कार भी किया जा रहा है लेकिन फिशरीज एक ऐसा क्षेत्र है जहां उसे अभी तक बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जा सका है। यह मुमकिन भी नहीं रहा क्योंकि मछली जाल के बाजार में उसका उत्पादन न केवल पहुंच चुका है बल्कि हाथों-हाथ बिक रहा है।

डबल, फिर भी डिमांड

मत्स्य आखेट पर प्रतिबंध की तारीख खत्म हो चुकी है। नदियां लबालब है। जलाशय भी छलक रहे हैं। तालाबों में डाली मछलियां निकाली जाने लगी है लिहाजा मछली जाल में भरपूर डिमांड बनी हुई है। तय आकार, जरूरी विशेषताओं में भारतीय मछली जाल पर भारी पड़ने वाली चाइनीज मछली जाल बीते साल की तुलना में लगभग दोगुनी कीमत पर मिल रही है इसके बावजूद मांग में इसे ही प्राथमिकता दी जा रही है।

मिल रहे इस कीमत पर

मछली जाल के बाजार में चाइनीज जाल को तूफान नेट के नाम से पहचाना जाता है। इसमें बने छिद्र से टकराते ही मछलियां अर्धचेतन अवस्था में पहुंच जाती है और जाल के भीतर प्रवेश कर जाती है। इसके पीछे वजह यह है कि इस जाल में हल्का करंट प्रवाहित होता है जो पानी में जाते ही सक्रिय हो जाता है। इसी करंट की चपेट में आकर मछलियों की मात्रा बढ़ती है इसलिए इसकी कीमत ज्यादा ही होती है। लेकिन सीमा विवाद के बीच आधा बोट का नेट 550 रुपए, पौन बोट का नेट 500 रुपए, 1 बोट का नेट 400 रुपए में प्रति नग की दर पर मिल रहा है जबकि बाजार मूल्य इससे आधा है।

उठा रहे अनुभव का लाभ

सीमा विवाद के बीच सुलह के रास्ते पर बारीकी से नजर रख रहे चाइनीज मछली जाल के कोलकाता स्थित स्टॉकिस्टों ने शुरू में ही यह भांप लिया था कि विवाद का असर कारोबार पर भी पड़ेगा। इसलिए उन्होंने इस बीच तेजी से आयात बढ़ाया और देश के हर क्षेत्र के लिए भरपूर स्टॉक कर लिया। सालों का अनुभव अब काम आ रहा है और पहुंचा रहा है ऐसा फायदा जिसकी उम्मीद उन्हें खुद भी नहीं थी। कम से कम दोगुनी की तो कतई नहीं थी।

हताश है नागरकोईल

तमिलनाडु का नागरकोईल देश में मछली जाल निर्माण इकाइयों के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र बेहद हताशा के दौर से गुजर रहा है। मांग तो है लेकिन चाइनीज जाल की तुलना में यह काफी कम है। लाभ तो दूर निर्माण के लिए लगाई जा चुकी रकम की वापसी तक असंभव नजर आ रही है। हताशा उस व्यवस्था से भी है जो स्वदेशी, मेक इन इंडिया और और लोकल- वोकल का नारा लगा रही है।

” प्रदेश में चीन में बने तूफान नेट की मांग हमेशा से रही है। वैसे नागरकोईल का नेट भी मांग में रहता है लेकिन अपनी कुछ विशेषताओं की वजह से चाइनीज नेट ज्यादा पसंद किया जाता है। कीमत इस बार स्टॉकिस्टों ने शुरू से बढ़ाई हुई थी इसलिए लगभग दोगुनी कीमत पर विक्रय किया जा रहा है ” – मोहन बजाज, संचालक, मेसर्स बजाज रोप सेंटर बिलासपुर।

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