भुवन वर्मा, बिलासपुर 28 मार्च 2020
जगदलपुर । “लोकतंत्र सरकार का ऐसा रूप और तरीका है जिसमें किसी खून खराबे के बिना जनता के आर्थिक और सामाजिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए जा सकते हैं। ” इस बात को नेपाल थाईलैण्ड की तरह अब भारत के माओवादियों को भी गंभीरता से विचार करने की जरुरत है।
बस्तर में शांति की स्थापना हेतु लंबी पदयात्रा कर चुके सीजीनेट व स्वरा के संस्थापक शुभ्रांशु चौधरी व अन्य मानवाधिकार वादियो ने बस्तर पुलिस को पत्र लिखकर कोरोना संकट के दौर में युद्ध विराम की अपील की है। शुभ्रांशु ने तर्क भी रखा है कि माओवाद से जूझ रहे फिलीपींस में राष्ट्रपति ने कोरोना संकट के दौर में माओवादियों से हथियार छोड़ने की अपील की, जिसे माओवादियों ने मान लिया। थाईलैंड में वर्ष 2002 में जब सुनामी आई थी तब वहां भी सरकार ने माओवादियों से हथियार छोड़ संकट में साथ देने की अपील की थी। माओवादियों ने सरकार का साथ दिया था। सुनामी के दौरान जो युद्ध विराम हुआ। उससे थाईलैंड में 2005 में स्थाई शांति का मार्ग खुला। भारत में भी ऐसा होना चाहिए।
यह सही है कि विपदा व्यक्ति विशेष को देखकर नहीं आती। जिस तरह गांव में छोटी माता (चेचक)का प्रकोप होने पर पूरा गांव हफ्ता भर पूजा- पाठ में जुट जाता है। ठीक उसी तरह हमें भी करोना से देश की जनता और मानवता की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए।

समाचार संकलन के दौरान हमने भी कई बार देखा है कि माओवादी जब भी जंगलों में बैठकें करते हैं या रैली करते हैं। तब हजारों की संख्या में ग्रामीण अपने बाल – बच्चों के साथ उपस्थित रहते हैं। यह हजारों की उपस्थिति निश्चित ही करोना चक्र को तोड़ने में बाधक हो सकती है। इसलिए विषम परिस्थितियों में बस्तर बंद या किसी भी प्रकार का आंदोलन उचित नहीं है अभी सबसे बड़ा आंदोलन मानवता की रक्षा करता है.. सीधी सी बात है- जब जनता ही नहीं रहेगी तब हुक्म किस पर चलाएंगे…?
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने भी कहा है कि हम भी यही चाहते हैं कि करोना नक्सली भी सुरक्षित रहें और जनता को भी सुरक्षित रहने दें।
हेमंत कश्यप ब्यूरो प्रतिनिधि
जगदलपुर की रपट