बस्तर की नित्या ने देखा रात का सूरज:-95 डिग्री तक चला जाता है टेंपरेचर; दुनिया की सबसे ठंडी जगह पर स्पेस रिसर्च
रायपुर/ छत्तीसगढ़ की नित्या पांडेय ने दुनिया की सबसे ठंडी जगह पर रहकर स्पेस रिसर्च किया है। देश के पहले नेशनल स्पेस डे पर उन्होंने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है। नित्या ने बताया कि अंटार्टिका में 6 महीने रात नहीं होती। यहां तापमान -95 डिग्री तक चला जाता है। रात के वक्त यहां दोपहर की तरह सूरज निकला होता है। धूप होती है, जहां तक नजर जाएगी वहां जानलेवा बर्फ नजर आएगी। इन हालातों में कोंडागांव जिले की रहने वाली नित्या ने रहकर यहां काम किया है। कल्पना चावला उनकी रोल मॉडल हैं। जानिए छत्तीसगढ़ की इस स्पेस रिसर्चर की कहानी।

ये आधी रात की तस्वीर है, नित्या ने अपने फोन से क्लिक की।
आज से ठीक एक साल पहले यानी, 23 अगस्त, 2023 को भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में पहुंचने वाला पहला देश बना था। चंद्रयान-3 मिशन के विक्रम लैंडर ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी। इस उपलब्धि के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पेस डे मनाने की घोषणा की थी।
रात नहीं होती बस सूरज का एंगल बदलता है
नित्या पांडे सेंटियागो, चिली में रहकर PHD कर रहीं हैं। वो यूनिवर्सिटी ऑफ चिली में डिपार्टमेंट ऑफ एस्ट्रोनॉमी की स्टूडेंट हैं। नित्या ने बताया कि समर सीजन में अंटार्कटिका में रात नहीं होती। बस सूरज का एंगल जरा सा बदल जाता है, धूप ही खिली होती है। सन के एंगल से समझ आता है कि बाकी दुनिया में रात हो चुकी है। कुछ घंटे की नींद लेकर हम रिसर्च किया करते थे। मैंने यहां सोलर सिस्टम को लेकर स्टडी किया है।

अपने एडवाइजर साइंटिस्ट डॉ पेट्रिको रोजो के साथ नित्या।
नित्या ने बताया- धरती के इस हिस्से अंटार्टिका में 6 महीने दिन और 6 महीने रात रहने का कारण पृथ्वी का अपनी धुरी पर टेढ़ी होकर घूमना है। जब 6 महीने यहां अंधेरा होता है तो 6 महीने सूरज दिखता ही नहीं है। यहां मौसम भी दो ही होते हैं सर्दी और गर्मी। सर्दियों में पारा -95 तक और गर्मियों में -25 या 30 तक होता है।
इकलौती इंडियन और फीमेल साइंटिस्ट
अंटार्कटिका में स्पेस रिसर्च के अपने एक्सपीरियंस को शेयर करते हुए नित्या ने बताया कि 16 साइंटिस्ट की टीम वहां पहुंची थी। इन सभी में नित्या इकलौती फीमेल थीं। यहां उन्होंने सोलर सिस्टम से जुड़े पहलुओं को समझा। नित्या के अलावा सिर्फ एक और फीमेल थीं जो चिली एयरफोर्स की पायलट थीं। आर्मी और एयरफोर्स के सपोर्ट से ही साइंटिस्ट इस जगह पर काम कर रहे थे।

इकलौती फीमेल साइंटिस्ट थीं नित्या।
कोंडागांव की नित्या ने आगे बताया कि मैंने जिंदगी में पहली बार बर्फ देखी वो भी सीधे अंटार्कटिका में, खुशी भी हुई मगर वहां के खतरनाक मौसम में परेशानी भी। मुझे आइसबर्न हो गया था, हाथों में परेशानी हो गई आंखों में भी। चिली की आर्मी के डॉक्टर्स ने इलाज किया था।
बर्फ उबालकर खाने-पीने का इंतजाम
नित्या ने बताया कि दुनिया के सबसे ठंडे इसे इलाके में खाने-पीने की चीजों के लिए मुझ जैसी वेजिटेरियन को बहुत परेशानी हुई। हमारे लिए पैक्ड फ्रोजन फूड आया करता था। चाय कॉफी बनाने के लिए हमें फ्रेश आइस को उबालकर इस्तेमाल करना पड़ता था। काफी दिनों तक मैंने यहां ब्रेड और कुकीज खाकर काम चलाया। पीने के लिए पानी एयर फोर्स हमें उपलब्ध कराया करती थी।

किसी बंकर की तरह दिख रहा ये नित्या और बाकी साइंटिस्ट का किचन है।
पेरेंट्स की फोटो रखी साथ
अंटार्कटिका में अपने स्पेस रिसर्च के दौरान नित्या अपने पेरेंट्स की तस्वीर साथ रखती थीं। नित्या के पिता भगवती पांडे कोंडागांव के सरकारी स्कूल में टीचर हैं, मां हाउसवाइफ हैं। नित्या जब स्कूल में थीं तो कल्पना चावला के बारे में सुना। उनसे इंस्पायर होकर स्पेस रिसर्च की फील्ड में जाने का मन बनाया। एक स्कॉलरशिप के तहत फ्रांस के स्पेस सेंटर में जाकर पढ़ने का मौका मिला। टिकट के पैसे नहीं थे। पिता ने मुश्किल से ही सही मगर सब इंतजाम कर बेटी को भेजा था।

पेरेंट्स की तस्वीर से मिलती थी हिम्मत।
नित्या ने बताया कि रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी में उन्होंने एस्ट्रोफिजिक्स में मास्टर्स किया । पढ़ाई के दौरान स्पेस स्टडी की स्कॉलरशिप के बारे में जानकारी मिली और मैं स्कॉलरशिप में सिलेक्ट होकर फ्रांस भी गई। कई एस्ट्रोनॉट से मिलीं फ्रांस में पता चला कि चिली में दुनिया के बेस्ट टेलीस्कोप हैं, इंस्टीट्यूट है और वहां का स्काय स्पेस ऑब्जरवेशन के लिए दुनिया में सबसे बेस्ट माना जाता है। इसके बाद यूनिवर्सिटी में PHD के लिए सिलेक्ट हुईं। अब सेंटियागो में रहकर रिसर्च कर रहीं हैं।
ऐसे बन सकते हैं स्पेस साइंटिस्ट
स्कूल के समय मैथ्स और फिजिक्स में रुचि रही है तो आगे चलकर स्टूडेंट स्पेस रिसर्च की फील्ड में जा सकते हैं। पंडित रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी के एस्ट्रो फिजिक्स विभाग के सहायक प्रध्यापक नंदकुमार चक्रधारी ने बताया कि यूनिवर्सिटी में फिजिक्स में मास्टर्स कोर्स करने के दौरान एस्ट्रोनॉमी पढ़ने का अवसर स्टूडेंट्स को मिलता है। यहीं से स्पेस रिसर्च की फील्ड में जाने का रास्ता खुलता है।

पंडित रविशंकर शुक्ल युनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स और बीच में हैं सहा.प्रो चक्रधारी।
चक्रधारी ने बताया कि हम यहां से स्टूडेंट्स को नैनीताल भेजते हैं जहां स्पेस ऑब्जरवेशन के बड़े टेलीस्कोप हैं बच्चे वहां वैज्ञानिकों से भी बातचीत करते हैं। इसके बाद अलग-अलग स्कॉलरशिप के जरिए देश के टॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट में बच्चों का सिलेक्शन होता है। छत्तीसगढ़ से बहुत से बच्चे इसरो और अलग-अलग स्पेस एजेंसीज में वर्तमान में काम कर रहे हैं।
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