एक कस्बा ऐसे भी है जहां एक सती का श्राप महिलाओं को पति और पुत्रों की दीर्घायु के व्रत की नहीं दे रहाअनुमति
आज पूरे देश मे सुहागिन महिलाएं करवाचौथ बड़े ही धूमधाम से मना रही है. लेकिन एक कस्बा ऐसे भी है जहां एक सती का श्राप महिलाओं को पति और पुत्रों की दीर्घायु के व्रत की अनुमति नहीं दे रहा. यहां करवा चौथ और अहोई अष्टमी का त्याेहार नहीं मनाया जाता है. विवाहिता पूजा का कहना है कि मन में तमन्ना थी कि शादी के बाद करवाचौथ पर निर्जला व्रत एवं सोलह श्रृंगार कर अपने चांद का दीदार करेंगी, लेकिन ससुराल में आकर पता चला कि सती की बंदिश के चलते वह ऐसा नहीं कर पाएगी.मथुरा के सुरीर कस्बे में सुहाग सलामती के त्योहार से परहेज की रूढ़िवादी परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. यहां कि महिलाओं पर सती के श्राप का भय इस कदर मन-मस्तिष्क पर छाया हुआ है कि अपने सुहाग सलामती के त्योहार को भी नहीं मनाती. कस्बा सुरीर के मुहल्ला वघा में ठाकुर समाज के सैकड़ों परिवारों में करवा चौथ एवं अहोई अष्ठमी का त्यौहार मनाने पर बंदिश लगी हुई है
ये है सती के श्राप की कहानी
कहते हैं कि सैकड़ों वर्ष पहले गांव रामनगला (नौहझील) का ब्राह्मण युवक अपनी पत्नी को विदा कराकर घर लौट रहा था. सुरीर में होकर निकलने के दौरान इस मुहल्ले के ठाकुर समाज के लोगों से बग्घी में जुते भैंसा को लेकर विवाद हो गया. जिसमें इन लोगों के हाथों इस ब्राह्मण युवक की मौत हो गई. अपने सामने पति की मौत से कुपित पत्नी मुहल्ले में इस समाज के लोगों को श्राप देते हुए सती हो गई थी. इसे सती का श्राप कहें या बिलखती पत्नी के कोप का कहर, संयोगवश इस घटना के बाद मुहल्ले में मानो कहर आ गया. एक के बाद एक कई जवान लोगों की मौत हो गई. महिलाएं विधवा होने लगीं. जिससे इन लोगों में कोहराम सा मच गया. जिसे देख बुजुर्ग लोगों ने इसे सती का श्राप मानते हुए क्षमा याचना की और मंदिर बना कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी. बुजुर्ग बताते हैं कि तभी से करवा चौथ एवं अहोई अष्टमी का त्यौहार मनाना तो दूर महिलाएं पूरा साज-श्रृंगार भी नहीं करती हैं. उन्हें सती के नाराज होने का भय बना रहता है.