भुवन वर्मा, बिलासपुर 29 अक्टूबर 2019
बस्तर जहां के कण कण में प्रकृति रुनझुन संगीत भरे तान छेड़ती छतीसगढ़ महतारी की गोदी में खेला करती है , जहाँ प्राकृतिक झरने पूरे सबाब के साथ कल- कल ,छल -छल बहा करती है मीठी सरगम के साथ ,जहां ऊंचे -ऊंचे पेड़ पौधे संरक्षित करती है नन्हे नन्हे पौधों को, हरी -भरी कोमल घासों को , जहाँ की आम जन मानस झुमा करती है मधुप्याला के संग , जहां के अपढ़ जन गढ़ा करते है अद्भुत चित्रकारी, काष्ठ कला , भित्तचित्र की निराली दुनिया को ……
जी हां वही बस्तर जिसके उत्तरी भाग में बसा है कांकेर।
प्रकृति प्रदत्त छतीसगढ़ की अनमोल धरोहर की सद्भभावना यात्रा की चन्द्रनाहू कुर्मी क्षत्रिय समाज भिलाई नगर के सदस्यों ने। सुबह 6 बजे कुर्मी भवन सेक्टर 7 भिलाई नगर में सबके एक एक करके पहुंचने का शिलशिला शुरू हुई जो 7 बजे तक चली । 7 बजे हमारी यात्रा भिलाई से कांकेर के लिए प्रारंभ हुई बालोद से ज्यो ज्यों आगे बढ़ते जा रहे थे त्यों त्यों साफ सुधरी चौड़ी सड़कें देख तारीफ जुबां पे आ रही थी इन सड़कों में दौड़ती हमारी बसें पहुंची “राम वाटिका” जहां टमाटर की चटनी के साथ गर्मागर्म पकोड़े, पोहा खाकर मन तृप्त हो गया ।अब सभी की भूख शांत हो चुकी थी । रिमझिम बारिश के बीच चाय से उठता कोहरा ठंड का एहसास करा रही थी एक की जगह 2 कप चाय की तलब सभी को थी जो पूरी हुई। घने वृक्षों ,पौधों ,फूलों के बीच भगवान श्रीरामचन्द्र जी के जीवन से जुड़ी तमाम घटनाओं का चित्रण मूर्तिकला से अभिव्यक्त करने की कोशिश ने उस रामवाटिका को मनोहारी बना दिया है यहां के रमणीय दृश्यों ने एक और सुखद जिज्ञासा को जागृत किया कि आगे का सफर भी सुहाना होगा ।

जैसे- जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे कल्पना हिलोरे ले रही थी गढ़िया पर्वत को देखने -जानने की ,,, आखिर हम पहुंच ही गये गढ़िया पर्वत की उस जमीन पर जहाँ से हमे चढाई करनी थी उस पर्वत श्रृंखला की अंतिम छोर तक पैदल चढ़ना दुरूह लगा तो हमने स्कार्पियो से घुमावदार पवर्त की सफर तय करते हुये रोमांचित होते रहे ।एक तरफ पहाड़ की ऊंचाई और दूसरी तरफ गहरी खाई को देखकर सुखदनुभूति हुई पहाड़ की ऊंचाई से कांकेर(शहर) का नजारा देखते बनता है। गढ़िया देव मंदिर तक पहुंचने के लिए ऊंची नीची चट्टानों के बीच होते हुए पैदल चलना होता है। जहां स्थित करीब एक हजार वर्ष पुराना मन्दिर में स्थापित गढियादेव और अन्य देवों के दर्शन पश्चात देवी माँ के दर्शन किये, गुफा में विराजमान देवोँ के दर्शन लाभ लेते हुए पहाड़ के ऊपर में स्थित तालाब जो पहाड़ों से घिरा हुआ है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये कभी सूखता नही, और न जाने कितनी किवंदंतियों से भरे है ये तालाब दर्शन पश्चात वनवासियों के अर्थोपाजन का मुख्य आधार जंगलो में पाए जाने वाले मौसमी फलों, सब्जीयों ने हमे आकृष्ट किया और अभी सीजन है सीताफल का किसी ने 100 रुपये में टोकनी भर लिए तो किसी ने 20 रुपया भाग में ल कुछ पके कुछ कच्चे फल लेकर सब आनंदित हो रहे थे इतना ही नही वहां की सब्जी भिंडी करेला, तुमा भी खरीदे। मजे के साथ शॉपिंग पूरी हुई। अब रवानगी हुई कांकेर से लगभग 10 किलोमीटर की दुरी पर स्थित मलाजकुंडम की रमणीय संसार जिसे प्रकृति ने अपने हाथों से सजाया है सँवारा है को देखने की उत्सुकता लिए सकरी सड़को से गुजरते घने जंगलो के बीच सीताफल से लदे पेड़ों को देखकर कौतुहल भरे स्वर गाड़ी रोको ,गाड़ी रोको जैसे हर कोई फल तोड़ने आतुर, खिड़की से कइयों हाथ सीताफल तोड़ने की जुगत लगा रहे थे और खिलखिला रहे थे रास्ते मे जगह जगह सीता फल की ढेरी देख मन प्रफुल्लित हो उठा अब हम पहुंच चुके थे मलाजकुंडम के समीप बस से उतरने के बाद करीब 200 मीटर की दूरी पैदल तय करते हुए हम पहुँच चुके थे जलप्रपात के समीप जहां मैदानी क्षेत्र में हमारे लिए भोजन बन रहा था मसालों की खुशबू हमारे भूख को और बढ़ा रही थी। खुला आसमान ,पहाड़ों से घिरा सुरम्य वादियाँ , ऊंचे -ऊंचे वृक्षों के झुंड , बड़े बड़े चट्टानो से टकराते जलप्रपात के कर्णप्रिय आवाज के बीच जायकेदार भोजन का रसास्वादन करते मन प्रफुल्लित हो गया।

मलाजकुंड जलप्रपात की छटा देखते बन रही थी कल कल ,छल छल करती ये झरने मधुर तान लिए मानव मन को आल्हादित कर रही थी। इस अनुपम छबि को अपलक निहारते बस यहीं ठहर जाने को आतुर ये मन कल्पना की उड़ान भरने लगी थी ।पहाड़ों से घिरा ये क्षेत्र जहां धान की फसलें तो थी ही साथ ही उडद जैसे पौधे से लहलाती खेती भी दिखाई दे रही थी पहाड़ों से निकलता धुंआ एहसास करा रही थी कि बादलों का झुंड भी इस पत्थरों से टकराते जलप्रपात के छल छल, कल कल ध्वनि से मन्त्रमुग्घ हो ऊंचे ऊंचे देवदार के वृक्षों से अठखेलियां करते धरा को छूने आतुर हो। मौसम खुशगवार था बदली छाई थी कभी कभी सूर्य देव भी बादलों की ओट से झांक लिया करते थे । मलाजकुंडम के ऊपरी छोर तक पहुंचने के लिए तकरीबन 350 सीढ़ीयो की चढ़ाई पूरी करनी थी बहुतों ने इस विहंगम दृश्य का आनन्द लेने गन्तव्य तक पहुंच गए ।
ज्यों ज्यों शाम ढलती रही जलप्रपात अपने भव्यतम रूप लिए पत्थरों से टकराते गर्जना करती रही । सूर्य अस्तांचल की ओर प्रस्थान कर चुके थे, चिड़िया अपने घोसलों में लौट आई थी वक्त संकेत दे रहा था हमारी वापसी का अब हम सब चाय की चुश्कियो के बीच मलाजकुंडम से विदा ले रहे थे इसी वादे के साथ कि – पुनः आएंगे प्रकृत्ति के इस सुरम्य वादियों में
डॉ दुलारी चन्द्राकर
रिसाली सेक्टर भिलाई
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