छत्तीसगढ़ के बजट की कहानी : जहां 15 साल से मुख्यमंत्री ही वित्त मंत्री, उन्हीं के पिटारे से निकलता है प्रदेश का बजट-छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र आज से

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छत्तीसगढ़ के बजट की कहानी: जहां 15 साल से मुख्यमंत्री ही वित्त मंत्री, उन्हीं के पिटारे से निकलता है प्रदेश का बजट-छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र आज से

भुवन वर्मा बिलासपुर 7 मार्च 2022

रायपुर । 7 मार्च से शुरू हो रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चौथी बार आम बजट पेश करने को तैयार हैं। तय हुआ है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 का वार्षिक बजट 9 मार्च को सामने आएगा। बजट पेश करने की जिम्मेदारी वित्त मंत्री की होती है। लेकिन छत्तीसगढ़ में पिछले 15 साल से वित्त विभाग की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री अपने पास ही रख रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री ही बजट पेश करते हैं।

छत्तीसगढ़ गठन के बाद से ऐसा नहीं था। पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने डॉ. रामचंद्र सिंहदेव को वित्त मंत्री बनाया था। एक नवंबर 2000 को नया राज्य अस्तित्व में आया। नई सरकार बनी थी। ऐसे में पहला वार्षिक बजट 2001 में आया। डॉ. सिंहदेव ने तीन बार बजट पेश किया। 2003 के आखिर में प्रदेश की सत्ता बदली और डॉ. रमन सिंह ने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली। उस समय भी वह परंपरा कायम थी। डॉ. रमन सिंह ने बिलासपुर विधायक अमर अग्रवाल को वित्त मंत्री बनाया। इस हैसियत से 2004-05 से 2006-07 तक के तीन बजट अमर अग्रवाल ने पेश किए। उसके बाद अमर अग्रवाल को पद से हटा दिया गया। डॉ. रमन सिंह ने मुख्यमंत्री पद के साथ वित्त विभाग की भी जिम्मेदारी संभाल ली। उसके बाद अगली दो सरकारों में भी उन्होंने यह विभाग नहीं छोड़ा। 2018 में कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी। इस बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंत्रालयों के बंटवारे में पूर्ववर्ती डॉ. रमन सिंह का ही अनुसरण किया। वित्त, सामान्य प्रशासन और जनसंपर्क विभाग की जिम्मेदारी खुद मुख्यमंत्री ने अपने पास रखी। 2019 से 2021 तक वे तीन आम बजट पेश कर चुके हैं। वित्त मंत्रियों की कंजूसी से उठे हैं विवाद दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहते थे कि उनके वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव इतने सख्त थे कि हर खर्चे के प्रस्ताव पर आपत्ति की उंगली रख देते थे। जोगी कहते थे उनसे सरकारी खजाने से पैसा निकलवाना बहुत मुश्किल काम होता था। हां यह अलग विषय था कि उनका हर फैसला राज्य के हित में होता था। वे सरकारी कोष का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। बताया जाता है, सिंहदेव के इस रवैये के चलते जोगी सरकार में भी टकराव की स्थिति आई थी। भाजपा में पहली बगावत की चपेट में आए थे।

अमर अग्रवाल भाजपा के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने अमर अग्रवाल को वित्त मंत्रालय दिया था। उस समय भाजपा में भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की प्रतिस्पर्धा शांत नहीं हो पाई थी। बताया जाता है, 2006 में भाजपा के 12 विधायकों ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। वे लोग दिल्ली जाकर केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी शिकायत भी कर आए। उनमें ननकीराम कंवर और अमर अग्रवाल भी शामिल थे। विवाद शांत हुआ लेकिन बागी विधायकों पर कार्रवाई हो गई। अमर अग्रवाल से मंत्रालय छीन लिया गया। अगली बार मंत्री बनाया लेकिन वित्विय भाग नहीं दिया । 2008 के आम चुनाव में अमर अग्रवाल फिर चुनाव जीतकर आए। पार्टी में मजबूत स्थिति की वजह से डॉ. रमन सिंह मंत्रिमंडल में उनको जगह तो मिल गई, लेकिन वित्त मंत्रालय जैसी प्रोफाइल नहीं मिली। बाद में उन्हें स्वास्थ्य, नगरीय प्रशासन, वाणिज्यिक कर, उद्योग व्यापार जैसे विभागों की जिम्मेदारी दी गई।

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