एनएमडीसी मुख्यालय को रायपुर लाने को मांग :छत्तीसगढ़ का लोहा, तेलंगाना की चांदी… लेकिन आखिर कब तक .?
जगदलपुर।प्रचुर खनिज भंडार युक्त छत्तीसगढ़ राज्य के बैलाडीला क्षेत्र में लौह अयस्क के दोहन में एनएमडीसी लिमिटेड लगभग विगत सात दशकों से संलग्न है। एनएमडीसी लिमिटेड की अधिकांश लाभकारी इकाइयां छत्तीसगढ़ में संचालित हैं। यह कंपनी अपनी लगभग 80% लाभ छत्तीसगढ़ से अर्जित करती है। बावजूद इसके एनएमडीसी लिमिटेड का मुख्यालय हैदराबाद में होना किसी भी सूरत में तर्कसंगत नहीं जान पड़ता है। अपनी स्थापना से ही एनएमडीसी का रवैया छत्तीसगढ़ प्रदेश, यहां के मूल निवासियों, मूल निवासी कर्मचारियों के प्रति सौतेला रहा है।
नौकरियों, भर्तियों में स्थानीय लोगों की घोर उपेक्षा
कार्मिक विभाग के एक उच्च पदाधिकारी की उपस्थिति में विगत महीनों में कई चरणों में एनएमडीसी के विभिन्न इकाईयों के लिए छत्तीसगढ़ की राजधानी की छाती में चढ़कर स्थानीय लोगों की घोर उपेक्षा करते हुए अधिकारियों की भर्ती प्रक्रिया निर्विघ्न संपन्न हुई। यहां के मूल निवासियों ने हमेशा की भांति, उदारता, सहिष्णुता और त्याग का परिचय देने के कारण छत्तीसगढ़ की आत्मा को नुकसान पहुंचाने वाले एक और फौज को खड़ी करने की एक और कोशिश हुई है। बैलाडीला क्षेत्र के निम्न वर्ग की श्रमिक पदों की भर्ती के लिए 22.05.25 को मुख्यालय द्वारा विज्ञापन जारी किया गया था। इनके पक्षपातपूर्ण रवैये के मद्देनजर आदिवासियों द्वारा विगत 26 से 29 जून 2025 तक किरंदुल एवं बचेली में जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया गया था। वैसे भर्ती प्रक्रिया के परिणाम और एनएमडीसी के दुस्साहस पर मूल निवासियों, प्रशासन सहित छग शासन की पैनी नजर है। वहीं दूसरी ओर प्रबंधन की औकात नहीं है कि कर्नाटक या तेलंगाना में स्थानीय लोगों की उपेक्षा कर भर्ती प्रक्रिया संपन्न करा सके। एनएमडीसी के सर्वोच्च प्रबंधन की नजरों में छत्तीसगढ़ की जनता, शासन और प्रशासन की कीमत तुच्छ है।
छत्तीसगढ़ के साथ एनएमडीसी का सौतेला रवैया कब रुकेगा?
प्रदेश सरकार के अनुरोध के बावजूद बलोदा बेलमुंडी (महासमुंद) डायमंड ब्लॉक सहित छत्तीसगढ़ स्थित लिथियम ब्लॉक, क्रिटिकल मिनरल ब्लॉक को पाने के लिए पूरे मनोयोग से प्रयास का अभाव एवम उदासीनता साफ साफ दिखाई पड़ती है। वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया सहित विदेशों में छत्तीसगढ़ से अर्जित लाभ को पानी की तरह बहाया जा रहा है। हर साल मैराथन के नाम पर, एयरपोर्ट में विज्ञापन के नाम पर करोड़ों रुपए हैदराबाद में लुटाया जा रहा है। देश और विदेश में जगह-जगह पर माइनिंग एग्जिबिशन में एनएमडीसी बतौर प्रमुख प्रायोजक भाग लेता है, लेकिन छत्तीसगढ़ की बारी आती है, तो कदम खींच लेता है । विगत कुछ महीनों में एनएमडीसी की कार्यपद्धति, भर्ती प्रक्रिया, पदोन्नति प्रक्रिया, स्थानांतरण प्रक्रिया, सामग्री क्रय संबंधी डीओपी में अनियमितता, विदेश विदेश यात्राएं संदेह के दायरे में है, विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगे हैं, जो केंद्रीय एजेंसियों के राडार पर हैं, ऐसा माना जा रहा है ।
मुख्यालय छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं हो सकता ?
कुछ लोग रायपुर में मुख्यालय स्थांनांतरण के विरुद्ध कुतर्क पेश करते हैं कि यहां तुलनात्मक रूप से संचार, आवागमन की सुविधा कम है। ऐसा कुतर्क पेश कर इस आदिवासी बहुल, खनिज बहुल राज्य छत्तीसगढ़ के नैसर्गिक दावे को कमजोर किया जा रहा है। इस लिहाज से आईबीएम का मुख्यालय नागपुर में, डीजीएमएस का मुख्यालय धनबाद में, सीएमपीडीआई का मुख्यालय रांची में, नाल्को का मुख्यालय भुवनेश्वर में बिलकुल नहीं हो सकता। आज से पांच दशक पूर्व क्या हैदराबाद, दिल्ली से बड़ा हो गया था, आज के रायपुर, धनबाद, नागपुर, भुवनेश्वर से तो बड़ा नहीं था?
मुख्यालय का हैदराबाद में होना – प्रदेश की सहिष्णुता के साथ मजाक
यहाँ के लोगों को नौकरी, रोजगार, सुविधाओं से सदैव वंचित रखकर तेलंगाना में एनएमडीसी की लाभकारी इकाई नहीं होने के बावजूद वहां विशेष झुकाव क्यों? विगत पांच दशकों से यहां के मूल निवासी एनएमडीसी के मुख्यालय को रायपुर स्थानांतरण की नियमित रूप से मांग करते रहे हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश की विधानसभा में सर्व सम्मति से एनएमडीसी के मुख्यालय को रायपुर स्थानांतरण का प्रस्ताव 1998 में सर्व सम्मति से पारित कर केंद्र सरकार को अनुशंसा प्रेषित की जा चुकी है। केंद्र सरकार से मांग है कि आगामी विधानसभा सत्र प्रदेश सरकार से मांग है कि आगामी विधानसभा सत्र में पुनः प्रस्ताव पारित कर केंद्र को अनुशंसा भेजना चाहिये। छत्तीसगढ़ की सहिष्णुता को कमजोरी आंकने की भूल कतई न करे। प्रदेश की सहिष्णुता की ढाल में यह कंपनी अतार्किक ढंग से मुख्यालय को हैदराबाद में रखकर कुंडली मारकर बैठा हुआ है। पूर्व में भी इस कंपनी का मुख्यालय भारत के कई स्थानों से स्थानांतरित से होते हुए बेवजह वर्तमान में तेलंगाना में स्थित है।
मेहनत करे मुर्गा, अंडा खाये फकीर … लेकिन आखिर कब तक ?
छत्तीसगढ़ से लाभार्जन कर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए एनएमडीसी हैदराबाद के समीप पटांचेरू (तेलंगाना) में प्रस्तावित मुख्यालय भवन, ब्लेंडिंग यार्ड वायजाग (आंध्रप्रदेश) के निर्माण, वर्तमान मुख्यालय हैदराबाद (तेलंगाना) के लर्निंग सेंटर और एलीवेटर, आरएंडडी पटांचेरू (तेलंगाना) में पुनर्निर्माण, मृतप्राय स्पंज आयरन प्लांट पलोंचा (तेलंगाना) में पुनर्निर्माण, मृतप्राय सिलिका सैंड प्रोजेक्ट लालापुर में पुनर्निर्माण, रीजनल ऑफिस कोलकाता, वायजाग और बेंगलुरु के निर्माण, दुबई, सिडनी और अहमदाबाद में नये ऑफिस खोलने पर मनमाने तरीके से लाखो करोड़ रुपये खर्च कर रही है। ये सब कार्य करने के पीछे एनएमडीसी की कुत्सित मंशा यह रहती है कि किसी भी तरह छत्तीसगढ़ में मुख्यालय स्थानांतरण के दावे को कमजोर किया जा सके।
संसद के जारी मानसून सत्र में मुख्यालय स्थानांतरण पर गहन चर्चा की मांग
छत्तीसगढ़ (पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश) मूल निवासी संघर्ष समिति के संयोजक श्री एस.एल.वर्मा ने आक्रोश व्यक्त करते हुए बताया कि पांच दशक से एनएमडीसी छत्तीसगढ़ की छाती पर मूँग दल रहा है । मात्र 10 करोड़ रुपये सालाना खर्च से चल रहे रायपुर ऑफिस में तालाबंदी करके छत्तीसगढ़ के पैसे से ही ये सब वर्णित खर्च करने के लिये एनएमडीसी की घटिया नमकहरामी मानसिकता को आसानी से समझा जा सकता है। एनएमडीसी मुख्यालय को रायपुर स्थानांतरण की मांग के मद्देनज़र 16.01.2008 को रायपुर में ग्लोबल एक्सप्लोरेशन सेंटर (जीईसी) की स्थापना को मंजूरी दी थी । इस कार्यालय के प्रचालन का सालाना खर्च 10 करोड़ रुपये मात्र भी नहीं है।
विदित हो कि 3 मई 2025 को लिये गये निर्णयानुसार एनएमडीसी ग्लोबल एक्सप्लोरेशन सेंटर (जीईसी) कार्यालय की तालाबंदी और हैदराबाद के समीप पटांचेरू (तेलंगाना) में मुख्यालय लगभग 1000 करोड़ रुपये की लागत से भवन बनाकर स्थानांतरित करने की तैयारी चल रही है। जबकि नया रायपुर (छत्तीसगढ़) में एनएमडीसी को आबंटित भू-भाग लंबे समय से खाली बंजर पड़ा हुआ है।
इस विषय पर तेलंगाना सरकार को भी छत्तीसगढ़ और केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए। विदित हो कि विगत दिनों छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान राज्य व्यापी विभिन्न संगठनों द्वारा उठाए गए एनएमडीसी के मुख्यालय को रायपुर छत्तीसगढ़ स्थानांतरित करने संबंधी चिर प्रतीक्षित मांग को इस्पात मंत्री श्री एच.डी.कुमारस्वामी द्वारा पूरा करने का आश्वासन दिया गया था। इस मुद्दे पर इस्पात मंत्री जी से माननीय मुख्यमंत्री जी, माननीय सांसद तोखन साहू जी एवं श्रम संगठनों की लगातार मुलाकातों का दौर चल रहा है।
श्री एस.एल.वर्मा ने संसद के जारी मानसून सत्र में मुख्यालय स्थानांतरण पर गहन चर्चा की मांग की । धान और खनिज के कटोरे के दोहन के बाद छत्तीसगढ़ महतारी की पीड़ा को समझते हुए, जनाकांक्षाओं के अनुरूप चिर प्रतीक्षित मांग (केवल और केवल) मुख्यालय रायपुर स्थानातरण के द्वारा संभव है, जबकि अब राज्य और केंद्र दोनों जगहों पर डबल इंजिन की सरकार है।
About The Author




