भुवन वर्मा, बिलासपुर 02 अक्टूबर 2019

स्कूल शिक्षा मंत्री डा0 प्रेमसाय सिंह के चर्चित ओएसडी राजेश सिंह की छुट्टी हो गई। मंत्री लाख कोशिश करके अपने ओएसडी को नहीं बचा पाए। याद होगा, शिक्षकों के ट्रांसफर में जब व्यापक गोलमाल उजागर हुआ था तो कांग्रेस विधायक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने खड़े हो गए थे। विधायकों की पीड़ा थी कि बीजेपी नेताओं के लोगों के ट्रांसफर हो गए और उनके रिकमंडेशन को कूड़ेदान में डाल दिया गया। इसमें मंत्री के ओएसडी की भूमिका अहम बताई गई थी। हालांकि, मंत्री के बचाव में कैबिनेट में दूसरे नम्बर के मंत्री टीएस सिंहदेव सामने आए थे। उन्होंने विधायकों को नसीहत दी थी….अपने मंत्री पर इस तरह के आरोप लगाकर मर्यादा को न लांघे। बावजूद इसके प्रेमसाय के ओएसडी बच नहीं पाए। मंत्रियों के लिए यह अलार्मिंग है। खटराल पीए और ओएसडी रखने वाले मंत्रियों को सावधान हो जाना चाहिए। सरकार अभी ट्वेंटी-ट्वेंटी के मोड में बैटिंग कर रही है। मंत्रियों के पीए और ओएसडी सरकार के राडार पर हैं। जाहिर है, पिछली सरकार की छबि खराब करने में मंत्रियों के पीए और ओएसडी का बड़ा हाथ रहा। दिल्ली में तो जब से मोदी की सरकार आई है, मंत्री अपने हिसाब से पीएस भी नहीं रख पा रहे। किसी मंत्री की हिम्मत नहीं है कि पीएस के लिए पीएम को नोटशीट लिख दें। मंत्री अगर अपने पीए को नियंत्रित कर लें तो 90 परसेंट प्राब्लम खतम हो जाएगा। छत्तीसगढ़ में कई मंत्रियों के पीए अभी से फुलफार्म में आ गए हैं।

अमर, अकबर

पिछली सरकार के वरिष्ठ मंत्री अमर अग्रवाल इसलिए अपनी छबि बचा पाने में कामयाब हुए कि उन्होंने अपने विभाग और स्टाफ के सिस्टम पर पूरा कंट्रोल रखा हुआ था। मजाल नहीं कि अमर के पीए कोई खेल कर दें। यही वजह है, 15 साल में ट्रांसफर, पोस्टिंग में कभी उनके उपर उंगली नहीं उठी। भूपेश सरकार में अकबर के यहां भी कुछ ऐसा ही है। ट्रांसफर, पोस्टिंग में वे कोई इंटरेस्ट नहीं लेते। वन विभाग का नीचे से लेकर उपर तक के ट्रांसफर की लिस्ट पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी ने बनाई है। हाल की बात है, कुछ लोग एक यंग आईएफएस की तारीफ की तो अगले हफ्ते अफसर का डीएफओ के लिए आदेश निकल गया। जबकि, पिछली सरकार में डीएफओ या अन्य कोई पोस्टिंग पाने के पहिले लंबी प्रक्रियाओं से गुजरनी पड़ती थी। दीगर मंत्रियों को भी जल्दीबाजी में न आते हुए अमर, अकबर से प्रेरणा लेनी चाहिए।

डीआईजी के लिए रास्ते

एसपी, आईजी और एडीजी रैंक के कुछ आईपीएस अफसरों की पोस्टिंग आजकल में हो सकती है। हालांकि, लिस्ट कई दिन पहले से बन गई है लेकिन, धमतरी एसपी की वजह से मामला अटक गया। दरअसल, पहले धमतरी एसपी बालाजी सोमावार को हटाना तय हो गया था। बताते हैं, लिस्ट में बालाजी का नाम शामिल था। लेकिन, कहीं से बात आई है कि उन्हें कुछ दिन और धमतरी में रखना चाहिए। इसके बाद सीएम दिल्ली और पटना के दौरे पर चले गए। उसके बाद दंतेवाड़ा चुनाव आ गया। फिर, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत आ गए। सीएम को जब समय मिलेगा, लिस्ट जारी हो जाएगी।

आईपीएस की पोस्टिंग

डीआईजी बनने के बाद पीएचक्यू में टाईम पास कर रहे या दिल्ली डेपुटेशन का रास्ता ढूंढ रहे आईपीएस अफसरों के लिए राज्य सरकार ने जिले में कप्तानी करने की फिर से आस जगा दी है। दो साल पहले डीआईजी बन गए 2004 बैच के आईपीएस अजय यादव को सरकार एसएसपी बनाने जा रही है। संभवतः वीवीआईपी जिले दुर्ग का। 2005 बैच के आरिफ शेख रायपुर के एसएसपी हैं ही। वे भी डीआईजी बन चुके हैं। हो सकता है, कुछ और बड़े जिलों में और सीनियर आईपीएस को भेजे।

कमिश्नर प्रणाली

पिछली सरकार में कई बार पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की बात चली थी। मगर ताकतवर आईएएस लॉबी के प्रेशर में सरकार पीछे हट गई। अब चूकि, नौकरशाही बेहद सहमी हुई है….चीफ सिकरेट्री का बंगला छीन गया और कोई चू-चाएं नहीं। यही ब्यूरोक्रेट्स कभी छोटी-छोटी बातों पर मंत्रालय में इंक्लाब करने लगते थे। ऐसे में, फिर से पुलिस कमिश्नर प्रणाली की बात उठने लगी है। रायपुर शहर की आबादी 12 लाख से अधिक हो गई है। जिले की तो दुगुना से भी अधिक है। जाहिर है, पुलिस कमिश्नर सिस्टम में पुलिस के पास दंडाधिकारी पावर भी आ जाते हैं। मजिस्ट्रेटियल पावर अभी कलेक्टरों के पास होते हैं।

आईएफएस की वापसी

चर्चा है, कुछ आईएफएस अफसरों की मंत्रालय में फिर से वापसी हो सकती है। इसके लिए कई आईएफएस तगड़ा प्रयास कर रहे हैं। नई सरकार ने एक दर्जन से अधिक आईएफएस अफसरों को मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

रायपुर में भी हनी

एमपी के हनी ट्रैप कांड में छत्तीसगढ़ कनेक्शन की बात सामने आने के बाद सूबे के ब्यूरोक्रेट्स सहम गए हैं। जो हनी खाए वो भी और जो नहीं नहीं खाए वो…। कब, कौन, किसका नाम उछाल दे, क्या भरोसा। मगर ये तो मध्यप्रदेश की बात हुई। राजधानी रायपुर का हनियों से पुराना नाता रहा है। सालों पहले टूरिज्म के निर्माण कार्यों में एक हनी ने करोड़ों की कमाई की थी। एनजीओ से संबंधित कई विभागों के सचिवों के यहां आज भी ऐसी हनियां मंडराती हुई दिख जाएंगी। कई सचिवों से हनियों की ऐसे गहरे रिश्ते हो गए हैं कि उसके जवाब नहीं। भूपेश सरकार के एक नरम दिल वाले मंत्री भी राजधानी के एक हनी के प्रभाव में आते जा रहे हैं। सूबे के आईपीएस और आईएफएस तो पहले से ही नाम कमाए हुए लोग हैं। एक आईएफएस के बारे में कहा जाता है, वे डीएफओ से लेकर सीएफ, सीसीएफ….जहां भी रहे, वहां जमकर गुल खिलाए। आईपीएस में तो पूछिए मत! एक-दो नहीं, अंतहीन कहानियां हैं। बहरहाल, कुछ हनियां सरकार के सिस्टम में भी घुसने का प्रयास कर रही हैं। सरकार को इसको लेकर सतर्क रहना चाहिए।

ट्रेवर्ल्स एजेंटों पर प्रेशर

हनी ट्रैप का छत्तीसगढ़ कनेक्शन की बात सामने आने के बाद राजधानी रायपुर के ट्रेवर्ल्स एजेंटों पर प्रेशर बढ़ गया है। नेता से लेकर नौकरशाह तक, सभी लगातार ताकीद कर रहे हैं….भइया डेटा डिलिट मार दो। इंटेलिजेंस से लेकर मीडिया तक कोई भी पूछे नहीं बताना है कि वे कितने बार इंदौर गए हैं। इनमें वे भी शामिल हैं, जिनका हनी से कोई वास्ता नहीं। लेकिन, कब कौन कहानी गढ़ दे, इसलिए सतर्कता तो बरतनी पड़ेगी न।

6 Comments

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