अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय से ही प्रकृति सुरक्षित रह सकती है — पुरी शंकराचार्य

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भुवन वर्मा बिलासपुर 18 जून 2020

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज के 77 वें प्राकट्य महोत्सव जो कि आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी शुक्रवार दिनांक 19 जून 2020 को “” राष्ट्रोत्कर्ष दिवस “” के रूप में आयोजित है। इस पावन अवसर पर श्रीगोवर्धन मठ पुरी में दिनांक 14 जून से प्रारंभ होकर 18 जून तक वैज्ञानिक संगोष्ठी का आयोजन जारी है , जिसमें देश — विदेश के ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक संगोष्ठी के लिये निर्धारित विभिन्न सात विषयों पर विज्ञान के अनुसार अपना भाव प्रकट करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पश्चात पुरी शंकराचार्य जी विज्ञान के उन विषयों पर वेद शास्त्र सम्मत गूढ़ व सूक्ष्म ज्ञान को सरलतम उदाहरण व दृष्टांत के द्वारा उद्भाषित करते हैं , जो कि वैज्ञानिकों के अलावा धर्म अध्यात्म से संबद्ध लोगों के लिये भी ग्राह्य होता है। इन पांच दिनों में विभिन्न वैज्ञानिकों के संबोधन तत्पश्चात् पूज्यपाद शंकराचार्य जी द्वारा डाला गया प्रकाश ज्ञान, विज्ञान,धर्म ,अध्यात्म से संबद्ध मनीषियों के लिये अलौकिक अवसर है। चूंकि इस संगोष्ठी का फेसबुक के माध्यम से सीधा प्रसारण हो रहा है , अतः यह सभी जनसामान्य के लिए उपलब्ध है , किन्हीं कारणवश सीधा प्रसारण से वंचित हो जाने पर रिकार्डेड प्रसारण भी देखा सुना जा सकता है।
संगोष्ठी में प्रथम विषय “” विज्ञान की परिभाषा “” पर इसरो ( आई०एस० आर० ओ०) बैंगलोर के वैज्ञानिक गीता सुब्रमणी , तपन मिश्रा और सिद्धार्थ तिवारी ने अपना ब्याख्यान प्रस्तुत किया। संगोष्ठी के द्वितीय विषय “” विज्ञान के स्त्रोत” पर इसरो के ही वैज्ञानिक अनुप कुमार अग्रवाल ने अपना रोचक ब्याख्यान प्रस्तुत किया । प्रथम दिवस के विषयों पर वेद सम्मत प्रकाश डालते हुये तथा सभी वैज्ञानिकों के विज्ञान सम्मत दृष्टिकोण को समाहित करते हुये श्रीशंकराचार्य जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि इस सर्ग में एक अरब सन्तानबे करोड़ उन्तीस लाख उन्चास हजार एक सौ बीस ( 1,97,29,49,120) वर्षों की हमारी सनातनी परम्परा है ,सकल ज्ञान — विज्ञान का स्त्रोत सनातन शास्त्र ही है। इन सनातन शास्त्रों में उपलब्ध ज्ञान — विज्ञान हर काल , हर परिस्थिति में हर के लिये उपयोगी है। प्रकृति में जो भी पदार्थ परिलक्षित होती है , उसके पीछे भगवान की शक्ति है। समस्त पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित होता है ,ऊर्जा का परिवर्तित रूप आत्मा है , आत्मा परमात्मा का ही अंश है , अतः परमात्मा ही सम्पूर्ण ऊर्जा का स्त्रोत है। हमारे परमात्मा की विशेषता है कि वह जगत बनता भी है और जगत बनाता भी है । परमात्मा की शक्ति का नाम ही प्रकृति है। वेदों में वर्णित तथ्य के अनुसार ज्ञान विज्ञान का सम्मिलित रूप ही विद्या है। किसी पदार्थ या वस्तु के संबंध में सामान्य बोध का नाम ज्ञान है , वहीं उस पदार्थ या वस्तु के संबंध में विशेष बोध का नाम विज्ञान है।
वैज्ञानिक वह होता है जो सामान्य वस्तु को विशेष का रूप प्रदान करने में समर्थ होता है , ठीक इसी प्रकार विशेष वस्तु को सामान्य में परिवर्तित करने का सामर्थ्य रखता है। प्रकृति में प्रमुख पांच तत्त्व पृथ्वी , जल , तेज , वायु और आकाश है। पृथ्वी , जल , तेज , वायु , आकाश , प्रकृति , परमात्मा आदि ही विज्ञान के स्त्रोत हैं , इन सभी में सन्निहित गुण या सूक्ष्म ज्ञान को समझना , प्राप्त करना या उजागर करना ही विज्ञानदृष्टि है। प्रकृति के स्वरूप को समझने से यह स्पष्ट है कि प्रत्येक अंश अपने अंशी की ओर आकृष्ट होता है। प्रत्येक प्राणी की चाह मृत्यु के भय से मुक्त होकर अमरत्व की होती है , अनेक उदाहरणों से स्पष्ट है कि जिस वस्तु की चाह होती है उसका अस्तित्व अवश्य होता है। उदाहरण के लिये भूख का लगना अन्न के अस्तित्व को सिद्ध करता है , जहांँ प्यास होगी वहांँ पूर्ति के लिये जल अवश्य होगा । तात्पर्य क्या निकला कि यदि हमारी चाह का विषय अंश के रूप में मृत्युंजय सच्चिदानन्द स्वरूप सर्वेश्वर हैं जो कि अंशी हैं तो उनका अस्तित्व भी अवश्य होगा। अतः परमात्मा ही समस्त ज्ञान विज्ञान के स्त्रोत हैं। मंत्र , तंत्र , यंत्र को परिभाषित करते हुये पूज्य शंकराचार्य जी ने कहा कि उत्तम वैज्ञानिक वह होता है जो पंच तत्व ( पृथ्वी , जल , तेज , वायु और आकाश ) में सन्निहित सूक्ष्म सिद्धांत को आत्मसात कर सके , यही मंत्रसिद्धि होता है , इस सूक्ष्म ज्ञान को यंत्र के रूप में परिवर्तित कर लोकोपयोगी बनाना तंत्र है। यंत्र द्वारा लोकोपयोगी कार्य का क्रियान्वयन किया जाता है। उन्होंने कहा कि अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय से ही प्रकृति सुरक्षित रह सकती है।

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

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