बचा लो बस्तर के कल्पवृक्ष साल को : वर्षों तक बस्तर के साल स्लीपर पर ही दौड़ती रहीं देश में ट्रेनें

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भुवन वर्मा बिलासपुर 1 अगस्त 2020


जगदलपुर । साल वृक्ष को बस्तर का कल्पवृक्ष कहा जाता है। इसकी अधिकता के कारण ही इस भू-भाग को कभी साल वनों का द्वीप कहा जाता था परंतु अब बस्तर में साल वनों का क्षेत्र 850 वर्ग किमी से भी कम रह गया है जबकि यहां कुल वन क्षेत्र 4034.82 वर्ग किमी था। साल को स्थानीय लोग सरगी या सरई कहते हैं। यह डिप्टेरोकापैसी कुल का सदस्य है।इसका वानस्पतिक नाम शोरिया रोलुस्टा है।

करीब 500 वर्षों तक जीवित रहने वाला साल वृक्ष छत्तीसगढ़ का राज्य है। सालवृक्ष के संदर्भ में कहा जाता है कि साल सौ वर्षों तक खड़ा सौ वर्षों तक पड़ा और सौ वर्षों तक अड़ा रहता है। वर्षों तक बस्तर के साल स्लीपर पर ही देश में ट्रेनें दौड़ती रहीं है।


साल से इमारती लकड़ी, जलाऊ, बीज, तेल, बोड़ा नामक मशरूम, दातुन, धूप और दोना- पत्तल के लिए पत्ते प्राप्त होते हैं। कई औषधियों में साल तेल और धूप का उपयोग होता है, इसलिए यह कल्पवृक्ष की तरह पूजनीय है। इसके बावजूद इस वृक्ष की जमकर कटाई हो रही है।
जब से वन अधिकार प्रपत्र बँटने लगा है, तब से साल कटाई तेजी से हो रही है। जबकि नियम यह है कि प्राप्त वन भूमि के नीचे सिर्फ कृषि करना है। पेड़ों की कटाई नहीं करना है, अगर वृक्षों को काटा गया तो प्रपत्र धारक के खिलाफ वन सुरक्षा अधिनियम 1927 के तहत कार्यवाही की जाएगी परंतु अब तक पेड़ काटने वाले प्रपत्र धारकों के खिलाफ वान्छित कार्रवाई नहीं हो रही है। इस दिशा में राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंक रही हैं इसलिए वनभूमि को हथियाने अतिक्रामकों के हौसले बुलंद हैं। वे सैकड़ों एकड़ में खड़े साल वृक्षों की गडलिंग कर इन्हें सूखा कर बेच रहे हैं या जला कर वनभूमि में खेती कर रहे हैं।
वैसे तो वन विभाग द्वारा साल वृक्ष संवर्धन हेतु कुछ स्थानों पर सालरोपण किया गया है और प्रयोग सफल भी रहा है परंतु जिस हिसाब से बस्तर का वनप्रांत साल वनों से रिक्त होते जा रहा है उस अनुपात में साल संरक्षण और रोपण नहीं हो पा रहा है। यह बताना भी लाजमी है कि छत्तीसगढ़ का पहला साल ऑयल प्लांट बस्तर में ही था और यहां से प्राप्त तेल का उपयोग कैडबरीज चॉकलेट बनाने से लेकर विभिन्न बेकरी उद्योगों में होता रहा है। इतना ही नहीं बस्तर की साल “खली” डेनमार्क निर्यात होती रही है। डेनमार्क दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादन देश है। वहां की कुछ गायें पागल क्या हुईं, खली का निर्यात भी बंद हो गया इधर विभागीय अनियमितता के चलते कुरंदी मार्ग स्थित यह प्लांट भी बंद हो चुका है।
यह भी बताते चलें कि मार्च 2019 तक जगदलपुर वनवृत्त में 16754 व्यक्तिगत तथा 694 सामूहिक पट्टे वितरित हो चुके हैं। जिसके चलते 28 हजार 350 हेक्टेयर वनभूमि चली गई है। बस्तर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
वनोपज का सबसे बड़ा बाजार रहा है। साल तेल जापान तो इमली सात अरब देशों तक निर्यात होती थी। अत्यधिक दोहन और पेड़ कटाई के चलते वनोपज का कारोबार 50 प्रतिशत तक सिमट गया है।
इंद्रावती बचाओ समिति द्वारा विभिन्न प्रकार के फलदार पौधों का रोपण विभिन्न स्थानों पर निरंतर किया जा रहा है। इस क्रम में अब हम छत्तीसगढ़ के “राजवृक्ष” साल का रोपण भी करना चाहते हैं ताकि बस्तर के कल्पवृक्ष की महत्ता जनमानस तक पहुंचा सके और बस्तर को पुनः साल वनों का द्वीप हम बना सकें।
– हेमंत कश्यप जगदलपुर की खास रपट
01 अगस्त 2020 ———————————–
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