“14 फरवरी वेलेंटाइन डे” पर विशेष प्रेमगाथा : जीवन के खुरदुरे पथ पर दो जोड़ी कमजोर पैरों से साथ-साथ चलने का वादा निभाती : एक दिव्यांग वैलेंटाइन जोड़ी “छगनाराम और लीलादेवी”

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“14 फरवरी वेलेंटाइन डे” पर विशेष प्रेमगाथा : जीवन के खुरदुरे पथ पर दो जोड़ी कमजोर पैरों से साथ-साथ चलने का वादा निभाती : एक दिव्यांग वैलेंटाइन जोड़ी “छगनाराम और लीलादेवी”

भुवन वर्मा बिलासपुर 14 फरवरी 2022

राजस्थान के जालौर जिले के बगौड़ा तहसील में एक गरीब कृषक श्री खसाराम प्रजापत और श्रीमती सीता देवी के घर तीन कन्याओं के बाद 18-06-1987 को जन्मे छगनाराम प्रजापत। तीन पुत्रियों के बाद जन्मे पुत्र को माता-पिता ने और इकलौते भाई को बहनों ने खूब लाड़ किया। कभी कंधों पर उठाया कभी गोद मे घुमाया।कुछ समय बाद एक छोटा भाई भी जन्मा। दोनो भाई स्कूल जाकर शिक्षित होने का प्रयास करने लगे।काल चक्र चलता रहा कुछ सालों बाद एक बड़ी बहन का असामयिक निधन हो गया। दो बहनों की शादी हो गई। छगन प्रजापत बताते हैं कि मम्मी को अचानक टीबी की बीमारी हो जाने से परिवार पर जैसे दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा।उन्हें इलाज के लिये दो साल तक घर से 500 किमी दूर भावनगर गुजरात जाकर रहना पड़ा। दस बारह वर्ष की उम्र में मुझ पर घर के कामों की जिम्मेदारी आ गई। उसी समय मैं पेड़ से गिर जाने से घायल हो गया कमर की हड्डी में चोट लगी थी। दिव्यांगता से मेरा यह प्रथम परिचय था।अब मेरा सम्बोधन लूला लँगड़ा हो गया था। धीरे-धीरे मेरे पैर की स्थिती बिगड़ने लगी। बाद में जब डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि विटामिन डी की कमी से होने वाला रोग रिकेट्स के कारण ऐसा हुआ।बारहवीं तक पढ़ाई करने के बाद मैं गाँव से बाहर पढ़ने गया और बीए करके लौटने के बाद पिताजी के साथ खेती के काम में और माताजी के साथ स्कूल पोषाहार में हाथ बंटाता था। उस समय सब मेरी शादी के लिये माँ पर दबाव डालते कि इस लूले लँगड़े की शादी करवा दो। मुझे बुरा लगता माँ से कहता कि मेरे लिये आपको चिंता करने की जरूरत नही है।
एक कार्यक्रम “सरकार का प्रशासन गाँवो के संग” के दौरान मेरी मुलाक़ात पास के गाँव जूनी बाली में रहने वाली लीला देवी से हुई जो दिव्यांगता पेंशन योजना लागू करवाने गाँव आई थी।वो हमारे ही समाज की पढ़ी लिखी संस्कारी लड़की थी। उससे बात करके और मिलकर मैंने पहले उसके विचार जाने और शारीरिक अक्षमता को नजरअंदाज कर अपने और उसके विचारों में मेल देखकर मैंने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे उसने सहर्ष स्वीकारा । मैने अपने और उनके परिवार वालों से बात की और विवाह के लिये सभी राजी हो गए। हम दोनो का विवाह “आटासाटा” प्रथा के कारण अटका हुआ था। इस प्रथा में दो परिवार आपस मे एक बेटा और एक बेटी का विवाह दूसरे परिवार के एक बेटे और बेटी से करते हैं। मेरी बहनों की शादी पहले ही हो चुकी थी। मैंने इस जैसी कुप्रथाओं को अस्वीकारा।
मेरा विवाह लव कम अरेंज मैरिज है, क्योंकि मैंने अपनी पसंद की लड़की से उसकी और परिवार की रजामंदी से रीति रिवाजों के अनुसार विवाह किया।लीला के पिता भी कृषक है उसके परिवार में चार भाई और दो बहन हैं। हमारे विवाह को अब सात वर्ष हो चुके हैं।सादगीपसन्द ,अच्छे स्वभाव की समझदार पत्नी का साथ मेरे लिये दाहिने हाथ के समान है। वो घर में होने पर बैठकर चल पाती है और बाहर बैसाखी के सहारे चलती है।पांच साल के बच्चे को संभालती है तथा मेरे माता की अच्छी देखभाल करती है। हमारा जीवन सुखमय है।
एक समय था जब 500 रुपये और कॉलेज की फीस के लिये साहूकार से ब्याज पर पैसे लेता था पर विवाह के बाद अब मेरी स्थिती बदल गई है। मैंने अपनी पुश्तैनी ज़मीन में प्लाटिंग की और दुकान बनवाकर किराए पर दिया है मेरा अपना बिजनेस है। मैं दिव्यांगता के वावजूद तिपहिया और चार-पहिया वाहन चला सकता हूँ।
2014 में मैं दिव्यांग सेवा समिति से जुड़ा 2017 में मुझे उपखण्ड के अध्यक्ष मनोनीत किया गया।मुझे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी के हाथों दिव्यांग सम्मान प्राप्त हुआ । विकलांग क्रिकेट टीम में तीसरा स्थान पाने पर,प्रजापत समाज द्वारा, उपखण्ड तथा जिला स्तर पर सम्मानित किया गया।2022 में मैजिक ऑफ रिकार्ड ने बेस्ट 51हस्तियों में चुनकर अवार्ड दिया।अब तक20 अवार्ड मिल चुके हैं।
“मेरा जीवन संघर्षों से भरा हुआ है पर मैं हर संघर्ष को अवसर में बदल लेने की सोच रखता हूँ।”
इस समय मैं अपने गांव में सर्वाधिक शिक्षित पाँच डिग्रीधारी युवक हूँ।एक समय अपमान सूचक लगने वाला “लूला-लँगड़ा” शब्द अब मुझे चुनौती की तरह लगता है। अब मैं इसे गर्व से स्वीकारता हूँ।
“छगनाराम और लीलादेवी की आदर्श युवा जोड़ी सदा तन-मन से जुड़ी रहे, सुख-हर्ष से जीवन जीकर समाज मे एक मिशाल बनें अस्मिता स्वाभिमान परिवार की ओर से अनन्त शुभकामनाएँ…”

प्रस्तुति-श्रीमती मेनका वर्मा भिलाई

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