आज से गोबर खरीदकर इतिहास रचेगी छत्तीसगढ़ सरकार : देश का अनूठा अभियान गोधन न्याय योजना

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भुवन वर्मा बिलासपुर 20 जुलाई 2020

बिलासपुर। गोधन न्याय योजना के अंतर्गत आज हरेली के पावन दिवस पर मोपका गोठान पर योजना का शुभारंभ किया गया । उक्त अवसर पर सुश्री शकुंतला साहू ,शैलेश पांडे, अटल श्रीवास्तव ,प्रमोद नायक, विजय केसरवानी सहित काफी संख्या में ग्रामीण जन उपस्थित थे ।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा महत्वाकांक्षी सुराजी गाँव योजना के तहत पशुधन के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये निर्मित गौठानों में गोवंशों के रख-रखाव, चारे-पानी की व्यवस्था के साथ ही बड़े पैमाने पर वर्मी कम्पोस्ट खाद का उत्पादन एवं आजीविका की अन्य गतिविधियों संचालित की जा रही है। इसके साथ ही आज हरेली पर्व से छत्तीसगढ़ में देश की पहली गोबर खरीदी योजना “गोधन न्याय योजना” शुरू होने जा रही है।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कृषिमंत्री रविन्द्र चौबे ने राजधानी के सिविल लाइंस स्थित मुख्यमंत्री निवास में इस योजना के प्रतीक चिन्ह (लोगो) का विमोचन किया। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि यह पूरी दुनियाँ की पहली योजना होगी जिसमें सरकार गोबर खरीदकर खाद बनायेगी और इतिहास रचेगी। उन्होंने आगे कहा कि गोबर प्रबंधन की दिशा में प्रयास करने वाली देश की पहली सरकार है और आने वाले समय में छत्तीसगढ़ सरकार गोमूत्र खरीदने पर भी विचार कर सकती है।

गोधन न्याय योजना के तहत पशुपालकों एवं किसानों से दो रूपये प्रतिकिलो की दर से गोबर की खरीदी की जायेगी। मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने ०१.५० पैसा प्रतिकिलो गोबर खरीदी का प्रस्ताव राज्य सरकार को दिया था। लेकिन कैबिनेट ने परिवहन खर्च को ध्यान में रखते हुये इसे दो रूपये करने की सहमति दी। वहीं इस योजना से प्रदेश के सभी गोठानों और पशुपालकों से गोबर खरीदकर वर्मी कम्पोस्ट (खाद) और अन्य उत्पाद तैयार किये जायेंगे। वर्मी कम्पोस्ट को आठ रूपये प्रतिकिलो की दर से बेचा जायेगा। गोबर खरीदी की इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के संबंध में राज्य शासन के कृषि विकास, किसान कल्याण और जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा सभी संभागायुक्तों, जिला कलेक्टरों, जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों, नगर निगम व पंचायत के अधिकारियों को विस्तृत दिशानिर्देश जारी कर दिये गये हैं। इस योजना के तहत सभी जिलों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के लिये मंत्रियों , संसदीय सचिवों और प्राधिकरणों के अध्यक्षों को जिम्मेदारी सौंपी गयी है। गोबर के क्रय और भुगतान की प्रक्रिया, वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिये स्व सहायता समूहों के प्रशिक्षण, वर्मी कम्पोस्ट टांका निर्माण, गौठानों में गोबर प्रसंस्करण, वर्मी कम्पोस्ट की पैकेजिंग और वर्मी कम्पोस्ट के विपणन के संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं।

योजना के संचालन एवं क्रियान्वयन का सम्पूर्ण दायित्व जिला कलेक्टरों का होगा। गोबर बेचने वाले हर व्यक्ति को गोबर कार्ड दिया जायेगा , जिसकी एक प्रति क्रेता के पास और दूसरी प्रति गोठान समिति के पास रखी जायेगी , इस कार्ड पर गोबर संग्रहणकर्ता के हस्ताक्षर किये जायेंगे। इस योजना के तहत तैयार होने वाली वर्मी कंपोस्ट खाद की बिक्री सहकारी समिति के माध्यम से होगी। इस योजना से एक ओर जहाँ पशुपालको को आर्थिक लाभ होगा वहीं दूसरी ओर इस योजना के क्रियान्वयन से खेती की दशा सुधरेगी , जैविक कृषि को बढ़ावा मिलेगा , ग्रामीण व शहरी स्तर पर रोजगार के नये अवसर मिलेंगे एवं गौपालन , गौ सुरक्षा को प्रोत्साहन भी मिलेगा, गोवंशों के साथ साथ कृषकों की दशा में भी सुधार होगा , आमजनताओं को हानिकारक रसायन से मुक्त अनाज मिलेगा। कुल मिलाकर गोबर खरीदने का निर्णय छत्तीसगढ़ राज्य के लिये कल्याणकारी होगा। गौठान समितियांँ उक्त सभी कार्यों को बेहतर तरीके से संचालित कर सकें, इसको ध्यान में रखते हुये उन्हें प्रदेश सरकार द्वारा आर्थिक सहायता दी जा रही है।

गौठान समितियों को हर महीने 10 हजार रूपये की सहायता दिये जाने का प्रावधान पहले से ही शासन द्वारा किया गया है। गोठानों के सुव्यवस्थित संचालन के लिये 10 करोड़ 80 हजार रूपये की मंजूरी मिली है। मुख्यमंत्री के निर्देश के परिपालन में वित्त विभाग ने यह राशि प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा सचिव नगरीय प्रशासन विभाग को जारी कर दिया है। राज्य के सभी गोठानों को ४०-४० हजार रूपये के मान से यह राशि स्वीकृत की गयी है। गौठान समितियों को आर्थिक सहायता दिये जाने का उद्देश्य गौठान की व्यवस्था को बेहतर और सुदृढ़ बनाना है। इसके अलावा आज प्रदेश भर के गौठानों में वृहद वृक्षारोपण के तहत लगभग तीन लाख आम, बरगद, पीपल, नीम, इमली, आंँवला, हर्रा, बहेड़ा तथा चिरौंजी आदि प्रजाति के फलदार तथा लघुवनोपज आधारित पौधों का रोपण भी किया जायेगा।

इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये वन विभाग को आवश्यक निर्देश दिये गये हैं और वन विभाग द्वारा इसकी सभी तैयारियाँ पूरी की जा चुकी है। गौठानों में फलदार तथा लघुवनोपज पौधों का रोपण होने से जहां पर्यावरण सुधार को बल मिलेगा, वहीं गौठान छायादार होंगे और वहांँ मवेशियों को रखने में भी सुविधा होगी। इसके लिये गौठानों में और अलग से शेड बनाने की भी जरूरत नहीं होगी। साथ ही गौठानों में फलदार और लघुवनोपज पर आधारित पौधों के रोपण होने से आगे लोगों को इन वृक्षों के उपज का भी भरपूर लाभ मिलेगा। गौठानों में कार्यरत् स्व-सहायता समूहों अथवा गौठान समितियों के महिलाओं तथा पुरूषों को विभिन्न व्यवसायिक गतिविधियों के संचालन के साथ ही लघुवनोपजों का औषधि निर्माण सहित प्रसंस्करण आदि कार्य का बेहतर अवसर मिलेगा। इस तरह राज्य में शासन द्वारा चलाये जा रहे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ‘नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी‘ सहित ‘गोधन न्याय योजना‘ आदि के सफल संचालन में गौठानों का वृक्षारोपण कार्यक्रम भी महत्वपूर्ण साबित होगा।

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

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