पराक्रम के देवता हैं भगवान नरसिंह – आज जयंती विशेष

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पराक्रम के देवता हैं भगवान नरसिंह – आज जयंती विशेष

भुवन वर्मा बिलासपुर 25 मई 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायपुर — दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप से अपने अनन्य भक्त प्रहलाद को बचाने के लिये भगवान विष्णु ने वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आधे नर और आधे सिंह के रूप में नरसिंह अवतार लिया। यही कारण है कि इस दिन को उनके जन्मदिवस या जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। ये शक्ति और पराक्रम के देवता माने जाते हैं। मान्यता है कि इसकी पूजा-अर्चना से हर तरह के संकट से रक्षा होती है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को निर्भयता और सुरक्षा प्राप्त होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि एक समय कश्यप नामक ऋषि थे। राजा दक्ष ने अपनी दो पुत्रियों अदिति और दिति का विवाह उनके साथ किया था। दिति के गर्भ से उनके दो पुत्र हुये , जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकश्यप था। पृथ्वी की रक्षा के हेतु भगवान विष्णु ने वराह अवतार में हिरण्याक्ष को मार दिया था। अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या करके अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया। उसने वरदान मांग लिया कि ना उसे कोई मनुष्य और ना ही कोई पशु मार पाये। उसकी मृत्यु ना दिन हो और ना रात में। वह ना जल में और ना ही थल में मारा जाये। वरदान प्राप्त होने के बाद वह खुद को अजर-अमर समझने लगा था। उन्होंने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और अपनी प्रजा पर भी अत्याचार करने लगा। इसके राज्य में कोई भी भगवान का नाम नही लेता था। यदि कोई भगवान का नाम लेता या पूजा करता तो उसे कठोर दंड दिया जाता था। इसी दौरान हिरण्यकश्यपु की पत्नी कयाधु के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम प्रहलाद रखा गया।

एक राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रहलाद भगवान नारायण का परम भक्त था। वह सदैव हरि का नाम जपता रहता था और भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। वह सदा अपने पिता द्वारा किये जा रहे अत्याचारों का विरोध करता था। हिरण्यकश्यप को प्रहलाद का विष्णु की भक्ति में लीन रहना कतई पसंद नहीं था। उसने नारायण भक्ति से हटाने के लिये कई प्रयास किये परंतु भक्त प्रहलाद के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। जिसके बाद हिरण्याकश्यप ने उस पर भी अत्याचार करने आरंभ कर दिये। कई बार प्रहलाद को मारने के प्रयास किये गये परंतु भगवान विष्णु सदैव अपने भक्त को बचा लेते थे। प्रहलाद अपने पथ से विचलित नहीं हुआ , वह अपने पिता को सदा यही कहता था कि आप मुझ पर कितना भी अत्याचार कर लें मुझे नारायण हर बार बचा लेंगे। इन बातों से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिंदा जलाने का प्रयास किया। होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। लेकिन जब प्रहलाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में बैठी तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई लेकिन प्रहलाद बच गये।

इस घटना के बाद हिरण्यकश्यप को अत्यधिक क्रोध आ गया। एक दिन हिरण्यकश्यप ने कहा कि तू नारायण नारायण करता फिरता है , बता कहां है तेरा नारायण ? प्रहलाद ने जवाब दिया पिताजी मेरे नारायण इस सृष्टि के कण कण में व्याप्त हैं। क्रोधित हिरण्यकश्यप ने कहा कि’क्या तेरा भगवान इस खंभे में भी है? प्रह्लाद के हां कहते ही हिरण्यकश्यप ने खंभे पर प्रहार कर दिया तभी खंभे को चीरकर भगवान विष्णु आधे शेर और आधे मनुष्य रूप में नृसिंह अवतार लेकर प्रकट हुये। उस समय ना दिन का समय था ना रात का बल्कि वह दोनों बेला के मिलन का समय था। उन्होंने हिरण्यकश्यप को ना जल में मारा ना थल में बल्कि अपनी गोद में लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया। ना ही उन्होंने घर के भीतर और ना बाहर , ना अस्त्र से ना शस्त्र से बल्कि चौखट के बीचो-बीच अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध किया। इस तरह से भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा भी की और ब्रह्माजी के वरदान का मान भी रखा।

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