आज लक्ष्मीपूजन से हुई अगहन माह की शुरूआत

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आज लक्ष्मीपूजन से हुई अगहन माह की शुरूआत

भुवन वर्मा बिलासपुर 3 दिसंबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायपुर – अगहन माह की शुरूआत गुरूवार यानि आज से विशेष महत्व के साथ हुई। हिन्दू पंचांग में हर माह का अपना अलग ही महत्व है। शास्त्रों के अनुसार अगहन माह में मांँ भगवती की उपासना शुभ फलदायी होती है। अगहन मास श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इस माह को भगवान ने स्वयं की ही संज्ञा दी है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने मुख से कहते हैं, ‘मैं मार्गशीर्ष माह हूंँ” तथा सतयुग में देवों ने मार्ग-शीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही साल का प्रारम्भ किया था। जिसकी वजह से इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि सतयुग में देवताओं ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष का प्रारंभ किया था। अगहन को मार्गशीर्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस माह जो सुहागन लक्ष्मी की श्रद्धा से उपासना करती हैं, उनके घर में धन के साथ खुशहाली आती है। साथ ही लक्ष्मी और तुलसी साथ में पूजी जाती है। इसके चलते परिवार में लक्ष्मी का वास हमेशा रहता है।

आज लक्ष्मीपूजन से हुई अगहन माह की शुरूआत

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायपुर – अगहन माह की शुरूआत गुरूवार यानि आज से विशेष महत्व के साथ हुई। हिन्दू पंचांग में हर माह का अपना अलग ही महत्व है। शास्त्रों के अनुसार अगहन माह में मांँ भगवती की उपासना शुभ फलदायी होती है। अगहन मास श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इस माह को भगवान ने स्वयं की ही संज्ञा दी है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने मुख से कहते हैं, ‘मैं मार्गशीर्ष माह हूंँ” तथा सतयुग में देवों ने मार्ग-शीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही साल का प्रारम्भ किया था। जिसकी वजह से इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि सतयुग में देवताओं ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष का प्रारंभ किया था। अगहन को मार्गशीर्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस माह जो सुहागन लक्ष्मी की श्रद्धा से उपासना करती हैं, उनके घर में धन के साथ खुशहाली आती है। साथ ही लक्ष्मी और तुलसी साथ में पूजी जाती है। इसके चलते परिवार में लक्ष्मी का वास हमेशा रहता है। इस बार अगहन माह 01 दिसंबर से शुरू होकर 30 दिसंबर तक चलेगा जिसमें 03 दिसंबर , 10 दिसंबर ,17 दिसंबर और 24 दिसंबर कुल चार गुरूवार पड़़ेंगे। मान्यताओं के आधार पर अगहन गुरुवार में व्रत रखने का विधान है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प किया जाता है। शाम को चंद्रमा के उदित होने के उपरांत पुष्प, नैवेद्य, धूम, दीप प्रज्वलित कर पूजा की जाती है।

सजाये गये घर-द्वार

गुरुवार के दिन ब्रह्ममुहूर्त में ही घरों के द्वार सजाये गये। महिलाओं ने घर-द्वार सजाने के साथ ही पूजा की तैयारी बुधवार से ही शुरू कर ली थी। बुधवार को महिलायें घर के द्वार से लेकर पूजा स्थल तक चाँवल आटे के घोल से मांँ लक्ष्मी के पद चिन्ह बनायी। गुरुवार की सुबह सूर्य निकलने से पहले महिलायें स्नान-ध्यान कर घर के द्वार पर दीप प्रज्वलित कर मांँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की। वहीं महिलाओं ने माँ लक्ष्मी के स्वागत के लिये घर का द्वार खोल दिया था। सुबह में शंख , घंटी बजाकर आरती के साथ माता लक्ष्मी का स्वागत किया। यही क्रम पूरे अगहन माह हर गुरूवार दोपहर व शाम को भी चलेगा।

अगहन गुरुवार की मान्यता

मान्यता है कि अगहन गुरुवार में मांँ लक्ष्मी पृथ्वी लोक का विचरण करने आती हैं। गुरुवार को इनका आगमन ऐसे भक्त के यहां होता है, जिनके घर में साफ-सफाई, सजावट व मन, वचन और कर्म से पूरी सात्विकता रहती है। यही वजह है कि महिलायें हर बुधवार को घर-द्वारा को रंगोली से सजा कर मांँ पूजा स्थल तक देवी के पग चिन्ह बना कर गुरुवार को भोर में उनका आह्वान करते हैं। इस अवसर पर जो श्रद्धालु घर-द्वार की विशेष साज-सज्जा के साथ मांँ लक्ष्मी की विधिवत पूजा-अर्चना करता है , उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

मान्यताओं के आधार पर अगहन गुरुवार में व्रत रखने का विधान है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प किया जाता है। शाम को चंद्रमा के उदित होने के उपरांत पुष्प, नैवेद्य, धूम, दीप प्रज्वलित कर पूजा की जाती है।

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