पुरी शंकराचार्य का संयुक्त राष्ट्र संघ को संदेश

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पुरी शंकराचार्य का संयुक्त राष्ट्र संघ को संदेश

भुवन वर्मा बिलासपुर 13 नवम्बर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज संयुक्त राष्ट्र संघ के नाम पर पत्र जारी करते हुये संकेत करते हैं कि धर्म और मोक्ष से सुदूर आधुनिक जगत् अर्थ और काम तक सीमित है। भोग्यसामग्री का नाम जहाँ अर्थ है, वहाँ उसके उपभोग से सुलभ भूख-प्यास आदि की निवृत्ति तथा देहेन्द्रियप्राणान्त:करण की पुष्टि और तृप्ति काम है। अर्थोपार्जन और विषयोपभोग को वेदादिशास्त्रसम्मत वह सनातन विधा जो भोग और मोक्ष – दोनों में हेतु हो, वह धर्म है। मृत्यु, अज्ञता और दुःख से अतिक्रान्त जीवन मोक्ष है। जन्म से जीविकोपार्जन की विधा का विलोप होने के कारण विश्वस्तर पर आर्थिक विपन्नता तथा अनावश्यक विषमता का ताण्डवनृत्य दृष्टिगोचर है।

संयुक्त परिवार का विखण्डन , प्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्ति के क्रमिक उत्कर्ष में और उत्तरोत्तर उत्कृष्ट आनन्दाभिव्यक्ति में हेतुभूत सनातन वेदादिशास्त्रसम्मत कर्म और उपासना का विलोप, विकास के नाम पर महानगरों को संरचना के कारण कृषियोग्य भूमिका विलोप, वन – पर्वत – नद – निर्झर आदि वर्षा के दिव्य स्रोतों को विकृत करने तथा विल्लुप्त करने का उद्योग, महायन्त्रों के अधिकाधिक प्रयोग के फलस्वरूप दूषित पर्यावरण, मद्य – द्यूतादि – दुर्व्यसन आर्थिक विषमता के सुदृढ स्रोत हैं। प्रत्येक परिवार से आस्थापूर्वक औसतन एक रुपया तथा एक घण्टा प्रति दिन निकले। उस धन और समय का उपयोग उस क्षेत्र को सुसंस्कृत, सुरक्षित, सम्पन्न बनाने में हो। पृथिवी अर्थ है, जल अर्थ है, तेज अर्थ है, वायु अर्थ है, आकाश अर्थ है, देहेन्द्रियप्राणान्त:करण सहित जीव अर्थ है। जीवनधन जगदीश्वर की जो भी अभिव्यक्ति है, वह अर्थ है। जीवनधन जगदीश्वर के लिए जो भी प्रयुक्त तथा विनियुक्त है, वह अर्थ है। हम सच्चिदानन्दस्वरूप सर्वेश्वरके सनातन अंश – सदृश होते हुए प्राणी हैं, प्राणी होते हुए मनुष्य हैं, मनुष्य होते हुए हिन्दु – आदि हैं – इस तथ्य में आस्थान्वित रहते हुए सर्वहित की भावना से हितैषी, हितज्ञ, हित करने में तत्पर और समर्थ – सत्पुष के मार्गदर्शन में जीवन यापन सर्वसुमङ्गल है।

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