संस्कार शिक्षा हर घर के लिये हितकारी — झम्मन शास्त्री
संस्कार शिक्षा हर घर के लिये हितकारी — झम्मन शास्त्री
भुवन वर्मा बिलासपुर 28 दिसंबर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
चन्द्रपुर – हमारा जीवन और मृत्यु दोनों धन्य हो जाये उसके लिये रामकथा ही माध्यम है। आज नीति और अध्यात्म विहिन शिक्षा पद्धति के प्रभाव से समाज में नैतिक मूल्यों का अभाव होते जा रहा है। ऐसी दशा में भगवान की कथा के माध्यम से ही आदर्श समाज , परिवार तथा राष्ट्र निर्माण के लिये प्रेरणा प्राप्त करने की आवश्यकता है।
उक्त बातें आचार्य झम्मन शास्त्री ने गीता जयंती महामहोत्सव के अन्तिम दिवस श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुये कही। उन्होंने आगे कहा कि मन , बुद्धि , चित्त और विचारों की पवित्रता के लिये भगवत कथा परम साधन है। षट्विकारों से रहित जीवन के लिये भगवान की कथा के साथ नाम , रूप , लीला , धाम से जुड़कर जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिये। उन्होंने युवा पीढ़ी को संकेत करते हुये कहा कि आज कुसंस्कार तथा विकार ग्रस्त युवा पीढ़ी पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण कर विश्व प्रसिद्ध भारतीय संस्कृति सनातन परंपरा से दूरी बढ़ाकर भ्रमित है। ऐसी दशा में रामकथा , कृष्णकथा , शिवकथा के माध्यम से प्रेरणा प्राप्त करने की आवश्यकता है , जिससे समाज में परस्पर सुख , शांति , सद्भाव , प्रेम , एकता की स्थापना संभव हो। उन्होंने रामायण को मानव के लिये आचार संहिता बताते हुये कहा कि प्रत्येक घरों में रामायण , हनुमान चालीसा का नित्य सामूहिक पाठ होना चाहिये ताकि बच्चे सुसंस्कारित , विचारवान , कर्तव्य , सेवा परायण , ईश्वर -धर्म माता- पिता- गुरु तथा राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना से कार्य करने में सक्षम बन सके। उन्होंने जीवन और मृत्यु दोनों को धन्य बनाने में रामकथा को ही माध्यम बताते हुये कहा कि राजा दशरथ का जन्म लेना सार्थक हुआ , इसके साथ साथ उन्होंने अपना जीवन और मृत्यु भी सुन्दर बना लिया। प्रभु राम को पुत्र रुप में प्राप्त कर उनका जीवन धन्य हुआ , मृत्यु काल मे राम राम रटते हुये देह का त्याग कर वैकुंठ लोक के अधिकारी बन गये। आचार्य ने मानव मात्र को सावधान करते हुये कहा कि भगवान ने अहैतु कृपा कर चौरासी लाख योनियों में हमें परम दुर्लभ मानव जीवन प्रदान किया है। इसलिये हमें एक एक क्षण का सदुपयोग परमार्थ के लिये करना चाहिये। जिससे इस जन्म में हम कृत्कृत्य हो जायें और फिर से जन्म लेना ना पड़े। आचार्यश्री ने वर्तमान में बढ़ती हुई संसाधनों पर गंभीर चिंतन करते हुये कहा कि मनुष्य यांत्रिक युग मे सुविधा बढ़ाओ समय बचाओ के लिये सब कुछ भौतिक संसाधन तो बढ़ा लिये। फिर धर्म , ईश्वर , राष्ट्रभक्ति , सेवा , कथा , साधना के लिये उनके पास समय नहीं है ये सबसे बड़ी विडंबना है। केवल भौतिक विकास से आध्यात्मिक जीवन यापन से अशांति , कलह , कटुता , संघर्ष , आधि , व्याधि , रोग , भय एवं हिंसा का वातावरण निर्माण हो रहा है।
अंत में उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि कोरोना महामारी काल में सभी सतर्कतापूर्वक सात्विक आहार का सेवन तथा सदाचार , संयम साधनामय जीवन , स्वच्छता के साथ-साथ शुद्धता , पवित्रता पर विशेष ध्यान दें और समुचित दूरी का पालन करते हुये मास्क अवश्य लगावें। सनातन वैदिक परंपरा से शास्त्रीय विधान युक्त रीति से जगह-जगह यज्ञ का संपादन हो , सनातन वर्णाश्रम व्यवस्था का पालन हो , प्रकृति और परमात्मा से दूरी ना बढ़े इसका चिंतन करते हुये सुसंस्कृत , सुशिक्षित , सुरक्षित , संपन्न , सेवा परायण व्यक्ति तथा समाज की संरचना राजनीति की परिभाषा हो। तथा विकास का स्वरुप भी इसी आधार पर निर्धारित हो तभी आत्मनिर्भर भारत बनाने मे सफलता संभव है।