डॉ. मनमोहन सिंह एक सरल और समर्पित देशभक्त थे जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में दिया अपार योगदान

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रायपुर/ डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति के एक ऐसे शख्सियत थे, जिनकी सादगी और विद्वता का प्रभाव न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा। भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने 2004 से 2014 तक दो कार्यकालों तक भारत का नेतृत्व किया। उनके समय में भारत ने आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण प्रगति की और उनकी सफलता की कहानी संघर्ष, ज्ञान, और कर्तव्यनिष्ठा का अद्भुत उदाहरण बनी। डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गाह गांव (अब के पाकिस्तान में) हुआ। उनका परिवार साधारण था, और शिक्षा के प्रति उनके पिता का गहरा आग्रह था। भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय उनका परिवार भारत आकर अमृतसर में बस गया।
डॉ. सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर के खालसा हाई स्कूल से पूरी की। पढ़ाई में वे बचपन से ही असाधारण थे। उन्होंने 1952 में पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद 1954 में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की जहां उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट (पीएचडी) की उपाधि हासिल की। उनकी असाधारण प्रतिभा ने उन्हें अकादमिक क्षेत्र में एक स्थान दिलाया और इसके बाद उनकी विशेषज्ञता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया और भारतीय सरकार में आर्थिक मामलों के सलाहकार के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1980 के दशक में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए कई अहम कदम उठाए।
डॉ. मनमोहन सिंह का छत्तीसगढ़ दौरा और उनके किए गए महत्वपूर्ण कार्य
प्रधानमंत्री बनने के बाद 2013 में उनका छत्तीसगढ़ दौरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि इस दौरान उन्होंने राज्य के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी। मनमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए कृषि क्षेत्र में कई योजनाएं शुरू की, जिनमें किफायती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराना और कृषि उपकरणों का वितरण शामिल था। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ में विद्युत उत्पादन बढ़ाने के लिए कई नई परियोजनाओं की घोषणा की, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद मिली। राज्य में सड़क और परिवहन के विकास के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण और ग्रामीण सड़कों के सुधार के लिए भी योजनाएं बनाई गई थीं। उनकी सरकार ने छत्तीसगढ़ में राज्यों के अधिकार बढ़ाने की दिशा में कई कदम उठाए, ताकि राज्य अपनी विकास योजनाओं को स्वतंत्रता से लागू कर सके और संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर सके। इसके अलावा, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों को प्राथमिकता दी गई, जिससे इन क्षेत्रों के लोग रोजगार और बेहतर जीवन स्तर की ओर अग्रसर हो सके। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और बुनियादी ढांचे में सुधार की योजनाएं बनाई गई । छत्तीसगढ़ के औद्योगिक विकास में भी डॉ. सिंह का योगदान महत्वपूर्ण रहा। खासकर खनन और इस्पात उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए कई औद्योगिक परियोजनाएं शुरू किया था
डॉ. मनोहन सिंह की राजनीतिक शुरुआत के साथ आर्थिक संकट भी दूर हुआ
डॉ. सिंह ने 1991 में राजनीति में कदम रखा, जब उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने वित्त मंत्री नियुक्त किया। भारत उस समय एक गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, विदेशी मुद्रा भंडार न्यूनतम स्तर पर था, और देश दिवालिया होने की कगार पर था। डॉ. सिंह ने साहसिक आर्थिक सुधारों की शुरुआत की जिसमें उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का समावेश था। इन नीतियों ने भारत को आर्थिक संकट से बाहर निकाला और देश को तेज़ी से विकास के पथ पर ले गए। उनके इन सुधारों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व मंच पर एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी। 2004 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना। उनकी ईमानदारी, सरलता और गहन आर्थिक ज्ञान ने उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बना दिया। उन्होंने 2009 में दूसरा कार्यकाल भी पूरा किया। उनके कार्यकाल में भारत ने कई क्षेत्रों में प्रगति की, जैसे कि आर्थिक क्षेत्र में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ।
डॉ. मनमोहन सिंह की विदेश नीति और वैश्विक संबंधों में रहा अहम भूमिका
डॉ. सिंह ने विदेश नीति के क्षेत्र में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक रहा। उनके कार्यकाल में विदेश दौरों ने भारत की वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. सिंह ने वाशिंगटन डीसी और अन्य अमेरिकी शहरों का दौरा किया, जिसका उद्देश्य भारत को नागरिक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग प्राप्त करना था। इसके अलावा, G20 सम्मेलनों में भाग लेकर उन्होंने वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भारत की भूमिका को मजबूत किया। उन्होंने चीन, जापान, और अफ्रीकी देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए दौरे किए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए वैश्विक समस्याओं पर भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनके द्वारा रूस और यूरोपीय संघ के देशों के साथ व्यापार और रक्षा समझौतों को मजबूत किया गया।
शिक्षा और अनुसंधान में डॉ. सिंह का ऐतिहासिक योगदान रहा
डॉ. सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, और शोध के क्षेत्रों में उनके नेतृत्व में कई ऐतिहासिक पहल की गईं। उन्होंने उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई नए संस्थान स्थापित किए, जिनमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM ), और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) शामिल हैं। उनके समय में 16 नए केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए और राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की स्थापना की गई, जिसने शिक्षा, शोध, और ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में सुधार की सिफारिशें दीं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में डॉ. सिंह का रहा महत्वपूर्ण योगदान
स्वास्थ्य क्षेत्र में डॉ. सिंह ने 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ( NRHM) की शुरुआत की जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना था। मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए यह मिशन प्रभावी साबित हुआ। इसके अलावा, उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में छह नए एम्स संस्थानों की स्थापना की और जनऔषधि अभियान की शुरुआत की जिससे सस्ती दवाएं गरीबों तक पहुंच सकी । अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए डॉ. सिंह ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में नए प्रोजेक्ट शुरू किए। इस दौरान, भारत ने इसरो के माध्यम से चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशनों को सफलतापूर्वक पूरा किया। उनके कार्यकाल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसे सामाजिक और आर्थिक सुधार भी लागू किए गए, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुनिश्चित किया। शिक्षा का अधिकार अधिनियम और मिड-डे मील योजना का विस्तार किया गया, जिससे बच्चों के पोषण स्तर में सुधार हुआ और उन्हें मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार मिला।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह लंबे समय से अस्वस्थ थे और उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, जिसके बाद उन्हें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भर्ती कराया गया था। उन्हें रात 8:06 बजे एम्स के मेडिकल इमरजेंसी में लाया गया। तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। रात 9:51 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।  डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन और कार्य ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरी छाप छोड़ी है। उनका योगदान देश की स्थायी प्रगति में हमेशा याद किया जाएगा।

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