भारत में वैदिक आरक्षण की आवश्यकता — पुरी शंकराचार्य

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भारत में वैदिक आरक्षण की आवश्यकता — पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 29 नवम्बर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी – ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग सनातन सिद्धांत के अनुरूप वर्णाश्रम व्यवस्था की उपादेयता तथा वैदिक आरक्षण की आवश्यकता के संबंध में अपने संदेश में संकेत करते हैं कि भारत की मेधाशक्ति , रक्षाशक्ति , वाणिज्यशक्ति व श्रमशक्ति पूरे विश्व को प्रभावित किये हुये है लेकिन भारत का केन्द्रीय या प्रांतीय शासनतंत्र ऐसा नहीं है , ना हुआ है , जो अपनी चारों शक्तियों का उपयोग या विनियोग भारत के हित में कर सके। “सकल पदारथ एहि जग मांँही, करमहीन नर पावत नाही ! !”
इसका अर्थ है कि हमारे पास क्या नहीं है ? अगर हम हमारी इन चारो शक्तियों को विश्व से खींच लेते है , भारत के अलावा विश्व में जितने देश है , छः महीने में चारो खाने चित हो जायेंगे। हमारी मेधाशक्ति , रक्षाशक्ति , वाणिज्यशक्ति व श्रमशक्ति पूरे विश्व को जीवन दिये हुये हैं !अभी आप लोगों को नहीं मालूम , जो विद्वान् भारत में रोटी भी प्राप्त नहीं कर पाते , या रिटायर्ड हो गये , अवकाश प्राप्त हो गये , नासा उन पंडितो को बुलाकर उनकी मेधाशक्ति का उपयोग करके आविष्कार करवाता है उनके द्वारा और मोहर लगता है। हमारी मेधाशक्ति जो आविष्कार करती है उन विद्वानों को देश में कोई स्थान नहीं है , लेकिन उनकी मेधाशक्ति का उपयोग करके नासा वैज्ञानिक क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है , और मोहर अपनी लगा देता है ! वी.पी.सिंह के कारण जो आरक्षण की प्रथा चली – मण्डल आयोग क्रियान्वित किया गया – जो आरक्षण के आरक्षित है उनके लिये मेरा लाड़ , प्यार , प्रेम सब है किसी नेता के पास नहीं उससे ज्यादा हमारे पास है , वे मेरे लाड़ले लाल है , लेकिन मै संकेत करना चाहता हूँ – वर्तमान जो आरक्षण की प्रथा है , जो आरक्षण में अधिकृत है तथा जो आरक्षण से वंचित है , उन दोनों की प्रतिभा का अपहरण है। वर्तमान आरक्षण के दोष क्या है ? राष्ट्र व व्यक्ति दोनों की प्रतिभा व प्रगति की हानि है ! तीसरा दोष क्या प्रायोजित नहीं , जितनी नौकरी केन्द्रीय या प्रांतीय शासनतंत्र के पास है उनसे अधिक व्यक्ति व वर्ग आरक्षित कर दिये गये। चौथा दोष , जब जूनियर से जूनियर अयोग्य व्यक्ति सीनियर से सीनियर पद पर बैठाया जाता है तो प्रेम नहीं प्रतिशोध की भावना जगती है , ये चारो दोष प्रायोजित नहीं – प्रतिभा की हानि , प्रगति की हानि और प्रतिशोध की भावना यह दोष किसी देश में चौदह वर्ष रह जायें अब तो ज्यादा समय रह गया तो देश परतंत्र हो जाता है ! इसलिए ऐसी आरक्षण की विधा होना चाहिये जिससे जन्म से सबकी जीविका आरक्षित हो , अनुसंधान कीजिये उसी का नाम वैदिक आर्य हिन्दू धर्म है !

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