भारत शीघ्र हिन्दू राष्ट्र उद्भाषित होगा – पुरी शंकराचार्य

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भारत शीघ्र हिन्दू राष्ट्र उद्भाषित होगा – पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 12 फ़रवरी 2022

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

बिलासपुर – ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज ने गीता भवन बिलासपुर में आयोजित दो दिवसीय हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी के प्रथम सत्र में धर्म , अध्यात्म एवं राष्ट्र से संबंधित विभिन्न जिज्ञासाओं का समाधान किया। सब तरफ हिंदू राष्ट्र की चर्चा होने के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि भाद्र के महीने में हिंदू राष्ट्र के बारे में हमने ही कहा था उसी की लहर चल पड़ी है। सब के पूर्वज सनातनी वैदिक आर्य हिंदू थे , धर्म और ब्रह्म के मर्मज्ञ थे , लौकिक और पारलौकिक उत्कर्ष तथा परमात्मा प्राप्ति का मार्ग भी उनके पास प्रशस्त था। हमने कहा था कि साढ़े तीन वर्षों में भारत हिंदू राष्ट्र बन जायेगा , छह महीने तो बीत ही गये भारत हिंदू राष्ट्र बन के रहेगा। एक जिज्ञासु के द्वारा संस्कृत विषय को केवल कर्मकांड का विषय बना कर रख देने के संबंध में जब प्रश्न किया गया तब उन्होंने बतलाया कि अंग्रेजों की कूटनीति के प्रभाव में आकर प्रथम प्रधानमंत्री ने कहा था कि संस्कृत इस ए डेड लैंग्वेज यानि संस्कृत मृत भाषा है। इस प्रकार स्वतंत्र भारत में संस्कृत और संस्कृति के प्रति अनास्था उत्पन्न कर दी गई। फलस्वरूप संस्कृत वाले केवल ज्योतिषी , वैद्य , कथावाचक, कर्मकांडी इत्यादि पांच जीविका तक ही सीमित रह गये जबकि अंग्रेजी भाषा वालों के लिये पचासों जीविका के स्रोत सुरक्षित रखे गये हैं। संस्कृत के लिये जीविका के स्रोत अत्यंत सीमित रख दिये गये। आज कर्मकांड के माध्यम से किसी अंश में संस्कृत उज्जीवित है। जबकि 32 प्रकार की विद्या और 64 प्रकार की कलाओं का उद्गम स्थान संस्कृत ही है। संस्कृत और संस्कृति जिसके जीवन में नहीं है वह असंस्कृत हो जाता है इसे समझने की आवश्यकता है। श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य ने कहा की चंद्र , सूर्य और अग्नि भगवान के तीन नेत्र हैं इसी प्रकार ज्ञान , वैराग्य और भक्ति तथा नाद , बिंदु और कला यह भी भगवान के तीन नेत्र हैं। ज्ञानाग्नि का प्रतीक तीसरा नेत्र है। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में है भाई भाई के विषय पर उन्होंने कहा कि भाईचारा अपनत्व का द्योतक है नेताओं ने फूट डाली है। भावनात्मक दृष्टि से भाई मेरे का संबंध बनाया गया था , विकास के नाम पर कुल धर्म और जाति धर्म को विकृत करने का प्रयास नहीं करना चाहिये। उक्ताशय की जानकारी पुरी शंकराचार्य जी के शिष्य अवधेश नंदन श्रीवास्तव ने दी।

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