कांग्रेस के वरिष्ठ सिख नेता बूटा सिंह का निधन

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कांग्रेस के वरिष्ठ सिख नेता बूटा सिंह का निधन

भुवन वर्मा बिलासपुर2 जनवरी 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

नई दिल्ली — कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सरदार बूटा सिंह (86 वर्ष) का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। अपने लम्बे राजनीतिक सफर के दौरान उन्होंने केन्द्रीय गृहमंत्री , कृषिमंत्री , रेलमंत्री , खेलमंत्री , बिहार के राज्यपाल , राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष सहित कई पदों पर अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभायी। उनकी मौत को कांग्रेस पार्टी में एक बड़ी क्षति के रूप में देखा जा रहा है। उनके निधन से पीएम मोदी , कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी , राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई नेताओं ने शोक जताया है।

कांग्रेस के चुनाव चिन्ह में भूमिका

आजादी के बाद कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था। जब कांग्रेस में टूटी और इंदिरा गांधी का समर्थित धड़ा कांग्रेस आई के रूप में देखा जाने लगा तो कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़ा की जोड़ी बना। लेकिन गाय और बछड़े की जोड़ी को इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ में जोड़कर हंसी उड़ाई गई तो यह चुनाव चिन्ह कांग्रेस पार्टी ने बदलने का निर्णय लिया। जब पार्टी का चुनाव चिन्ह बदला जाना है उसमें कांग्रेस पार्टी के इंचार्ज बूटा सिंह ही थे और उस समय हाथ, हाथी और साइकिल का चुनाव चिन्ह में से बूटा सिंह ने हाथ का निशान फाइनल किया और इंदिरा गांधी ने उस पर अपनी मुहर लगायी।
गौरतलब है कि 21 मार्च 1934 को पंजाब के जालंधर जिले के मुस्तफापुर गांँव में जन्मे सरदार बूटा सिंह 08 बार लोकसभा के लिये चुने गये। उनकी पहचान पंजाब के बड़े दलित नेता के तौर पर रही। उनके परिवार में पत्नी , दो बेटे और एक बेटी है। उन्हें नेहरू-गाँधी परिवार का काफी करीबी माना जाता था। राजनीति में आने से पहले उन्होंने एक पत्रकार के रूप में काम किया। बूटा सिंह ने अपना पहला चुनाव अकाली दल के सदस्य के रूप में लड़ा था और 1960 के दशक वे  में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये थे। वे पहली बार 1962 में साधना निर्वाचन क्षेत्र से तीसरी लोकसभा के लिये चुने गये थे।वे वर्ष 1967 से लगातार पंजाब के रोपड़ से वो चुनाव लड़ते आ रहे थे। जब वर्ष 1977 में जनता लहर के चलते कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से हार गई थी और इस कारण पार्टी विभाजित हो गई थी, तो सरदार बूटा सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी का साथ दिया था। पार्टी के एकमात्र राष्ट्रीय महासचिव के रूप में कड़ी मेहनत करने के बाद पार्टी को 1980 में फिर से सत्ता में लाने के लिये उन्होंने अमूल्य योगदान दिया था। लेकिन वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या और फिर सिख विरोधी दंगे की वजह के बाद कांग्रेस के खिलाफ माहौल को देखते हुये राजीव गांधी ने बूटा सिंह को पंजाब से राजस्थान भेज दिया था। राजस्थान की जालौर की सुरक्षित सीट पर बूटा सिंह ने तब आसानी से जीत दर्ज की थी। वे राजीव गांधी की सरकार में वर्ष 1986 से 1989 तक केंद्रीय गृहमंत्री रहे। हालांकि वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में उन्हें जालौर से भी हार का सामना करना पड़ा। इससे पहले राजीव गांधी की सरकार में ही 1984 से 1986 तक कृषिमंत्री का पदभार संभाला था। इसके अलावा बूटा सिंह वर्ष 2004 से 2006 तक बिहार के राज्यपाल भी रहे थे। वर्ष 2007 से 2010 तक मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी उन्होंने कार्यभार संभाला। उन्होंने पंजाबी साहित्य और सिख इतिहास और पंजाबी स्पीकिंग स्टेट नामक पुस्तक (एक महत्वपूर्ण विश्लेषण) पर लेखों का संग्रह भी लिखा है। वे इंदिरा गांधी , राजीव गांधी , पीवी नरसिम्हा राव व मनमोहन सिंह की कैबिनेट में रह चुके हैं। दलितों की मसीहा के रूप में पहचान बनाने वाले बूटा सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव (1978-1980), बिहार के राज्यपाल (2004-2006) बने।

जालौर को दिलायी खास पहचान

बूटा सिंह जब पहली राजस्थान 1984 में जालौर-सिरोही लोकसभा सीट से चुनाव लड़े तो जालौर को एक नई पहचान मिली। बूटा सिंह ने वर्ष 1984 में जालोर-सिरोही लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और सांसद बने इसके बाद साल 1989 में जालोर लोकसभा जीता। वर्ष 1998 में भी लोकसभा का चुनाव जीता उसके बाद 1999 से सिरोही से सांसद बने। इसके बाद वर्ष 2004 में जालोर से लोकसभा चुनाव हारने के बाद बूटा सिंह को बिहार का राज्यपाल बना दिया गया था , फिर उनकी राजनीति का अंत माना गया। लेकिन बूटा सिंह ने वर्ष 2009 में कांग्रेस पार्टी से फिर जालोर लोकसभा का टिकट मांगा लेकिन पार्टी की ओर से टिकट नहीं देने के बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा हालांकि उन्हें इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वर्ष 2014 में भी उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और हार का सामना करना पड़ा। इससे साफ है कि जालोर सिरोही लोकसभा सीट से ही उन्होंने अंतिम चुनाव लड़ा।वे काफी लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें ब्रेन हेमरेज के बाद एम्स में भर्ती कराया गया था। इस बीच उन्होंने दो जनवरी शनिवार को दुनियाँ को अलविदा कह दिया। आज देर शाम निगम बोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा।

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