राम मंदिर के लिए दस बार आयोजित धर्म संसदों में कोई भी शंकराचार्य कभी शामिल नहीं हुये : अब प्राण प्रतिष्ठा के विराट आयोजन के दृष्टा नहीं, कर्ता बनने की चाहत
राम मंदिर के लिए दस बार आयोजित धर्म संसदों में कोई भी शंकराचार्य कभी शामिल नहीं हुये : अब प्राण प्रतिष्ठा के विराट आयोजन के दृष्टा नहीं, कर्ता बनने की चाहत
भुवन वर्मा बिलासपुर 13 जनवरी 2024
अयोध्या। हिंदू धर्म के पथ प्रदर्शक आदि शंकराचार्य का महान योगदान को शत शत प्रणाम है। इसमें कोई संशय नहीं कि आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों पीठ देशवासियों के लिए सर्वोच्च हैं। ज्योतिर पीठ, शारदा पीठ, गोवर्धन पीठ और श्रंगेरी पीठ देश की चारों दिशाओं में स्थापित हैं। ये हैं क्रमशः उत्तराखंड में जोशीमठ बद्रिकाश्रम मठ, गुजरात में द्वारिका मठ, ओडिशा में जगन्नाथपुरी मठ और कर्नाटक में श्रंगेरी मठ। इन चार पीठों की स्थापना शंकराचार्य ने चारों दिशाओं में स्वयं की थी। एक और पीठ तमिलनाडु के कांचीपुरम में है। जहां आदि शंकराचार्य ने स्वयं रह😢 कर तप किया, ज्ञान अर्जित किया, और भारत भ्रमण और चारोंपीठों के स्थापना के उपरांत इस भारत भूमि से मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में महाप्रयाण कर गए। केरल के जिस कालड़ी गांव में भगवान आद्य शंकराचार्य ने जन्म लिया वहां शंकराचार्य की कोई पीठ नहीं है।
यद्यपि रामानंदाचार्य, रामानुजाचार्य आदि की भी पीठ हैं, पर यहां हम शंकराचार्य से जुड़े प्रसंग पर चर्चा कर रहे हैं। प्रसंग भी इसलिए आया चूंकि शंकराचार्यों ने 22 जनवरी को राम मंदिर के उदघाटन में जाने से इंकार कर दिया। एक शंकराचार्य ने तो साफ कह दिया कि जब ट्रस्ट द्वारा प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री से कराई जा रही है तो उनके वहां जाकर तालियां बजाने का कोई औचित्य नहीं है। मतलब शंकराचार्य इस विराट आयोजन के दृष्टा नहीं, कर्ता बनना चाहते हैं। जहां तक शंकराचार्यों का प्रश्न है, ब्रह्मलीन स्वरूपानंद सरस्वती के अतिरिक्त अन्य किसी शंकराचार्य ने कभी भी राम मंदिर के लिए आवाज नहीं उठाई।
स्वरूपानंद महाराज ने भी आंदोलन में तो कभी भाग नहीं लिया, अलबत्ता विहिप के रामजन्मभूमि न्याय और संतों के मार्गदर्शक मंडल के समानांतर अलग से रामालय न्यास बना लिया। वे अकेले ही ढपली बजाते रहे। उधर विहिप के संयोजन में राम मंदिर के लिए दस बार आयोजित धर्म संसदों में कोई भी शंकराचार्य कभी शामिल नहीं हुआ। जहां तक शंकराचार्यों के लिए नियमावली की बात है, यह आदि शंकर ने शंकर महामठाम्नाय लिखकर पहले ही निर्धारित कर दिया है। दुर्भाग्य देखिए कि इस समय ज्योतिरपीठ और शारदापीठ के शंकराचार्य तो इसलिए बना दिए गए हैं चूंकि दोनों ही स्वरूपानंद के शिष्य थे। क्या ऐसे बनते हैं शंकराचार्य? वैसे पीठ भले ही चार हों, इस समय 21 संत ऐसे हैं जो अपने नाम से पूर्व जगद्गुरु शंकराचार्य पदनाम का प्रयोग कर रहे हैं।
भगवान राम का मंदिर 550 साल बाद बन रहा है। इसके पीछे विश्व हिन्दू परिषद, अखाड़ा परिषद, आश्रमों, मठ मंदिरों और कार सेवकों का पुरुषार्थ है…
इसकी जड़ में हैं
● महंत दिग्विजयनाथ,
● अवैद्यनाथ,
● रामचंद्र परमहंस,
● नृत्यगोपाल दास,
● सत्यमित्रानंद,
● चिन्मयानंद,
● आचार्य धर्मेन्द्र और
● तेरह अखाड़े एवं
● मार्गदर्शक मंडल है।
इन सबसे बढ़कर—
● अशोक सिंहल,
● आचार्य गिरिराज किशोर और
● कल्याण सिंह जैसे कर्मनिष्ठ महापुरुष हैं।
● अटल बिहारी वाजपेई
● लालकृष्ण आडवाणी
● मुरली मनोहर जोशी
● उमा भारती हैं।
■ मंदिर निर्माण के मार्ग में बिछाए गए तमाम कांटे चुनने वालों में सबसे बढ़कर नरेंद्र दामोदर दास मोदी है।
सभी शंकराचार्य हमारे सम्मानित हैं…पर क्षमा करें आज के चारों शंकराचार्यों का मंदिर निर्माण में कोई योगदान नहीं है।
भगवान राम के काज में सैकड़ों वर्षों से बाधाएं डाली जाती रही हैं। अफसोस की बात है कि आयोजन से चंद दिन पूर्व एक और विवाद सनातन हिन्दू धर्म के शिखर पद से पैदा किया गया। सच है, भगवान राम और उनके रामराज्य का मार्ग कभी निष्कंटक नहीं रहा। अब प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो आगे की राम ही जानें जय श्री राम….