कल्पना चावला पुण्यतिथि विशेष – तुम याद बहुत आते हो

भुवन वर्मा बिलासपुर 01 फ़रवरी 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

टैक्सास (अमेरिका)–आज एक फरवरी का दिन अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाली भारतीय मूल की पहली महिला कल्पना चावला की आज पुण्यतिथि है। कल्पना चावला एक भारतीय अमरीकी अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ के साथ साथ अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। वे कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गये सात यात्री दल सदस्यों में से एक थीं। कल्पना ने ना सिर्फ अंतरिक्ष की दुनिया में उपलब्धियां हासिल कीं, बल्कि तमाम छात्र-छात्राओं को सपनों को जीना सिखाया। भले ही एक फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ कल्‍पना की उड़ान रुक गई लेकिन आज भी वह दुनियां के लिये एक मिसाल हैं , उनके वे शब्द सत्य हो गये जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं।

भारत की महान बेटी-कल्पना चावला का जन्म भारतभूमि के करनाल (हरियाणा) में 17 मार्च 1962 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री बनारसी लाल चावला और माता का नाम संज्योती देवी थी। वह अपने परिवार के चार भाई बहनो में सबसे छोटी थी। घर में सब उसे प्यार से मोंटू कहते थे। कल्पना की प्रारंभिक पढाई “टैगोर बाल निकेतन” में हुई। कल्पना जब आठवी कक्षा में पहुंची तो उन्होंने इंजिनयर बनने की इच्छा प्रकट की। उसकी माँ ने अपनी बेटी की भावनाओं को समझा और आगे बढने में मदद की। पिता उसे चिकित्सक या शिक्षिका बनाना चाहते थे। किंतु कल्पना बचपन से ही अंतरिक्ष में घूमने की कल्पना करती थी। कल्पना का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण था – उसकी लगन और जुझार प्रवृत्ति। कल्पना ना तो काम करने में आलसी थी और ना असफलता में घबराने वाली थी। उनकी उड़ान में दिलचस्पी ‘जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा से प्रेरित थी जो एक अग्रणी भारतीय विमान चालक और उद्योगपति थे।कल्पना चावला ने प्रारंभिक शिक्षा टैगोर पब्लिक स्कूल करनाल से प्राप्त की। आगे की शिक्षा वैमानिक अभियान्त्रिकी में पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़ से करते हुए 1982 में अभियांत्रिकी स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

वे संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये 1982 में चली गईं और 1984 वैमानिक अभियान्त्रिकी में विज्ञान निष्णात की उपाधि टेक्सास विश्वविद्यालय आर्लिंगटन से प्राप्त की। कल्पना ने 1986 में दूसरी विज्ञान निष्णात की उपाधि प्राप्त कर वर्ष 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय बोल्डर से वैमानिक अभियंत्रिकी में विद्या वाचस्पति की उपाधि हासिल की। कल्पना को हवाईजहाज़ों , ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंसों के लिये प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था। उन्हें एकल व बहु इंजन वायुयानों के लिये व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे। अन्तरिक्ष यात्री बनने से पहले वो एक सुप्रसिद्ध नासा कि वैज्ञानिक थी। वर्ष 1988 के अंत में उन्होंने नासा के एम्स अनुसंधान केंद्र के लिये ओवेर्सेट मेथड्स इंक के उपाध्यक्ष के रूप में काम करना शुरू किया, उन्होंने वहाँ वी/एसटीओएल में सीएफ़डी पर अनुसंधान किया। वे मार्च 1995 में नासा के अंतरिक्ष यात्री कोर में शामिल हुईं और उन्हें 1998 में अपनी पहली उड़ान के लिये चुनी गयीं थी।

उनका पहला अंतरिक्ष मिशन 19 नवम्बर 1997 को छह अंतरिक्ष यात्री दल के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष शटल कोलंबिया की उड़ान एसटीएस-87 से शुरू हुआ। वे अंतरिक्ष में उड़ने वाली प्रथम भारत में जन्मी महिला थीं और अंतरिक्ष में उड़ाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति थीं। इसके पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत अंतरिक्ष यान में एक उड़ान भरी थी। कल्पना ने अपने पहले मिशन में 1.04 करोड़ मील का सफ़र तय कर के पृथ्वी की 252 परिक्रमायें कीं और अंतरिक्ष में 360 से अधिक घंटे बिताये। एसटीएस-87 के दौरान स्पार्टन उपग्रह को तैनात करने के लिये भी ज़िम्मेदार थीं , इस खराब हुये उपग्रह को पकड़ने के लिये विंस्टन स्कॉट और तकाओ दोई को अंतरिक्ष में चलना पड़ा था। पाँच महीने की तफ़्तीश के बाद नासा ने कल्पना चावला को इस मामले में पूर्णतया दोषमुक्त पाया , त्रुटियाँ तंत्रांश अंतरापृष्ठों व यान कर्मचारियों तथा ज़मीनी नियंत्रकों के लिये परिभाषित विधियों में मिलीं। गतिविधियों के पूरा होने पर कल्पना जी ने अंतरिक्ष यात्री कार्यालय में, तकनीकी पदों पर काम किया, उनके यहाँ के कार्यकलाप को उनके साथियों ने विशेष पुरस्कार देकर सम्मानित किया।

वर्ष 1983 में वे एक उड़ान प्रशिक्षक और विमानन लेखक, जीन पियरे हैरीसन से मिलीं और शादी की और 1990में एक देशीयकृत संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिक बनीं। भारत के लिये चावला की आखिरी यात्रा 1991-92 के नये साल की छुट्टी के दौरान थी जब वे और उनके पति, परिवार के साथ समय बिताने गये थे। इस दौरान कल्पान ने अपने सपनों की उड़ान की पिछा किया और शादी के बाद साल 1997 में उनका नासा का सपना पूरा हुआ और 2003 में उन्होंने सपनो की पहली उड़ान भरी। वर्ष 2000 में उन्हें एसटीएस-107 में अपनी दूसरी उड़ान के कर्मचारी के तौर पर चुना गया। यह अभियान लगातार पीछे सरकता रहा, क्योंकि विभिन्न कार्यों के नियोजित समय में टकराव होता रहा और शटल इंजन बहाव , अस्तरों में दरारें जैसी कुछ तकनीकी समस्यायें भी आयी। पहली उड़ान सफलतापूर्वक पूरी हुई , अब तक नासा और कल्पना दोनों को ही एक-दूसरे पर भरोसा बढ़ चला था। वर्ष 2003 में उन्होंने कोलंबिया शटल से अंतरिक्ष के लिये दूसरी उड़ान भरी। यह 16 दिन का अंतरिक्ष मिशन था जो 16 जनवरी को शुरू हुआ ये अभियान 01 फरवरी को खत्म होना था। ये वही दिन था जब धरती पर लौटने के दौरान शटल धरती की परिधि में पहुंचकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसमें कल्पना समेत 06 दूसरे अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गयी। अंतरिक्ष पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा ही उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई।

सभी तरह के अनुसंधान तथा विचार – विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल में अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई। नासा तथा विश्व के लिये यह एक दर्दनाक घटना थी। एक फ़रवरी 2003 को कोलंबिया अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। देखते ही देखते अंतरिक्ष यान और उसमें सवार सातों यात्रियों के अवशेष टेक्सास नामक शहर पर बरसने लगे और सफ़ल कहलया जाने वाला अभियान भीषण सत्य बन गया। ये अंतरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनियां में विलीन हो गये लेकिन इनके अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को अवश्य मिलेगा। इस तरह कल्पना चावला के यह शब्द सत्य हो गये कि ” मैं अंतरिक्ष के लिये ही बनी हूँ। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिये ही बिताया है और इसी के लिये ही मरूँगी।“ उनको मरणोपरांत अंतरिक्ष पदक के सम्मान , नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक ,नासा विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया। उनके निधन के बाद उनके सम्मान में कई विश्वविद्यालयों, छात्रवृत्ति और यहां तक ​​कि सड़कों का नामकरण किया गया. पिछले साल सितंबर में, यूएस स्थित एयरोस्पेस और रक्षा कंपनी नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन ने अपना अगला स्पेसशिप का नाम चावला के नाम पर रखा।

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