करवा चौथ व्रत अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए

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बिलासपुर।पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि करवा चौथ हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो मुख्य रूप से पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए रखा जाता है। यह पर्व पति-पत्नी के अटूट प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक है।करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ निर्जला (बिना पानी के) व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलती हैं।

अखंड सौभाग्य: यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए उनके सौभाग्य को बनाए रखने का सबसे बड़ा माध्यम माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

पति की दीर्घायु: महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सभी कष्टों से रक्षा के लिए यह कठिन व्रत रखती हैं।

पार्वती जी की प्रेरणा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, सबसे पहले देवी पार्वती ने भगवान शिव के लिए यह व्रत रखा था, जिससे उन्हें अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिला।

करवा चौथ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं,जिनमें से साहूकार की बेटी वीरवती की कथा सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
साहूकार की बेटी वीरवती की कथा प्राचीन समय में, एक साहूकार की वीरवती नाम की एक अकेली बेटी थी, जिसके सात भाई थे। वीरवती अपनी भाभियों के साथ कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखती थी।

भाईयों का छल: वीरवती ने दिन भर निर्जला व्रत रखा, जिससे वह भूख और प्यास से व्याकुल हो गई। उसके सात भाई अपनी प्यारी बहन का कष्ट नहीं देख पाए। उन्होंने छल से वीरवती का व्रत तुड़वाने का निश्चय किया।

झूठा चंद्रोदय: भाई शहर से बाहर एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गए और आग जलाकर नकली चंद्रोदय का दृश्य बना दिया। फिर उन्होंने वीरवती से कहा कि चंद्रमा निकल आया है, वह अर्घ्य देकर भोजन कर ले।

व्रत भंग और विपत्ति: वीरवती ने अपने भाईयों की बात मान ली और चंद्रमा को अर्घ्य दिए बिना ही व्रत खोल लिया। जैसे ही उसने भोजन का पहला टुकड़ा खाया, उसे अपने ससुराल से खबर मिली कि उसके पति अत्यंत बीमार हो गए हैं। वीरवती तुरंत अपने पति से मिलने गई।

पति का कष्ट: वीरवती ने देखा कि उसके पति के शरीर में सूई जैसी घास उग आई है, जिससे वे बहुत कष्ट में हैं। वीरवती को समझते देर नहीं लगी कि उसका व्रत गलत समय पर टूटने के कारण ही यह विपत्ति आई है।

करवा माता का आशीर्वाद: वीरवती ने अपने पति के पास बैठकर पूरे एक वर्ष तक उसकी देखभाल की और उसके शरीर से उगने वाली सूईनुमा घास को इकट्ठा करती रही। अगले वर्ष जब दोबारा करवा चौथ आया, तो वीरवती ने पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से व्रत रखा। इस बार उसने सच्चे चंद्रमा के निकलने पर अर्घ्य दिया और करवा माता से प्रार्थना की।

अखंड सौभाग्य की प्राप्ति: वीरवती की अटूट आस्था और सतीत्व से प्रसन्न होकर करवा माता ने उसके पति को पुनः जीवन प्रदान किया। इस प्रकार, वीरवती को अपना अखंड सौभाग्य वापस मिल गया। तभी से, यह माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत पूरी श्रद्धा और नियम से रखने पर विवाहित महिलाओं को दीर्घायु और सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।

अन्य पौराणिक कथाएं
महाभारत में द्रौपदी: एक अन्य कथा के अनुसार, जब पांडव वनवास में थे और अर्जुन तपस्या के लिए नीलगिरि पर्वत पर गए थे, तब द्रौपदी ने अपने पतियों की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण के कहने पर यह व्रत रखा था।
देवताओं की विजय: यह भी माना जाता है कि जब देवता और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था, तब देवताओं की पत्नियों ने ब्रह्मा जी के कहने पर करवा चौथ का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से देवताओं को युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी।यह पर्व भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते और नारी के अटूट संकल्प की महानता को दर्शाता है।

भवदीय
ब्रह्मचारी मधुसूदन पाण्डेय
श्री पीतांबरा पीठ त्रिदेव मंदिर सुभाष चौक सरकंडा बिलासपुर छत्तीसगढ़
मो. – 7354678899

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