हनुमान प्राकट्योत्सव पर विशेष

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भुवन वर्मा, बिलासपुर 07 अप्रैल 2020

जाँजगीर चाँपा — प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी आज भगवान श्रीराम भक्त संकटमोचन हनुमान का प्रकटोत्सव है। ” राम काज कीन्हें बिनु , मोहिं कहां विश्राम” ये दोहा बताता है कि राम के लिये ही श्री हनुमान अवतार लेते हैं। राम विष्णु के अवतार हैं तो श्री हनुमान जी ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। बिना हनुमान की भक्ति के रामभक्ति पाना असंभव है। इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के डर से हनुमानजी का प्राकट्योत्सव सामूहिक रूप से हर्षोल्लास के साथ नहीं मनाया जायेगा। लाकडाऊन के चलते सभी धार्मिक स्थल बंद है। मंदिरों में कोई विशेष अनुष्ठान भी नहीं होंगे, सिर्फ पुजारी ही कुछ एक श्रद्धालुओं की मौजूदगी में सुबह पूजा-अर्चना, सिंदूर से अभिषेक और हनुमान चालीसा-सुंदरकांड , बजरंग बाण का पाठ करेंगे। शहर में कोई शोभायात्रा नहीं निकलेंगे। लोग घर पर ही श्रद्धा-भाव से श्री हनुमानजी का प्रकटोत्सव मनायेंगे और घर-घर में ही हनुमान चालीसा पाठ की गूंँज सुनायी देगी।वैसे तो सभी जगहों में श्री हनुमान जी की मूर्तियांँ स्थापित हैं लेकिन नहरिया बाबा नैला जाँजगीर सहित कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जो सिर्फ हनुमानजी के नाम से ही जाने जाते हैं। यह मंदिर वर्षों पुराने भी हैं और हमारे आस्था स्थल भी हैं। इन मंदिरों में प्रतिदिन सैकड़ों लोग पहुँचते थे लेकिन लाकडाऊन के चलते श्रद्धालुओं के दर्शन पर विराम लग गया है। सात चिरंजीवियों में एक श्री हनुमान जी की साधना कलयुग में सबसे अधिक की जाती है। देश का शायद ही ऐसा कोई कोना होगा जहांँ पर अष्ट सिद्धि के दाता की श्रीहनुमान जी की पूजा ना की जाती हो। हनुमानजी संकटमोचन हैं जिनका सुमिरन करने मात्र से ही बड़े से बड़े संकट और दु:ख दूर हो जाते हैं।
हनुमान जी का जन्म वैसे तो दो तिथियों में मनाया जाता है- पहला चैत्र माह की पूर्णिमा को तो; दूसरी तिथि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।पौराणिक ग्रंथों में भी दोनों तिथियों का उल्लेख मिलता है। लेकिन एक तिथि को जन्मदिवस के रुप में तो दूसरी को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रुप में मनाया जाता है। उनकी जयंती को लेकर दो कथायें भी प्रचलित हैं। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि माता अंजनी के उदर से हनुमान जी पैदा हुये। उन्हें बड़ी जोर की भूख लगी हुई थी. इसलिये वे जन्म लेने के तुरंत बाद आकाश में उछले और सूर्य को फल समझ खाने की ओर दौड़े। उसी दिन राहू भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिये आया हुआ था लेकिन हनुमान जी को देखकर उन्होंने इसे दूसरा राहु समझ लिया। तभी इंद्र ने पवनपुत्र पर वज्र से प्रहार किया जिससे उनकी ठोड़ी पर चोट लगी व उसमें टेढ़ापन आ गया. इसी कारण उनका नाम भी हनुमान पड़ा। इस दिन चैत्र माह की पूर्णिमा होने से इस तिथि को हनुमान जयंती के रुप में मनाया जाता है। वहीं दूसरी कथा माता सीता से हनुमान को मिले अमरता के वरदान से जुड़ी है। एक बार माता सीता अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थी तो हनुमान जी को यह देखकर जिज्ञासा जागी कि माता ऐसा क्यों कर रही हैं ? उनसे अपनी शंका को रोका न गया और माता से पूछ बैठे कि माता आप अपनी मांग में सिंदूर क्यों लगाती हैं? तब माता सीता ने कहा कि इससे मेरे स्वामी श्री राम की आयु और सौभाग्य में वृद्धि होती है रामभक्त हनुमान ने सोचा जब माता सीता के चुटकी भर सिंदूर लगाने से प्रभु श्री राम का सौभाग्य और आयु बढ़ती है तो क्यों न पूरे शरीर पर ही सिंदूर लगा लूंँ। उन्होंने ऐसा ही किया. इसके बाद माता सीता ने उनकी भक्ति और समर्पण को देखकर महावीर हनुमान को अमरता का वरदान दिया। माना जाता है कि यह दिन दीपावली का दिन था इसलिये इस दिन को भी हनुमान जयंती के रुप में मनाया जाता है और सिंदूर चढ़ाने से बजरंग बलि के प्रसन्न होने का भी यही रहस्य है।प्रभु श्री राम के भक्त संकट मोचन, महावीर, बजरंग बलि , हनुमान की महिमा सबसे न्यारी है। सूरज को निगलना, पर्वत को उठाकर उड़ना, रावण की सोने की लंका को फूंँकना कितने ही ऐसे असंभव लगने वाले कार्य हैं जिन्हें श्री हनुमान ने सहज ही कर दिखाया।

जय श्री राम, जय हनुमान
अरविन्द तिवारी की रपट

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