भारतीय मूल की स्वाति मोहन ने रचा इतिहास

0

भारतीय मूल की स्वाति मोहन ने रचा इतिहास

भुवन वर्मा बिलासपुर 19 फरवरी 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

वॉशिंगटन — अमेरिकी स्पेश एजेंसी नासा के पर्सीवरेंस रोवर ने सात महीने बाद मंगल की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कर ली है और इस सफलता में भारतीय मूल की वैज्ञानिक डॉ स्वाति मोहन का बहुत बड़ा योगदान है। जब पूरी दुनियां की निगाहें नासा के रोवर की ऐतिहासिक लैंडिग पर टिकी हुईं थीं, उस समय स्वाति कंट्रोल रूम में नेविगेशन एंड कंट्रोल सबसिस्टम और पूरी प्रोजेक्ट टीम के साथ कॉरडिनेट कर रही थीं। डॉ० स्वाति पिछले काफी समय से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी से जुड़ी हुईं हैं और इस उपलब्धि पर वे बेहद खुश हैं। करीब सात महीने पहले इस रोवर ने धरती से टेकआफ किया था , जिसने अब मंगल ग्रह की सबसे ख़तरनाक सतह 820 फुट गहरे जेजेरो क्रेटर पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की , जहां कभी पानी हुआ करता था। नासा की ये कोशिश लाल ग्रह पर मनुष्य को बसाने की उम्मीदों को लेकर बेहद अहम कदम है। नासा ने यह कामयाबी भारतीय-अमेरिकी मूल की वैज्ञानिक डा०स्वाति मोहन की अगुवाई में हासिल की है। उन्होंने मिशन के ऊंचाई पर रोवर के कंट्रोल और रोवर की लैंडिंग सिस्टम को अंजाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभायी है। नासा ने दावा किया है कि यह अब तक के इतिहास में रोवर की मार्स पर सबसे सटीक लैंडिंग है। रोवर के लाल ग्रह की सतह पर पहुंचने के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने पहली तस्वीर भी जारी कर दी है। छह पहिये वाला यह रोवर मंगल ग्रह की जानकारी जुटायेगा और चट्टानों के ऐसे नमूने साथ लेकर आयेगा जिनसे यह पता चल सकेगा कि क्या लाल ग्रह पर कभी जीवन था ?

पर्सीवरेंस रोवर की खासियत

पर्सीवरेंस नासा का चौथी पीढ़ी का रोवर है। इससे पहले पाथफाइंडर अभियान के लिये सोजोनर को वर्ष 1997 में भेजा गया था। इसके बाद 2004 में स्पिरिट और अपॉर्च्युनिटी को भेजा गया। इसी तरह वर्ष 2012 में क्यूरिऑसिटी ने मंगल पर डेरा डाला था। नासा के मार्स मिशन का नाम पर्सीवरेंस मार्स रोवर और इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर है। नासा के अनुसार पर्सीवरेंस रोवर 1000 किलोग्राम वजनी है, जो परमाणु ऊर्जा से चलता है। पहली बार किसी रोवर में प्लूटोनियम को ईंधन के तौर पर उपयोग किया जा रहा है।

आसान नही थी लैंडिंग  

पर्सीवरेंस रोवर मंगल ग्रह पर 10 साल तक काम करेगा , इसमें 07 फीट का रोबोटिक आर्म , 23 कैमरे और एक ड्रिल मशीन है। वैसे पर्सीवरेंस रोवर के लाल ग्रह की सतह पर पहुंचने की प्रक्रिया काफी मुश्किल रही। लैंडिंग से पहले रोवर को उस दौर से भी गुजरना पड़ा, जिसे टेरर ऑफ सेवन मिनट्स कहा जाता है। इस दौरान रोवर की गति 12 हजार मील प्रतिघंटा थी और वह मंगल के वायुमंडल में प्रवेश कर चुका था। ऐसे समय में घर्षण से बढ़े तापमान के कारण रोवर को नुकसान पहुंचने की आशंका बेहद ज्यादा थी। नासा के कई वैज्ञानिकों ने रोवर की लैंडिंग को लेकर काफी चिंता जतायी थी। लेकिन इस मिशन का नेतृत्व कर रही स्वाति मोहन ने सफलतापूर्वक लैंडिंग कर उनकी चिंता को उत्साह में बदल दिया। रोवर को मंगल ग्रह की सतह पर उतारने के दौरान सात मिनट का समय सांसें थमा देने वाला था , लेकिन वह सफलतापूर्वक लैंड करने में कामयाब रहा। छह पहियों वाले रोबोट ने सात महीने में 47 करोड़ किलोमीटर का सफर पूरा किया। मार्स के करीब पहुंचना आसान होता है लेकिन यहां रोवर को लैंड करना सबसे मुश्किल काम होता है , अंतिम सात मिनट में रफ्तार शून्य पर लानी होती है इसलिये ज्यादातर मिशन इसी स्टेज पर दम तोड़ देते हैं। पिछले एक सप्ताह में मंगल के लिये यह तीसरी यात्रा है। इससे पहले सऊदी अरब अमीरात और चीन के एक-एक यान भी मंगल के पास की कक्षा में प्रवेश कर गये थे।

कौन है डा० स्वाति मोहन ?

नासा की वैज्ञानिक डा० स्वाति एक वर्ष की उम्र में ही भारत से अमेरिका शिफ्ट हो गई थीं। केवल 09 साल की उम्र में पहली बार ” स्टार ट्रैक” फिल्म देखने के बाद उन्होंने अंतरिक्ष के क्षेत्र में जाने का फैसला किया। उन्होंने अपना ज्यादातर बचपन उत्तरी वर्जीनिया-वाशिंगटन डीसी मेट्रो क्षेत्र में बिताया. उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय से मैकेनिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की और एयरोनॉटिक्स/एस्ट्रोनॉटिक्स में एमआईटी से एमएस और पीएचडी पूरी की। डॉ० स्वाति मोहन नासा की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला में शुरुआत से ही मार्स रोवर मिशन की सदस्य रही हैं. इसके अलावा भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण मिशनों में भाग लिया है। भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक ने कैसिनी (शनि के लिए एक मिशन) और मिशन मून (चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान उड़ाये जाने की एक जोड़ी) परियोजनाओं पर भी काम किया है।
विकास प्रक्रिया के दौरान प्रमुख सिस्टम इंजीनियर होने के अलावा, वे टीम की देखभाल भी करती है और जीएन एण्ड सी के लिये मिशन कंट्रोल स्टाफिंग का शेड्यूल करती है। वे पहले बाल रोग विशेषज्ञ बनना चाहती थीं। किन्तु गुजरते वक्त के साथ उसने यह तय कर लिया कि इंजीनियरिंग और स्पेश एक्सप्लोरेशन में ही केरियर बनाना है।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *