जीवन में कभी हार न मानने की पर्याय : संघर्ष कर मुकाम हासिल करने वाली चंचला की अदभुत रचना
जीवन में कभी हार न मानने की पर्याय : संघर्ष कर मुकाम हासिल करने वाली चंचला की अदभुत रचना
भुवन वर्मा बिलासपुर 8 दिसंबर 2021
रायगढ़ । सुश्री चंचला पटेल विषम परिस्थितियों में संघर्ष कर मुकाम बनाना कला सीखनी है तो चंचला से सीखे। बचपन से आठवीं क्लास तक एक आम इंसान याने हम सब की तरह शिक्षा ग्रहण कर रही थी । तभी स्कूली जीवन में एक हादसे में अपना एक पैर खो चुकी है । उसके बावजूद अपनी पढ़ाई पूरी की और पोस्ट ग्रेजुएट के बाद स्वयं स्पेशल एजुकेशन टीचर के रूप में वर्तमान में जिंदल रायगढ़ के स्कूल में कार्यरत है । इसके अलावा एक अच्छी नृत्यांगना योग प्रशिक्षक की दायित्व का भी निर्वहन कर रही है । एडवेंचर पहली शौक है । बैसाखी के सहारे बिना ब्रेकिंग डोंगरगढ़ बमलेश्वरी की सीढ़ियां चढ़कर माता रानी के दर्शन भी की है ।
यह कविता चंचला के जीवन के सच्ची घटना पर बनाई है । किसी प्रकार की काल्पनिक नहीं है, एक घटना के बाद दो बैसाखी के सहारे अपना जीवन कैसे व्यतीत कर रही है,सुंदर ढंग से अपने शब्दों से इसे मोती की तरह स्वयं पिरोई है l
मेरी दो बैशाखी….
तुमसे ही मेरी जिंदगी है ,
तुमसे ही गहरी दोस्ती है।
हर जगह साथ चलने वाली
तू ही गगनपरस्ती है।
तुम बिन अधूरी हूं ।।
तू हर कष्ट निवारण करती ,
तू हर संकट में दम भरती ।
तुझे हर पल दिल से लगाती
तुम बिन अधूरी हूं l।
तुझ बिन ना ड्यूटी जा पाऊं ,
तुझे छोड़ ना कुछ कर पाऊं ।
तुम्हें हर पल नजरती हूं
तुम बिन अधूरी हूं ।।
तेरे ही सहारे से
सैकड़ों सीढ़ी चढ़ ली थी ।
तेरे दम पर ही मैं
चढ़ने की प्रण कर ली थी।
तेरे सहारे हर पल
मैं व्यस्त रहती हूं ।
तुम बिन अधूरी हूं।।
आंख खुले जब तब
तुम्हें सामने पाऊं मैं ,
तेरी बदौलत मिली सफलता का
गुणगान ना कर पाऊं मैं।
तेरे सहारे मिली पहचान
तेरे बिना फूटी गगरी हूं ।
तुम बिन अधूरी हूं ।।
तुमसे मुझे मिला सब कुछ
तूने ही दिखाया संसार।
तू ही मेरी हर खुशी है
तू है संकटहार ।।
पांव नही लेकिन
अपने पैरों पर खड़ी हूं।
हर मुश्किल आसान बनाकर
अपने लक्ष्य पर अड़ी हुई हूं।।
तुझे देख चमके मेरी नैना ,
ना देख बहती आंखी।
हर पल जीने की राह दिखाती
वो है मेरी दो बैसाखी।।
चंचला पटेल दिव्यांग ,ग्राम – बघनपुर जिला – रायगढ़ छत्तीसगढ़