विश्व दिव्यांग दिवस पर विशेष : जनमानस को यह समझना होगा कि अक्षमता से जूझ रहे लोगों को सहानुभूति नहीं चाहिए , जरूरत पड़ने पर बस सहयोग किए जाने कीहोती है दरकार
विश्व दिव्यांग दिवस पर विशेष : जनमानस को यह समझना होगा कि अक्षमता से जूझ रहे लोगों को सहानुभूति नहीं चाहिए , जरूरत पड़ने पर बस सहयोग किए जाने कीहोती है दरकार
भुवन वर्मा बिलासपुर 3 दिसंबर 2021
भिलाई से श्रीमती मेनका वर्मा की रिपोर्ट
रायपुर । विश्व विकलांग दिवस पर खेलों का प्रदर्शन कर एक दिवसीय समारोह बनाम प्रदर्शन के बहाने सहानुभूति की बजाय दिव्यांगजनों को प्रशिक्षण और अवसर दें।उन्हें अपने बीच स्वीकारें। उन्हें सम्मान,प्यार और अपनापन दें। केवल कुछ सरकारी प्रयास के सरकारी भुलावे की बजाय दिव्यांगजनों को सकारात्मक व्यवहार के साथ सामान्य जीवन जीने के अवसर देकर देखिये ।उनका जज़्बा देखकर आप स्वयं दंग रह जाएंगे। अपनी शारीरिक कमियों पर विजय पाते हुए ,आज
हर क्षेत्र में दिव्यांगों ने खुद को साबित किया है। और अपनी कमियों को जीतकर खूबियों को प्रदर्शित किया है।
जिस गति से समस्याएं और कीमतें बढ़ रही हैं, दिव्यांगजनों को दी जा रही सुविधाएं केवल मजाक लगती हैं। छतीसगढ़ में 300/400 रुपए दिव्यांग पेंशन, पैरा खिलाड़ियों को गोल्ड मैडल पर 15,000 रुपये सिल्वर मैडल पर 10,000 और ब्रांज पर 7,500 रूपये। जबकि अन्य राज्यों में यह सम्मान राशि तीन लाख तक दिया जाता है।
सरकारी प्रयासों के अलावा आम लोगों में मन में भी उन्हें साथ व सम्मान देने का भाव जरूरी है । जनमानस को यह समझना होगा कि अक्षमता से जूझ रहे लोगों को सहानुभूति नहीं चाहिए । जरूरत पड़ने पर बस सहयोग किए जाने की दरकार होती है । आमजन का संवेदनशील व्यवहार उन्हें कमतर नहीं बल्कि बराबरी महसूस करवाता है । परिवार और समाज से मिले सकारात्मक रवैये से ही दिव्यांगजन खुद को अपने परिवेश में जुड़ा हुआ पाते हैं,वहीं इसके अभाव में वे खुद को अलग-थलग पाकर मानसिक रूप से भी टूट जाते हैं।
यूँ भी किसी इंसान का मूल्यांकन उनके शारीरिक क्षमता से नहीं उनके सोच और काबिलियत से की जानी चाहिए। हमारे देश में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जिन्होंने 95% तक शारीरिक अक्षमता के बावजूद भी खुद साबित किया है।
“संघर्षगाथा” कॉलम के जरिये अस्मिता और स्वाभिमान ने अब तक समाज के समक्ष उदाहरण बनकर प्रस्तुत हुये ,15 दिव्यांगजनों की गाथायें प्रकाशित किया है। आज विश्व दिव्यांग दिवस पर उनके विचार हम पुनः प्रेषित करते हुए उन्हें नमन करते हैं।
एक ट्रक-एक्सीडेंट में अपना एक पैर गंवा चुकी रायगढ़ की चंचला पटेल अब स्वयं विशेष बच्चों की शिक्षिका बनकर उन्हें प्रशिक्षित कर रही है। सियाचीन से आ चुकी हैं तथा बैसाखी की सहायता से 500 से अधिक सीढ़ियां चढ़कर रिकॉर्ड बना चुकी हैं। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित उनका विद्यार्थी ‘विभूअग्रवाल’ अपनी माता के स्नेह और कुशल परवरिश की वजह से विशेष नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहा है।मोहन आदित्य जी जो टाइक्वण्डों ट्रेनर तथा सीनियर डायलिसिस हैं। कहते हैं हादसे आपके शरीर को कमजोर करते हैं इरादों को नहीं।
अंतर्राराष्ट्रीय दिव्यांग मंच के सेकेट्री अरुण कुमार सिंह जिन्होंने दिव्यांग हितों और अधिकार के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया है। वे कहते हैं दिव्यांगता अभिशाप नही है।
रायगढ़ की श्रीमती जस्सी फिलिप जिन्होंने मदरटेरेसा की गोद में बचपन गुजारा है । जो स्वयं व्हीलचेयर पर होकर भी सड़कों पर अपने बच्चों के होते लावारिस घूमते बुजुर्गों को घर लेकर उनकी सेवा करती हैं।
अलवर राजस्थान के डॉ. पीयूष गोस्वामी व श्रीमती सविता गोस्वामी मंथन फाउंडेशन चेरिटेबल ट्रस्ट नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन के संचालक जिन्होंने विवाह पश्चात से ही सेरेबल पाल्सी,डाउन सिंड्रोम,ऑटिज्म,दृष्टिबाधित आदि दिव्यांग बच्चों की चिकित्सा सेवा व शिक्षा के लिये ततपरता से लगे हुए हैं कहते हैं।इन बच्चों में विशेष क्षमता व प्रतिभा है।इन्हें पहचानकर सही दिशा दी जाय तो ये आत्मनिर्भरता के साथ अलग पहचान बना पायेंगे।हजारीबाग के रविन्द्र कुमार,कोणार्क की श्रियारानी,डोंगरगढ़ के दिव्यांगरत्न से सम्मानित ऋषिमिश्रा,दुर्ग के नम्मू देवांगन,ने खुद को साबित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी । रायपुर के सिविल इंजीनियर चित्रसेन साहू प्रथम डबल एम्प्यूटी पर्वतारोही हैं कहते हैं- “दुनिया में एक ही विकलांगता है और वह है नकारात्मक सोच”
वहीं दिल्ली की निधि मिश्रा ने दृष्टिबाधित होते हुए भी पैरालम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है तथा जेएनयू दिल्ली के छात्रसंघ चुनावों में मजबूती से उतरी तथा अब प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रही हैं आप कहती हैं” सहानुभूति के बदले समानुभूति दीजिये फिर देखिये एक दिव्यांग क्या कर सकता है।
धमतरी कुरूद के 95%दिव्यांग चित्रकार जिनकी कला प्रदर्शनियाँ विदेशों में भी लगी हैं।मानते हैं कि मनुष्य अनन्त सम्भावनाओं से भरा हुआ है।
वहीं जांजगीर की राष्ट्रीय पैरा बॉलीबॉल खिलाड़ी अनिता जांगड़े टोकरी भर मैडल लेकर भी आजीविका के लिये छोटी सी नौकरी की मोहताज हैं।
परिवार व समाज यदि दिव्यांगजनों को उनके हिस्से का सम्मान दे, जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध करवाकर उनका
हक दे, देश, समाज और परिवार उन्हें अपने जैसा स्वीकारें और बरसों से चली आ रही अपनी मानसिक विकलांगता दूर करे।
तभी विश्व दिव्यांग दिवस मनाने की सार्थकता है।