गोसेवा – संत सेवा-ठाकुर सेवा नि:स्वार्थ करनी चाहिये – मलूकपीठाधीश्वर
गोसेवा – संत सेवा-ठाकुर सेवा नि:स्वार्थ करनी चाहिये – मलूकपीठाधीश्वर
भुवन वर्मा बिलासपुर 9 नवम्बर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
वृँदावन — गोवर्धन मठ पुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के लाड़ले प्यारे गोसेवक , गोउपासक , राष्ट्रपति पुरस्कृत मलूकपीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू द्वाराचार्य राजेंद्रदास महाराज ने गाय का महत्व बताते हुये कहा कि गाय के चारों पैरों में ही चार वेद हैं। मनुष्य गो सेवा करके भी अपना आत्म कल्याण कर सकते हैं। ये हमारे अच्छे कर्म हैं कि हमको गो सेवा करने का अवसर मिल रहा है। उन्होंने आगे कहा कि हमें कभी अभिमान नहीं करना चाहिये , हम जो कुछ कर रहे हैं वह भगवान की मर्जी है। हम तो सिर्फ निमित्त मात्र हैं, जो भगवान हमसे यह सब कार्य करवा रहे हैं। ईश्वर ने इसके लिये हमको चुना यह ईश्वर का हमारे प्रति विश्वास है। भगवान भाव से ही मिलते हैं उनको पाने के लिये भक्त को भी अपने भगवान के प्रति विश्वास भाव होना चाहिये। सेवा हेतु नि:स्वार्थ सेवा पर महाराजश्री ने जोर देते हुये कहा कि किसी की सेवा की जाये यदि उसमें कोई स्वार्थ नहीं है, तो उसका लाभ भी असीमित होता है। यदि स्वार्थ से सेवा की जाती है तो लाभ तो होता है, लेकिन वह सीमित रह जाता है। इसलिये गौ सेवा, संत सेवा और ठाकुर सेवा निः स्वार्थ भाव से करना चाहिये। मलूकपीठाधीश्वर ने भक्तमाल से त्रिलोचन भक्त की कथा सुनाते हुये कहा कि वह वैश्य परिवार मे जन्म लिया और संत सेवा , ठाकुर सेवा की। उनकी निःस्वार्थ सेवा पर ठाकुर इतने रिझ गये कि स्वयं अंतर्यामी नाम के सेवक बनकर आ गये , इसलिये सदा नि:स्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिये जिसका लाभ असीमित होता है। संतो ने समय-समय पर अवतरित होकर हमारे सनातन धर्म की रक्षा की है। मनुष्य को भगवान के दर्शन होने पर शोक, मोह अपने आप समाप्त हो जायेंगे।