जिसका प्रभु में दृढ़ विश्वास है उसके लिए ज्योतिष्य आदि शास्त्र का कोई महत्व नहीं रह जाता – रामबालक दास

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जिसका प्रभु में दृढ़ विश्वास है उसके लिए ज्योतिष्य आदि शास्त्र का कोई महत्व नहीं रह जाता – संत रामबालक दास

भुवन वर्मा बिलासपुर 17 जनवरी 2021


पाटेश्वर धाम । संत राम बालक दास जी द्वारा प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में किया गया जिसमें सभी भक्तगण जूड़कर वर्तमान में गीता के ज्ञान से अपने जीवन का उद्धार कर रहे हैं और अपने मन को पावन पवित्र कर रहे हैं
आज के गीता ज्ञान में बाबा जी ने उपदेश दिया कि, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जिसका प्रभु में दृढ़ विश्वास है उसके लिए ज्योतिष्य आदि शास्त्र का कोई महत्व नहीं रह जाता, क्योंकि उसके तीनों काल वर्तमान भूत भविष्य स्वयं भगवान संभालते हैं भगवान ने कभी नहीं कहा कि तू कभी दूसरों पर आश्रित रहे वे कहते हैं कि तुझे जो नहीं मिला वह मैं दूंगा और तुझे मैं जो दूंगा उसकी रक्षा भी करूंगा यह मेरा दृढ़ वचन है
तो कोई ज्योतिषी ग्रह हमारा क्या बिगाड़ सकता है हम दृढ़ विश्वास प्रभु पर करे
ऐसा कतई नहीं कि आप मुहूर्त या राशि को ना माने परंतु ध्यान रखिए कि जिनके जानकी नाथ सहाय हो उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है अतः अपने आपको श्यामसुंदर को समर्पित कर दो तो वे आपका भुत वर्तमान भविष्य भी देख लेंगे आप बस श्याम सुंदर का दर्शन कर दिव्य विग्रह में खो जाइए श्री कृष्ण कहते हैं कि जो यहां आज दुखी है वह कल सुख अवश्य पाएगा और जो व्यक्ति यहां सुखी है वह अवश्य दुख प्राप्त करेगा अतः कभी भी किसी को देखकर हंसीये मत क्योंकि लक्ष्मी तो चलायमान है आज आपके पास है तो कल कहीं और,
श्रीमद भगवत गीता के अध्याय 12 श्लोक 8 में भगवान श्री कृष्ण कहते कि हे अर्जुन सुख-दुख ठंडी गर्मी इस में सम भाव रहकर परमात्मा पर दृढ़ विश्वास रखें
ज्ञान में तृप्त होकर कूटनीति से दूर रहकर इंद्रियों को अपने वश में करने का साधन करने का प्रयत्न करने वाला व्यक्ति ही योगी है
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन तू ही तेरा मित्र है और तू ही तेरा शत्रु अपने से सामंजस्य बैठा लेगा तो तू तेरा मित्र हो जाएगा और तू जब अपने से ही प्रतिकूल हो जाएगा अपने ही भावना को नहीं समझ पाएगा अपने ही ज्ञान से अनभिज्ञ रहेगा तो तू अपना ही अहित करेगा और अपने को ही अपना शत्रु बना लेगा संसार में शत्रु और मित्र कोई नहीं होते यह हमारी भावना हमारी कार्यप्रणाली और हमारे कर्मों का ही फल है जो हमारे मित्र और शत्रु बन जाते हैं अपने को भी बना लेता है और वह दूसरों को भी, जो व्यक्ति गीता महत्व को जानते हैं उसको पढ़ते हैं वह अजातशत्रु हो जाते हैं
आज की सत्संग परिचर्चा मे ऋचा बहन के द्वारा सुंदर मीठा मोती का प्रेषण किया गया
“अपने दिल को साफ और सच्चा रखने से ही जीवन मे ख़ुशी आती है,क्योंकि दुःख के कीड़े गन्दगी में ही पनपते है।”, इसको स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि जिस तरह दलदल में जोक पैदा हो जाते हो और बदबू आती है उसी तरह हृदय में बुरे विचार आएंगे तो वह बुरे कर्मों को भी प्रेरित करेंगे, हमारे बुरी प्रवृत्तियों का अवसर मिलेगा, लेकिन ध्यान रखिएगा उसी प्रकार यह संसार भी एक दलदल है गंदगी है परंतु हमें इस संसार के दलदल में भी दुखों में भी संसार के प्रपंच में कमल की तरह खिल के रहना है
पाठक परदेसी जी ने सत्संग परिचर्चा में माता गंगा पर अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए उनकी त्रि पथ गामिनी रूप का वर्णन करने की विनती की, इसका वर्णन करते हुए बाबा जी ने बताया कि जब गंगा जी को ब्रह्मा जी के कमंडल से पृथ्वी पर अवतरित होना था तो गंगा जी के वेग को सहन करने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं था, तब शिवजी ने अपनी जटा में उनको समाहित करने का निर्णय लिया, इस के दो प्रमुख कारण थे एक गंगा के प्रवाह से पृथ्वी नष्ट न हो पाए, दूसरा गंगा को बहुत अहंकार था कि उनके वेग सहन करने की क्षमता किसी में भी नहीं है, तब भगवान शिव ने अपनी प्रचंड जटाओ को स्वर्ग की ओर मुख करते हुए गंगा को आमंत्रित कर अपनी जटाओं में समा लिया, और गंगा के अहंकार का नाश किया, देवताओं के आह्वान पर गंगा की तीन धाराओं को प्रवाहित किया गया, ताकि जगत का कल्याण हो सके, भूखे प्यासे को जल प्राप्त हो सके, युगो युगो तक पावन पवित्र गंगा का प्रवाह धरती पर होता रहे ताकि लोगों के पाप का शमन हो, एक धारा पृथ्वी पर द्वितीय धारा पाताल लोक में पातालगंगा, तीसरी धारा स्वर्ग पर अमृतधारा बहाई गई, इस प्रकार गंगा जी त्रि पथ गामिनी हुई
इस प्रकार आज का अद्भुत सत्संग पूर्ण हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम

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