देश भर में मनाया गया पुरी शंकराचार्य का प्राकट्योत्सव
भुवन वर्मा बिलासपुर 19 जून 2020

जगन्नाथपुरी — सनातन धर्म ध्वजा के परम संवाहक विश्व के महान विभूति अनन्तश्री विभूषित गोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का ७७ वाँ प्राकट्य महोत्सव आज देश भर में राष्ट्रोत्कर्ष दिवस के रूप में मंगलमय वातावरण में उत्सवपूर्वक मनाया गया। कोरोना वायरस संकट की परिस्थिति में विशाल धर्मसभा सम्मेलन आदि कार्यक्रम संभव नहीं होने पर सर्वहित कल्याण की भावना से श्री रुद्राभिषेक , शिवपूजन आराधना, सुंदरकांड पाठ, हनुमान चालीसा पाठ आदि के साथ गुरुदेव भगवान के द्वारा प्रदत संदेश के अनुसार पाठ ,जप , वृक्षारोपण आदि के साथ विभिन्न सेवा प्रकल्प के माध्यम से कई कार्यक्रम सादगी पूर्ण वातावरण में अपने अपने घरों में सोशल डिस्टेंशिंग के नियमो का पालन करते हुये मनाया गया तथा सब मिलकर दिव्य आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर कोरोना वायरस संकट निवारण हेतु प्रार्थना प्रस्तुत किये।
पुरी शंकराचार्य का जीवन परिचय
गोवर्धनमठ पुरी के वर्तमान श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य अनन्तश्री विभूषित स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग इस मठ की शङ्कराचार्य परम्परा के १४५ वें स्थान पर प्रतिष्ठित हैं। बिहार राज्य के मिथिलांचल स्थित तत्कालीन दरभङ्गा (वर्तमानमें मधुवनी) जिलान्तर्गत हरिपुर बक्सीटोल नामक ग्राममें आषाढ कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र पाम सम्वत् २००० तदनुसार 30 जून 1943 ई.को श्रोत्रियकुलभूषण दरभङ्गा नरेश के राजपण्डित श्रीलालवंशी झा जी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती गीता देवी को एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ जिनका नाम नीलाम्बर झा रखा गया । वही नीलाम्बर झा वर्तमान पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती महाभागके नामसे ख्यापित हैं। बालक नीलाम्बर में बाल्यकालसे ही अनेक विलक्षणतायें दिखने लगीं । सोलह वर्षकी अवस्थामें आप संग्रहणी रोग से ग्रसित हो गये , रोग निरन्तर बढ़ता गया । जीवनसे निराश होकर एक दिन वे अपने पिता के समाधिस्थल पर गये और विधिवत् दण्डवत कर वहाँ की मिट्टी का एक कण मुँह में डाला और पिताजी से प्रार्थना की कि या तो यह शरीर इसी समय स्वस्थ हो जाये या शव हो जाये। अचानक एक चमत्कार हुआ , किसी अदृश्य दिव्यशक्ति ने आपको वेगपूर्वक उठा दिया । तत्काल आपका ध्यान नभोमंडल की ओर गया जहाँ बड़ा ही विचित्र दृश्य दिखलायी पड़ा । नभोमण्डल में पृथ्वी से लगभग 10 किलोमीटर की ऊँचाई पर वृत्ताकार पद्मासन पर बैठे, श्वेतवस्त्र और पगड़ी धारण किये दस हजार पितरों ने आपको दर्शन दिया और आपको उन सबों की अन्तर्निहित वाणी सुनाई दी कि संग्रहणी रोग दूर हो गया, अब घर लौट जाओ और निर्भय विचरण करो।आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गांँव में हुई । उच्चविद्यालय की शिक्षा अपने अग्रज श्री श्रीदेव झा के संरक्षण में दिल्लीके तिबिया कॉलेजमें प्रारम्भ की। वहाँ आप कई सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं से भी जुड़े। दसवीं कक्षा विज्ञान के छात्र थे तब जिस भवन में आपका निवास था उसके पास में ही दशहरे के अवसर पर रामलीला का मंचन आयोजित था। एक रात्रि आप भवनकी छत पर टहलते हुये रामलीला के मंचन का संवाद सुन रहे थे । प्रभु श्रीराम के वनवास जाने की लीला का प्रसङ्ग सूनते ही आपके मन में यह प्रबल भाव उत्पन्न हुआ कि जब मेरे प्रभु भगवान श्रीरामका वनवास हो गया तब मेरे यहाँ बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। मन में प्रबल वैराग्य उत्पन्न हुआ और आप चुपचाप पैदल ही काशी के लिये प्रस्थान कर दिये। यात्रा के दौरान आप नैमिषारण्य पहुँचे जहाँ परमपूज्य दंडीस्वामी श्रीनारदानन्द सरस्वती जी महाराज के सम्पर्क में आने का संयोग सधा । पूज्य स्वामीजीने आपका नाम ध्रुवचैतन्य रखा । कालान्तर में आप सर्वभूतहृदय यतिचक्रचूड़ामणि धर्मसम्राट स्वामी करपात्रीजी महाभागके सम्पर्क में आये और उनके द्वारा चलाये गये गोरक्षा अभियानमें भी आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उस अभियानके अन्तर्गत 07 नवम्बर 1966 को दिल्लीमें आयोजित विशाल सम्मेलन में भी आप शामिल हुये जिसमें पुलिस द्वारा छोड़े गये अश्रुगैसके कारण आप मूर्छित भी हो गये थे। तत्पश्चात 09 नवम्बर को आपको बन्दी वना कर 52 दिनों तक दिल्ली के तिहाड़ जेलमें रखा गया । वैशाख कृष्ण एकादशी, गुरुवार, पामसंवत् 2031 तदनुसार 18 अप्रेल 1974को हरिद्वारमें पूज्यपाद धर्मसम्राट स्वामी हरिहरानन्द सरस्वती जी महाराज (धर्मसम्राट् करपात्रीजी महाराज)के चिन्मय करकमलों से आपका सन्न्यास सम्पन्न हुआ । सन्यास के बाद उन्होंने आपका नाम निश्चलानन्द सरस्वती रखा और अब आप इसी नाम से पूरे विश्वमें जाने जाते हैं। पुरी मठके तत्कालीन पूर्वाचार्य पूज्यपाद श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निरञ्जनदेव तीर्थजी महाराजने माघ शुक्ल षष्ठी तदनुसार 09 फरवरी 1992 को अपने करकमलोंसे आपको पुरीपीठ के १४५ वें श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य के पद पर अभिषिक्त किया । इस महिमामय पद पर प्रतिष्ठित होनेके बाद आपने पद का उपभोक्ता न बनकर पद के उत्तरदायित्वका सम्यक् निर्वहन करने का निर्णय लिया । सनातन धर्म तथा उसके प्रामाणिक मानबिन्दुओंकी रक्षा, राष्ट्रकी अखण्डता तथा विश्वकल्याणके लिये संघर्ष करनेका व्रत लिया। धर्मसम्राट स्वामी श्रीकरपात्री महाराजके कृपापात्र शिष्य एवं पुरीमठ के पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज द्वारा श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य पदपर अभिषिक्त स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराजने विश्वकल्याण एवं राष्ट्रप्रेमकी भावनासे भावित होकर व्यासपीठ एवं शासनतत्रका शोधन करने तथा कालान्तरसे विकृत एवं विलुप्त हो चुके ज्ञान-विज्ञानको परिमार्जित करने एवं पूर्ण शुद्धताके साथ पुन उद्भासित करनेका अपना लक्ष्य बनाया। अपने लक्ष्यकी सिद्धिके लिये महाराज श्रीने ‘पीठपरिषद’के अन्तर्गत ‘आदित्यवाहिनी’, ‘आनन्दवाहिनी’, ‘हिन्दुराष्ट्रसंघ’, ‘राष्ट्रोत्कर्ष अभियान’, ‘सनातन सन्तसमिति’ जैसे संस्थाओंकी भी स्थापना की जिसका उद्देश्य है अन्यों के हित का ध्यान रखते हुये हिन्दुओंके अस्तित्व और आदर्श की रक्षा, तथा देशकी सुरक्षा और अखण्डता। आपने समस्त प्रामाणिक एवं प्रमुख सनातन धर्माचार्योंको एक मंच पर लाने का भी अभियान चलाया। श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राममन्दिर निर्माणके लिये राष्ट्रीय स्तरपर जो अभियान चला उसमें महाराजश्रीकी प्रमुख भूमिका रही । अयोध्यामें श्रीरामजन्मभूमि स्थलपर मन्दिर और मस्जिद दोनोंका निर्माण नहीं होने देने का श्रेय एकमात्र पुरी पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दजी महाभागको ही जाता है। श्रीरामजन्मभूमि स्थलपर ही राममन्दिर और मस्जिद दोनोंका निर्माण करानेके लिये भारतके तत्कालीन प्रधानमत्री नरसिंह राव द्वारा गठित रामालय द्रष्ट पर महाराज श्रीके अतिरिक्त शङ्कराचार्योंने सहमति प्रदान करते हुये हस्ताक्षर कर दिया था । किन्तु विविध प्रकार के प्रलोभन तथा भय दिये जाने पर भी महाराज श्री ने हस्ताक्षर नहीं किया क्योंकि उनके चिन्तन के अनुसार वह राष्ट्रहित, धर्महित एवं चिरकालिक शान्तिके उद्देश्यके विपरीत था । महाराज श्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भारतमें कहीं भी बाबर के नाम पर प्रतीक के रूप में मस्जिद का निर्माण नहीं होगा। महाराज श्री की दूरदर्शिता एवं भयमुक्त निर्णय के कारण आज रामलला भले ही तंबू में हैं लेकिन वहाँ मस्जिद बनाने की प्रयास तो अब तक सफल नहीं पाया। जब भारत सरकार ने भगवान् श्रीराम द्वारा निर्मित रामसेतु को तोड़नेका काम प्रारम्भ किया तो महाराज श्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब रामसेतु टूट ही जायेगा तब यह शरीर रहकर क्या करेगा ? महाराज श्री ने चीन की सीमा से लेकर रामेश्वरम् तक की यात्रा की तथा रामेश्वरम में 150 भक्तोंके साथ रामसेतु की रक्षा हेतु अभियान चलाया और प्रार्थना की । उन्होंने इस सन्दर्भ में श्रीलंका की सरकार तथा संयुक्त राष्ट्रसंघ से भी सम्पर्क साधा था। परिणाम यह हुआ कि अभी रामसेतु सुरक्षित है। हिन्दुओं के प्रमुख मानबिन्दुओं के रक्षा हेतु संकलित महाराज श्रीके मार्गदर्शनमें पुरीमठ द्वारा 22 प्रकारकी निशुल्क सेवायें संचालित होती है जिसमें गोवर्द्धनगोशाला, औषधालय, मन्दिर, आवास, भोजनालय, वाचनालय, पुस्तकालय, समुद्र आरती, बच्चोंके लिये यज्ञोपवीतसे लेकर वेदविद्यालय तककी शिक्षा आदि प्रमुख है । इसके साथ ही वृन्दावन, काशी और प्रयागस्थित आश्रमोंमें भी भक्तोंको निशुल्क सेवायें उपलब्ध करायी जाती है। महाराजश्री विज्ञान के पक्षधर हैं । उनका मानना है कि वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और व्यावहारिक तीनों धरातलों पर जो सही साबित हो वही अनुकरणीय है । आज विश्वमें विकास की ह़ेडमची है । लेकिन वेद-विहीन विज्ञान के अंधाधुन्ध अनुकरण और विकास के वास्तविक स्वरूप को नही समझ पाने के कारण पूरा विश्व विकास के नाम पर विनाश के कगार पर पहुँच चुका है। इस तथ्यको ध्यानमें रखते हुए पुरी शङ्कराचार्य महाराज वेद-विहीन विज्ञानकी जगह वेद-सम्मत, शास्त्र-सम्मत, ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार और प्रयोगपर बल दे रहे हैं । विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में ऐसा वैचारिक परिवर्तन लाने के उद्देश्य से शङ्कराचार्य महाराज विभिन्न वैज्ञानिक, तकनीकि संस्थानों सहित अन्य शिक्षण संस्थानों विश्वविद्यालयों, प्राद्यौगिकी संस्थानों आदिक्षमें दिव्य प्रवचनों के द्वारा अपेक्षित मार्गदर्शन कर रहे हैं। इस प्रकार महाराज श्री राष्ट्ररक्षा, धर्मरक्षा, राष्ट्रोत्कर्ष, प्राचीन एवं आधुनिक विज्ञान तथा तकनीक, सुरक्षा, वाणिज्य, संस्कृति, विकृत ज्ञान-विज्ञानका संशोधन तथा लुप्त ज्ञान-विज्ञानको पुन उद्भाषित करने, विश्वशान्ति, विश्वबन्धुत्व एवं प्राणी मात्र के कल्याण सम्बन्धी विषयों पर निरन्तर चिन्तन-मनन करते रहते हैं और भारत तथा नेपालके प्रमुख शिक्षणसंस्थानों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों, सामाजिक-धार्मिक कार्पामों एवं गोष्ठियों में प्रौढ नागरिकों, युवाओं एवं छात्रों.के बीच प्रवचन कर मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। सनातन वैदिक वाङ्मय सम्बन्धी लेखनके क्षेत्र में भी महाराजश्रीका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान है । अभी तक उनके द्वारा विरचित एक सौ सत्तर से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें डेढ़ दर्जन से अधिक ग्रन्थ वैदिक वाङ्मय में अन्तर्निहित गणित पर हैं । अभी तक 110 से अधिक देशों के गणितज्ञ और वैज्ञानिक महाराज श्री से गणित पर मार्गदर्शन ले चुके हैं। महाराज श्री द्वारा विरचित ‘स्वस्तिक गणित’ नामक पुस्तकने ऑक्फोर्ड तथा कैम्ब्रीज विश्वविद्यालयों सहित अनेक देशों एवं विश्वविद्यालयों के गणितज्ञों को विशेषरूप से आकर्षित किया है। उनके द्वारा विरचित गणितके नौवें ग्रन्थ ‘गणितसूत्रम्’में 304 सूत्र हैं जिनमें 61 सूत्र वेदों एवं उपनिषदोंसे लिये गये हैं बाकी 242 स्वयं महाराजश्री द्वारा रचित है। गोवर्द्धनमठ पुरीके वर्तमान श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग का मानना है कि सनातन परम्पराके अनुसरण और क्रियान्वयन से विश्व में शान्ति स्थापित होगी और भारत पुन: विश्वगुरु बनकर प्राणी मात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा । महाराज श्री एक महान् संत, चिन्तक, राष्ट्रभक्त तथा सिद्धपुरुष हैं । इन्हें मारने की अनेक योजनायें रची गयी । इन्हें दो बार विष पिलाया गया, पाँच बार नाग से डंसवाया गया तथा 22 बार शीशे का चूर्ण पिलाया गया है । तथापि प्रभु द्वारा निर्धारित कार्य को सिद्ध करने के लिये ये ‘अमृतजस्य पुत्र’के रूपमें हमारे बीच विद्यमान हैं। ऐसे सिद्धपुरुष के मार्गदर्शन से सबका कल्याण सुनिश्चित है। अत: आप सब अपने कल्याण की भावना से उनके अभियान से जुड़ें ऐसी भावना है ।
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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Сверление водяных скважин на чистую воду — это важнейший шаг в проектировании независимой системы снабжения водой загородного жилища. Этот подход включает в себя технический анализ, анализ грунта и оценку подземных вод территории, чтобы выбрать наиболее удачное место для бурильных работ. Глубина источника зависит от структуры почвы, что устанавливает её тип: песчаная скважина, песчаный водозабор или глубокая – https://techno-voda.ru/noyi-1465-4-i-ego-unikalnye-osobennosti/ . Качественно выполненная скважина предоставляет прозрачную и постоянную подачу воды в любой сезон, исключая шанс обмеления и появления примесей. Инновационные решения обеспечивают упростить процесс добычи воды, упрощая её эксплуатацию для повседневной жизни.
По завершении бурильных работ необходимо организовать водопровод, чтобы она была надёжной и практичной. Обустройство содержит оснащение насосами, установку очистительных систем и развод водопроводной системы. Также требуется продумать систему управления, которая будет контролировать поток воды и объём потребляемой воды. Защита скважины от замерзания и обеспечение её бесперебойной работы в холода также крайне важны. С профессиональным подходом к созданию источника и организации удастся получить частный участок полноценным водоснабжением, обеспечивая удобство насыщенной и комфортной.
Ленинградская область известна многослойной геологической характеристикой, что определяет задачу создания скважин на воду уникальным в каждом регионе. Территория представляет собой вариативность основ и водоносных горизонтов, которые нуждаются в профессиональный подход при выборе позиции и уровня сверления. Водные ресурсы может залегать как на небольшой уровне, так и достигать нескольких десятков метров, что влияет на трудоемкость бурения.
Ключевым моментом, определяющих тип воды (https://moidachi.ru/obustroistvo/kesson-dlya-skvazhin-zachem-on-nuzhen-i-chto-eto-takoe.html ), становится структура почвы и уровень водного горизонта. В Ленинградской области чаще всего создают артезианские источники, которые поставляют доступ к качественной и постоянной воде из глубинных структур. Такие скважины отличаются продолжительным сроком эксплуатации и качественным качеством водоносных ресурсов, однако их бурение нуждается в высоких ресурсов и уникального оснащения.
Процесс сверления в регионе требует использование высокотехнологичных машин и инструментов, которые могут работать с плотными породами и предотвращать возможные разрушения грунта скважины. Необходимо помнить, что необходимо учитывать экологически безопасные требования и правила, так как вблизи отдельных населённых пунктов есть охраняемые природные ресурсы и защищенные зоны, что предполагает особый внимание к буровым процессам.
Источник воды из подземных источников в Ленинградской области известна отсутствием загрязнений, так как она не подвержена от вредных веществ и имеет гармоничный состав микроэлементов. Это считает такие источники нужными для частных домов и организаций, которые прибегают к стабильность и чистоту водоснабжения.
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