जहां वेद-शास्त्र नहीं, वहां देवत्व भी नहीं – जगद्गुरु शंकराचार्य
जहां वेद-शास्त्र नहीं, वहां देवत्व भी नहीं – जगद्गुरु शंकराचार्य
भुवन वर्मा बिलासपुर 10 फ़रवरी 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
प्रयागराज — वेद शास्त्रों के अनुसार चलने वाला ही सनातनधर्मी है। जहां वेद शास्त्र के अनुसार काम ना हो रहा हो वहां देवत्व का आगमन असंभव है। धर्मशास्त्रों और वास्तु आदि की उपेक्षा कर बनाये गये ढांचे में देवत्व की आशा व्यर्थ है। उक्त उद्गार पूज्यपाद द्वय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने माघ मेला क्षेत्र के त्रिवेणी मार्ग स्थित शंकराचार्य शिविर में आयोजित हरिहर सन्त सम्मेलन में अध्यक्षीय उद्बोधन में व्यक्त किये। उन्होंने आगे कहा कि सनातनधर्मी एक बार पुनः छद्म हिन्दुओं से छले जा रहे हैं।
पांच सौ वर्षों से तीन लाख बलिदान के बाद अब अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि में शास्त्रोक्त मन्दिर बनाने के उनके प्रयासों को चतुराई से बदला जा रहा है जिस पर रोक जरूरी है। यदि सनातनी अभी चूके तो सदा के लिये चूक जायेंगे। उन्होंने आगे कहा कि अपने को हिन्दू हिन्दू कहकर कुछ ऐसी संस्थायें जो वेद शास्त्रों को मानती ही नहीं हैं , आगे आ गई हैं और सत्ता में होने का लाभ उठाकर मन्दिर और उसके प्रांगण को अपने कार्यालय की तरह विकसित करती जा रही हैं। वास्तविकता ये है कि मन्दिर निर्माण में लगी संस्थायें श्रीराम को परब्रह्म परमात्मा तो दूर भगवान् भी नहीं मानतीं। अपनी इस मान्यता को उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व प्रयाग के प्रेस मैदान में हुये अधिवेशन में रामजी के कट आऊट को डाक्टर अम्बेडकर और स्वामी विवेकानन्द के समकक्ष खडाकर प्रदर्शित भी कर दिया है।
पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने गुरु गोलवलकर द्वारा लिखी विचार नवनीत पुस्तक के उन अंशों को भी उद्धृत किया जिनमें श्रीराम जी को महापुरुष सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने आगे कहा कि अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि में मन्दिर के निर्माण की मूल मांग सनातनधर्मियों की थी। तब आर्य समाज, संघ, विहिप जैसी संस्थाओं का जन्म भी नहीं हुआ था। यही नहीं उन्होंने ही बलिदान दिये। कोर्ट में पक्षकार बनकर केस लड़ा और विजय प्राप्त की। इसलिये उस स्थान पर सनातनधर्मियों का अधिकार बनता है। अतः सनातनी धर्माचार्यों के निर्देशन में शास्त्रोक्त विधि से मन्दिर बनना और संचालित होना चाहिये। सम्मेलन में मुख्य रूप से मठ मन्दिरों के तोडे जाने की घटनाओं में वृद्धि, सन्तों की हत्यायें और उनके गायब होने पर चिन्ता, गोहत्या ना रुकने, गंगा को बांधे और काशी में पाटे जाने पर चिन्ता और सनातन हितैषी शासन के बारे में भी चर्चा हुई। विषय स्थापना हरिहर सन्त सम्मेलन के संयोजक, परमधर्मसंसद् 1008 के प्रवर धर्माधीश स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ने की।
त्रिवेणी मार्ग स्थित श्रीशंकराचार्य शिविर मे आयोजित हरिहर सन्त सम्मेलन मे पूरे देश से पधारे सैकडों सन्तों ने पूज्य शंकराचार्य जी के नेतृत्व में अपना विश्वास व्यक्त किया।वैदिक मंगलाचरण श्रीरविशंकर चतुर्वेदी जी द्वारा हुआ। महामण्डलेश्वर बालेश्वर दास जी ने प्रकृति के साथ छेडछाड के विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये। महन्त मोहन दास जी द्वारा संस्कृति संरक्षण एवं गंगा सेवा के महत्व पर प्रकाश डाला गया। महन्त सत्मित्रानन्द जी द्वारा वर्तमान मे मठ-मन्दिरों की दुर्दशा विचार व्यक्त किये । दंडी स्वामी अम्बरीशानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वर्तमान सत्ता के द्वारा मठ मन्दिरों पर कुठाराघात किया जा रहा है ।
वेदान्ती रामसुखदास जी ने सन्तों के अपमान एवं गंगा के प्रवाह की अविरलता-निर्मलता के सन्दर्भ में विचार रखे। राष्ट्रीय कोतवाल भैरव दास जी ने कहा कि पूज्यपाद शंकराचार्य जी का नेतृत्व सभी के कल्याण का हेतु है।
दतिया से पधारे महन्त मोहन दास जी ने वर्तमान समय में सनातन संस्कृति में आ रही विकृतियों पर प्रकाश डाला एवं शंकराचार्य जी से अनुरोध किया कि आप समस्त सनातनियों का मार्गदर्शन करें। कार्यक्रम में देश भर से पधारे लगभग एक सहस्र सन्त सम्मिलित हुये । शिविर प्रभारी ब्रह्मचारी सहजानन्द जी महाराज ने सबका स्वागत किया। अन्त में उत्तराखंड में हुये हादसे में मारे गये और चोटिल लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की गई और उस क्षेत्र में ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम हिमालय के आपदा सेवालय की ओर से किये जा रहे राहत कार्यों की प्रशंसा की गई।महामण्डलेश्वर बालेश्वर दास जी, घनश्याम दासजी, सत्यमित्रानन्द जी, महामण्डलेश्वर रामभूषण दास जी, महन्त मोहनदास जी, राघवेन्द्र दास जी, श्यामदास जी, हरिराम दास जी, रामसुखदास जी, हनुमान दास जी, लीनेश्वरानन्द रसिक जी, रेवानन्द जी, सर्वेश्वर दास जी, रामानन्द ब्रह्मचारी जी आदि उपस्थित रहे। मंच संचालन श्रीभगवान् वेदान्ताचार्य जी ने किया।
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