हसदेव अरण्य से लौटकर डॉ रश्मि बुधिया की : हसदेव बचाओ आंदोलन पर करुणा भरी मार्मिक अपील, हमारे जंगल – हमारे वृक्ष ही है जो हमें देते हैं सांस

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हसदेव अरण्य से लौटकर डॉ रश्मि बुधिया की : हसदेव बचाओ आंदोलन पर करुणा भरी मार्मिक अपील, हमारे जंगल – हमारे वृक्ष ही है जो हमें देते हैं सांस

भुवन वर्मा बिलासपुर 23 मई 2022

बिलासपुर । हम जब अपनी माँ के गर्भ से जन्म लेते हैं तब से ही हमारा संघर्ष शुरू हो जाता है। जीवन और मृत्यु का संघर्ष आजीवन सतत चलता रहता है। ये सांस ही हैं जो हमे इस पृथ्वी पर जीवन प्रदान करती हैं। हमारे जंगल, हमारे वृक्ष है जो हमें सांस देते हैं। जो भी राजनीतिक पार्टी समाज वर्ग जंगल को काटने की अनुमति देती है । वह मानव व जीवन विरोधी कार्य है । एक तरह से वह स्वयं का विरोध कर रही है । केवल मनुष्य का जीवन और अस्तित्व रखते में नहीं अपितु सका जीव खतरे में है। इस हेतु हमें जागृति लानी है । यह जन जागरण अभियान है। हमें पेडों को बचाने ही होंगे । अब समय आ गया है हमें अपने साथ से बचाने के लिए संघर्ष जारी रखनी होगी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ पर्यावरण से परिपूर्ण बेहतर ब्रह्मांड छोड़कर जाए इस पर हम सबको चिंतन की आवश्यकता है ।


मित्रो आप सब ने सुना होगा कि हसदेव को बचाओ मुहिम जोर शोर से चल रही है । आखिर यह जंगल ही तो है इसे क्यों बचाया जाए क्योंकि ऐसे ही जंगल काटे जाते हैं आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा लेकिन हसदेव कोई आम जंगल नहीं है हसदेव का जंगल 70 हजार स्क्वायर किलोमीटर का बसा हुआ एक घना जंगल है जिसमें लाखों की संख्या में पेड़ है अगर गिनती की जाए तो 20 लाख से अधिक पेड़ होंगे इस जंगल में जो की गिनती वाले पेड़ हैं और जिनकी गिनती नहीं की जाती है उनकी संख्या तो ना जाने कितनी होगी अभी कोल आवंटन के लिए इन हसदेव क्षेत्र में खदानों को आवंटित किया गया है । जिसमें पूरी तरीके से इन पेड़ों को काटकर के कोयले का उत्खनन किए जाने की योजना है ।

अब इससे मुझे क्या नुकसान क्योंकि आज हम जब तक मेरा क्या फायदा मेरा क्या नुकसान नहीं सोचते तब तक हम चीजों के बारे में काम नहीं करते हैं।
छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं या
आप बिलासपुर मुंगेली या जांजगीर , रायगढ़ जिला में निवास करते हैं । तो इससे आपको प्रत्यक्ष रूप से बहुत ही अधिक नुकसान होने वाला है । जैसे कि अब देखेंगे कि हसदेव के क्षेत्र से लगभग जांजगीर जिला के 4 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती और हसदेव अरंड के कट जाने से हसदेव में मिलने वाली छोटी बड़ी नदियों या नालों की जो उद्गम है वह समाप्त हो जाएगा । यह नाले जो है हसदेव को पानी नहीं दे पाएंगे और जब हसदेव में ही पानी नहीं रहेगा तो सिंचाई किस तरीके से होगी।

२. दूसरी बात जुड़ी हुई है बिलासपुर क्षेत्र की से बिलासपुर क्षेत्र में अमृत मिशन योजना जो चालू की गई है उसमें खुटाघाट बांध से पानी लाने का योजना बनाया गया है लेकिन खुटाघाट जो है वह सिर्फ बिलासपुर को 3 दिनों के पानी की सप्लाई के बराबर ही पानी दे सकता है । अगर इसे चालू रखना होगा तो अहिरन नदी से पानी को डाइवर्ट करके खुटाघाट में लाना होगा और वह पानी जो है बिलासपुर के लोगों को मिलेगा लेकिन जब हसदेव ही नहीं रहेगा तो अहिरन से पानी कैसे आएगा और जब अहिरन से पानी नहीं आएगा तो बिलासपुर के लोगों को प्रत्यक्ष रूप से पानी की समस्या का सामना करना पड़ेगा जो भविष्य के लिए बहुत बड़ी चिंता का सबब है।

३. मानवता के दृष्टिकोण से भी देखें हसदेव क्षेत्र में रहने वाले 3 से 5 हजार आदिवासियों का समूह उनका परिवार जो है उन को विस्थापित किया जाएगा, उन्हें दूसरे जगह भेजा जाएगा जो उनका मूल अस्तित्व है वह खतरे में आ रहा है । उनको मुआवजा की कुछ राशि तो दी जाती है लेकिन उनका जीवन जो है वह पूरी तरीके से समाप्त हो जाता है क्या कुछ रुपयों के नाम से आप अपने पूर्वजों की जमीन जायदाद छोड़कर वहां से हटना चाहेंगे । आज सभ्य समाज की जिम्मेदारी बनती है कि जो हमारे क्षेत्र के हमारे आसपास के लोग हैं जिनकी हम मदद कर सकते हैं उनकी मदद के लिए सामने आए।

४. ऑक्सीजन की कमी का असर हम देख ही चुके हैं कोरोनाकाल में आज हम इसके बाद भी इसकी कीमत नहीं पहचानेंगे तो हमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा हमें पेड़ मुफ्त में ऑक्सीजन प्रदान करते हैं और हमारे कार्बन के उत्सर्जन को ग्रहण करते हैं जिससे यह प्रकृति सुचारू रूप से चलती है और पेड़ों के कट जाने से इतनी भारी मात्रा में कट जाने से यह बैलेंस पूरी तरीके से बिगड़ जाएगा जिससे दिल्ली में हम देख रहे हैं कि हवा में जो है कितनी प्रदूषित मात्रा हो रही है जिससे वहां सांस लेना भी कठिन हो रहा है और तरह-तरह की बीमारियां हो रही है तो उससे बचने के लिए भी इन जंगलों को बचाना बहुत जरूरी है।

५. वर्षा के हिसाब से देखें तो जो बादल आते हैं वह हसदेव के जंगलों से टकरा करके इनकी आद्रता के कारण हमारे छत्तीसगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में बरसते हैं और अगर यह जंगल नहीं रहेंगे तो यह जो मानसून के बादल हैं वह उत्तर प्रदेश और नेपाल के क्षेत्रों तक चले जाएंगे और हमारे क्षेत्र में वृद्धि की समस्या हो जाएगी जिससे हमारा पीने की पानी की समस्या कृषि की समस्या और ना जाने कितने प्रकार की समस्याओं का निर्माण होगा और जिसका प्रत्यक्ष रूप से हम को नुकसान होगा

६. हसदेव का जंगल जो है वह मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से होते हुए झारखंड के पलामू वन क्षेत्र को जोड़ने वाला एक कॉरीडोर भी है इसमें अनेक वन्य प्राणी जो है विचरण करते हैं जिसमें बाघ हाथी इस तरीके के जीव भी शामिल हैं अगर हाथियों का यह जो रास्ता है जो इनका निवास है अगर हमने उसे छोड़ दिया तो हाथी आएंगे हमारे शहरों में और जब यहां थी हमारे शहरों की ओर आएंगे तो इसका भी नुकसान हमको ही भुगतना पड़ेगा.

आप हर वक्त हम को क्या लेना हमारा क्या फायदा की स्थिति में बैठकर नहीं दे सकते इस बार अगर आप चुप बैठेंगे तो इससे आपका ही नुकसान है आपके आने वाली भविष्य आपको कोशिश की कि आप चुप रहे आपने कुछ कदम नहीं उठाया और देखते ही देखते हसदेव के लाखों पेड़ कट गया जिसका खामियाजा हमको आने वाले भविष्य में भुगतना पड़ेगा।

हसदेव को बचाने की इस मुहिम में आ गया यह पूरा देश हमारे साथ खड़े होने के लिए तैयार है लेकिन क्या हमारे आस-पास के लोग जो हम प्रत्यक्ष रूप से इसका भुगतान करने वाले हैं क्या हम सामने नहीं आएंगे मैं आप से पूछना चाहता हूं कि हसदेव को बचाने के लिए अपना योगदान देने के लिए आगे आइए हसदेव को बचाइए हर एक माध्यम जो आपके पास उपलब्ध है उससे इस बात को उठाइए कि सरकार मजबूर हो जाए अपने फैसले को वापस लेने के लिए और हसदेव को बचाने के लिए वह सामने आए और हमारा हरा भरा जंगल बचा रहे और हम एक बेहतर जीवन जी सकें एक छोटी सी गुजारिश आप सभी लोगों से आगे आएं।

आइए हम सब मिलकर हसदेव अरण्य को बचाये ये संकल्प लें हसदेव अरण्य को बचाएंगे,,, ,,, ,,,हमारे जंगल में निवासरत आदिवासी भाइयों बहनों के अलावा हाथी ,भालू ,हिरण,बनभैसा, बंदर और करोड़ों पेड़ पौधों जीव जंतुओं की जीवन शैली को जीवंत रखें ।

जय हिंद जय छत्तीसगढ़ ,,,भुवन वर्मा संयोजक
हरिहर ऑक्सिजोन वृक्षारोपण परीक्षेत्र, अरपा साइट सेंदरी, रतनपुर रोड, बिलासपुर छत्तीसगढ़

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