मनीषियों एवं ग्रन्थों के अनुशीलन से नेपाल स्वयं को हिन्दू राष्ट्र घोषित करे – पुरी शंकराचार्य

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मनीषियों एवं ग्रन्थों के अनुशीलन से नेपाल स्वयं को हिन्दू राष्ट्र घोषित करे – पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 11 अप्रैल 2022

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जनकपुर ( नेपाल) – प्रारंभ से हमारी भावना रही है और पूर्व में भी हमने कहा था कि जब नेपाल सुरक्षित रहेगा तो भारत भी सुरक्षित रहेगा। नेपाल हिन्दू राष्ट्र के रूप में उद्भाषित हो , नेपाल हिन्दू राष्ट्र है। आप किसी की घोषणा की प्रतिक्षा ना करें , मनीषियों एवं ग्रन्थों का अनुसरण करते हुये नेपाल को हिन्दू राष्ट्र उद्भाषित करें।
उक्त उद्गार ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी ने रामनवमी के अवसर पर जनकपुर नेपाल में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिन्दू राष्ट्र सम्मेलन के प्रथम दिवस व्यक्त किये। पुरी शंकराचार्य जी ने कहा कि सांस्कृतिक धरातल पर भारत एवं नेपाल दोनों में अभिन्नता है , एकरूपता है। विशेष रूप से दोनों देशों के मध्य के क्षेत्र मिथलांचल में एकत्व है। चीन के शिकंजे में नेपाल ना फंसे इसके लिये सावधान रहने की आवश्यकता है। यह भारत की गृहनीति , रक्षानीति , विदेशनीति की दुर्बलता है कि वह नेपाल के सन्निकट होने पर भी उसको अपना नहीं पा रहा है। हिन्दू राष्ट्र के संबंध में विश्व का परिदृश्य यह है कि भारत एवं नेपाल की ओर मारीशस आदि देशों की दृष्टि है कि जैसे ही भारत एवं नेपाल स्वयं को हिन्दू राष्ट्र घोषित करें , मारीशस आदि लगभग बीस अन्य देश आगामी वर्षों में इसका अनुसरण करेंगे। आगे पुरी शंकराचार्य जी ने उद्घृत किया कि विश्व के कुल 204 देशों के अधिकांश में हिन्दू निवास करते हैं तथा वे देश भी जहाँ हिन्दू नहीं है ध्यान देकर सुन लें कि सबके पूर्वज का नाम सनातनी वैदिक आर्य हिन्दू है। वैदिक शास्त्रों में वर्णित है कि सच्चिदानन्द स्वरूप सर्वेश्वर के नाभिमण्डल से शब्द ब्रह्मात्मक ब्रह्मा जी प्रगट हुये , मनु और शतरुपा ब्रह्मा जी के लीलारूप हैं l पुराणों में वर्णित 84 लक्ष योनियों में जिसमें स्थावर , जङ्गम दोनों शामिल है सभी पुरूष शरीर मनु जी तथा स्त्री शरीर शतरूपा जी से ही उत्पन्न हैं। पुरी शंकराचार्य ने मोदी एवं प्रचण्ड को सावधान करते हुये कहा कि आप लोगों को अपने पूर्वजों की परख होनी चाहिये , क्योंकि शरीर छूटने के बाद धन , वैभव आदि काम नहीं आता है। विश्व स्तर पर राजनीति एवं विकास की वैदिक शास्त्र सम्मत परिभाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ भी अस्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि सुसंस्कृत , सुशिक्षित , सुरक्षित , सम्पन्न , सेवापरायण , स्वस्थ एवं सर्वहितप्रद व्यक्ति और समाज की संरचना राजनीति और विकास की परिभाषा है , यह मानवतावादी दृष्टिकोण से सभी को स्वीकार होना चाहिये तथा इसे क्रियान्वित करना न्यायोचित होगा। सनातन संस्कृति की व्यापकता की चर्चा करते हुये शंकराचार्य जी ने संकेत किया कि परमात्मा की शक्ति प्रकृति है तथा पृथ्वी , जल , तेज , वायु और आकाश प्रकृति के परिकर हैं , यदि मनुष्य स्वयं स्वस्थ क्रान्ति को क्रियान्वित करने में असमर्थ रहता है तो पृथ्वी आदि पञ्चभूत जो ऊर्जा के स्रोत है स्वयं को स्वस्थ क्रान्ति के लिये उद्घृत करते हैं। वैज्ञानिक धरातल पर भी सनातन सिद्धान्त सर्वोत्कृष्ट है क्योंकि पृथ्वी और सृष्टि की आयु की गणना में भी वैदिक शास्त्रों में वर्णित तथ्यों का वैज्ञानिक को अनुपालक होना पड़ता है। सनातनी दृष्टि से पृथ्वी की आयु एक अरब सन्तानबे करोड़ उन्तीस लाख उन्चास हजार एक सौ बाइस वर्ष है तथा सृष्टि का उद्भव इक्तीस नील दस खरब चालीस अरब वर्ष वर्णित है। उन्होंने कहा कि हमारे सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक अंश स्वभावतः अपने अंशी की ओर समाकृष्ट होता है जैसे जल स्वभावतः अपने अंशी महोदधि की ओर ही आकृष्ट रहता है। जीव ईश्वर के अंश सदृश है तथा इसी प्रकार ईश्वर जीव का अंशी सदृश मान्य है। सनातन सिद्धान्त की सर्वोत्कृष्टता के संबंध में दृष्टांत देते हुये शंकराचार्य जी ने कहा कि हमारे ईश्वर जगत बनाते और स्वयं बनते भी है इसलिये उनका साक्षात रामकृष्ण , राधामाधव के रूप में अवतार होता है जबकि अन्यों के ईश्वर सिर्फ जगत बनाते हैं स्वयं जगत बन नहीं सकते इसलिये उनका अवतार सम्भव नहीं। आधुनिक विज्ञान के अनुसार हमारा ईश्वर मैटर एवं मेकर दोनों के रूप में व्यक्त होता है।

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