राजा का कार्य धर्म की रक्षा करना , धर्माचार्य बनना नही — निर्मोही अखाड़ा

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भुवन वर्मा बिलासपुर 26 जुलाई 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

अयोध्या — अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिये 05 अगस्त को होने वाले भूमिपूजन के मुहुर्त के संबंध में समर्थन विरोध के क्रम में निर्मोही अखाड़ा के राष्ट्रीय प्रवक्ता महंत सीताराम दास ने कहा कि देवशयन के पश्चात कोई शुभ मुहुर्त नहीं होता है । वहीं श्रीराम मंदिर आंदोलन में निर्मोही अखाड़े की 500 वर्षों के संघर्ष का इतिहास है अतः भूमि पूजन का पहला अधिकार निर्मोही अखाड़ा का है। मंदिर निर्माण का कार्य शंकराचार्यों , अखाड़ों , संतों को सौंपते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी संरक्षण करें। राजा का कार्य धर्म की रक्षा करना होता है , धर्माचार्य बनना नही। इसी तरह द्वारिका एवं बद्रीकाश्रम पीठ के श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीस्वरूपानन्द सरस्वती जी का मानना है कि श्रीराम मंदिर निर्माण का अधिकार केवल रामालय ट्रस्ट को है तथा भूमिपूजन के लिये 05 अगस्त को कोई भी शुभ मुहुर्त नहीं है। वहीं श्रीगोवर्धन मठ पुरी के श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी पहले भी मंदिर मस्जिद दोनों बनने की शर्त के कारण रामालय ट्रस्ट पर हस्ताक्षर नहीं किये थे। उनका मानना है कि इन 25 वर्षों में सिर्फ इतना परिवर्तन हुआ है कि पहले अगल बगल मंदिर मस्जिद निर्माण की बात थी तो वर्तमान में मस्जिद निर्माण के लिये अयोध्या के बाहर भूमि दी जा रही है। पुरी शंकराचार्य जी का मानना है कि भारत के भविष्य की दृष्टि से भारत भूमि पर कहीं भी बावर के नाम से मस्जिद निर्माण की अनुमति नहीं मिलना चाहिये। इसका दूरगामी परिणाम यह होगा कि भारतवर्ष में हम भविष्य के लिये एक और मक्का निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।अपने नवीनतम वक्तत्व में पुरी शंकराचार्य जी ने लिखा है कि श्रीरामभद्र के मन्दिर- निर्माण के प्रकल्प का पूर्ण स्वागत है ; तथापि धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकल्प का सेकुलरकरण सर्वथा अदूरदर्शितापूर्ण अवश्य है। वहीं भूमिपूजन के लिये कटिबद्ध सत्तापक्ष की मान्यता है कि कोरोना महामारी के प्रतिबंधात्मक समय से अच्छा शुभमुहूर्त हो ही नहीं सकता क्योंकि इस समारोह में वही अधिकृत संत , महात्मा , राजनीतिज्ञ भाग ले सकते हैं जिसको प्रशासन अनुमति देगा। आध्यात्मिक आचार्य गण लौकिक पारलौकिक हितों को देखते हुये शुभ अशुभ की बात करते हैं वहीं राजनीतिज्ञ की सोच जिनके लिये सत्ताधर्म ही सर्वोपरि होता है तात्कालिक लाभ व दूरदृष्टि आगामी होने वाले चुनाव के संदर्भ में रखकर की जाती है चूंकि उनको प्रजातंत्र में आमजनता के भावनाओं पर भरोसा होता है।

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