छत्तीसगढ़ धान के कटोरे में अब राजेष्वरी आर-वन

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महामाया उत्पादक किसानों के लिए नया विकल्प,परिपक्वता अवधि 124 से 125 दिन उत्पादन प्रति हेक्टेयर 50 क्विंटल

महासमुंद/बलौदाबाजार । धान के कटोरे में अब राजेष्वरी आर-वन भी दिखाई देगी। जोरदार उत्पादन देने वाली महामाया धान की खेती करने वाले किसानों तक इसके बीज पहुंचाने की तैयारियों के बीच जिले में राजेष्वरी पहुंच चुकी है। राजेष्वरी आर-वन में किसानों के लिए हर वह सब गुण देने की कोषिष की गई है जिनकी कमी महामाया में रह गई थी तो पोहा उत्पादक यूनिटों के लिए भी यह कई ऐसी विषेषता लेकर आ रही है जो इनकी पोहा को देष स्तर पर बनी पहचान को और भी अधिक विस्तार देगी ।
1995 के साल में इंदिरा गांधी कृषि विष्वविद्यालय रायपुर ने चेपटी और गुरमटिया के समकक्ष ऐसा धान तैयार किया था जिसे महामाया के नाम से पहचान दी गई। किसानों ने इसे हाथों-हाथ लिया। महामाया के दम पर पोहा उद्योगों की स्थापना हुई और देषभर में इसकी पहचान बनी। किसानों के बीच इसने तेजी से जगह बनाई और धान की खेती के कुल रकबे में से लगभग 40 फीसदी रकबे में इसने विस्तार ले लिया ओैर महामाया के दम पर ही छत्तीसगढ़ को धान के कटोरे के रुप में पहचान मिली। अब इसकी जगह लेने के लिए राजेष्वरी आर-वन तेयार हो चुकी है। इसके बीज भी जिले में पहुंच चुके है। सोसाइटियों की मांग का इंतजार हे।

इसलिए आई थी महामाया 1990 के दषक में किसान चेपटी गुरमटिया और क्रांति जेसे मोटा धान की खेती किया करते थे। इन तीनों में कुछ न कुछ खामियां थी। जेसे मिसाई के दौरान क्रांति के दाने देर से निकलते थे। तो चेपटी गुरमटिया के पौधों की उंचाई ज्यादा थी जो ज्यादा हवा का झोंका झेल नही पाती थी। इन सभी खामियों को दूर करते हुए धान की ऐसी प्रजाति तैयार करने में सफलता पाई गई जिसे महामाया के नाम से पहचान मिली। यह साल था 1995 का। इसमें जिस तेजी से विस्तार लिया उसने कृषि वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल दिया। हाल कुछ ऐसा रहा कि आगे चलकर महामाया ने अपने दम पर छत्तीसगढ़ को धान के कटोरे के रुप में देषभर में विख्यात कर दिया। और बाद के दिनों में इस पर आधारित पोहा उद्योंगों की स्थापना की गई।

अब राजेष्वरी आर-वन
दस साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी महामाया की जगह लेने जा रही राजेष्वरी आर- वन में महामाया के हर वह गुण तो है ही साथ ही कुछ नई खूबियां भी इसमें पहली बार मिलेंगी। जेसे यह महामाया से पांच दिन पहले याने 124 से 125 दिनों में तैयार होगी। दूसरा यह कि इसके दाने लंबे और मोटे होंगे जबकि महामाया के दाने मोटे और हल्के गोलाई वाले होते है। किसानों के बीच यह इसलिए जल्द ही लोकप्रिय हो सकती है क्योकि इसकी उत्पादन क्षमता महामाया से लगभग 5 क्विंटल ज्यादा याने 50 क्विंटल प्रति हेक्टैयर होगी। पोहा उद्योगों के बीच इसे इसलिए हाथों-हाथ लिए जाने की संभावना है क्योंकि इसके दाने लंबे होने से यूनिटों की मषीनों पर दबाव कम डाला जा सकेगा और पोहा की क्वालिटी पहले से ज्यादा बेहतर बनाने में सहायक होगी।

राजेष्वरी आर-टू भी आई
राजेष्वरी आर- टू के भी बीज दस्तक दे चुकें है। यह बारीक ़श्रेणी की प्रजाति है। महामाया से दस दिन पहले ओैर राजेष्वरी आर-वन से चार दिन पहले तैयार होने वाली राजेष्वरी आर-टू मात्र 120 दिन में तैयार हो जाएगी। प्रति हेक्टेयर 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता वाली राजेष्वरी आर- टू के दाने लंबे और पतले होंगे। लेकिन इसे वर्तमान में मौजूद दूसरी बारीक धान से उपर रखा जा सकता है क्योंकि ब्लास्ट जैसे खतरनाक रोग से लड़कर जीतने की ताकत रखते है। इसके बीज खेतों तक पहुंचने के बाद यह धान-1010. सफरी और सरना जैसे परंपरागत धान का बेहतर विकल्प बन सकता है। इसके बीज भी जिले में पहुंच चुके है। सोसाइटियों से आग्रह किया जा रहा हे कि अपने-अपने क्षेत्र के किसानों को प्रोत्साहित करे।

देष स्तर पर होगी खेती
इंदिरा गांधी कृषि विष्वविद्यालय रायपुर की खोज राजेष्वरी आर-वन और राजेष्वरी आर-टू को रिसर्च में मिली सफलता के बाद राज्य बीज अनुमोदन समिति ने मंजूरी दे दी है। इसके बाद इसे केंद्रिय बीज अनुमोदन समिति से मंजूरी दी जा चुकी है। इस तरह राज्य के बाद अब इन दोनों नई प्रजातियों के धान की खेती अब देष स्तर पर भी की जा सकेगी। रिसर्च करने वाली वैज्ञानिको की टीम को यह भरोसा है कि धान की ये दोनों प्रजातियां न केवल विष्वविद्यालय बल्कि छत्तीसगढ का नाम देषस्तर पर रोषन करेंगी।

राजेष्वरी आर-वन और आर-टू धान की दोनों ही प्रजातियों की अलग-अलग विषेषताएं है। आर-वन जहां महामाया की खेती करने वाले किसानों और पोहा उद्योगों की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है तो आर-टू बारीक धान की उपलब्ध प्रजातियों में नई प्रजाति के रुप में जगह देने के प्रयास में तैयार की गई है।
-डॉ. संदीप भंडारकर. वैज्ञानिक (धान) कृषि महाविद्यालय महासमुंद

इसी खरीफ सत्र से राजेष्वरी आर-वन और आर-टू धान बीज किसानों तक पहुंचाया जा रहा है। सोसाइटियों से आग्रह किया गया है कि अपने-अपने क्षेत्र के किसानों को इन दोनों प्रजातियों के धान की खेती के लिए प्रोत्साहित करें। मांग के अनुरुप बीज भेजने की तुरंत व्यवस्था की जाएगी।
-वी पी चौबे. उपसंचालक .बलौदाबाजार

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