पुरुषार्थविहीन व्यक्ति की संरचना वर्तमान विकास की देन – पुरी शंकराचार्य

0
9EDED658-9C6C-4B64-9992-AEB748F9E5FE

पुरुषार्थविहीन व्यक्ति की संरचना वर्तमान विकास की देन – पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 25 अक्टूबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठ वर्तमान शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग के पावन सानिध्य एवं दिव्य मार्गदर्शन में आधुनिक यांत्रिक विधा के द्वारा संगोष्ठियां आयोजित कर पूरे विश्व को विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिये स्वस्थ विधा आलंबन का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। वर्तमान समय में पूरा विश्व विकास की परिभाषा तथा क्रियान्वयन के संबंध में दिग्भ्रमित है , विपरीत दिशा का चयन से विभिषिका परिलक्षित हो रहा है।

पुरी शंकराचार्य के मार्गदर्शन में हिन्दु राष्ट्र संघ अधिवेशन के विभिन्न चरणों में पूरे विश्व में सक्रिय सनातन सिद्धांतों के प्रति आस्थावान मनीषियों को एक धारा में जोड़ने का अभिनव अभियान संचालित है जिसके फलीभूत होने पर सम्पूर्ण विश्व का कल्याण संभव हो सकेगा। इसी क्रम में अधिवेशन के पंचम चरण के प्रथम दिवस को डॉ० एडीएन बाजपेयी जबलपुर , अधिवक्ता हरिशंकर जैन , डॉ विक्रांत सिंह तोमर उज्जैन , डॉ० नीरजा गुप्ता अहमदाबाद , पवनसिंह न्यूजर्सी अमेरिका , सुवेन्दु स्वाइन कटक , अधिवक्ता प्रेमचंद्र झा आदि मनीषियों ने हिन्दु राष्ट्र संघ की अवधारणा एवं सामयिक उपादेयता बताते हुये अपने भाव व्यक्त किये।

अधिवेशन के माध्यम से पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी ने पूरे विश्व की कल्याण की भावना से संबोधित करते हुये कहा कि विश्व के सभी समस्याओं एवं वर्तमान विभिषिका का समाधान सनातन सिद्धांत के पालन एवं उसके सनातन सिद्धांत में निहित क्रियान्वयन विधा को अपनाने में ही संभव है। जिस प्रकार रोग के प्रभाव को ही रोग मानकर चिकित्सा करने पर लाभ नहीं होता , वही स्थिति किसी समस्या का निराकरण उस समस्या के मूल या कारण को ना समझ पाना है। विश्व के लिये आर्थिक विपन्नता मूल समस्या नहीं है , इस विसंगति का मूल कारण सनातन परम्परा से विमुखता है जो धर्मनियन्त्रित, पक्षपातविहीन , शोषणविनिर्मुक्त, सर्वहितप्रद शासनतन्त्र की स्थापना से दूर हो सकता है। हमें शिक्षा मिलती है कि किस प्रकार जब देवताओं के द्वारा अराजकता पर विजय प्राप्त नहीं हो सका तो उन्होंने अपने अपने तेज को सन्निहित करके देवी शक्ति को प्रगट किया जिसने देवताओं के सामुहिक शक्ति का उपयोग अराजकता के दमन के लिये किया । यह संघ शक्ति का सात्त्विक स्वरूप है। विश्व को यदि विनाश से बचना है तो सनातन शास्त्रसम्मत हमारे भोजन , वस्त्र ,आवास , शिक्षा , चिकित्सा , उत्सव त्यौहार , यातायात में अंतर्निहित ज्ञान विज्ञान को अपनाना ही पड़ेगा। वेदों में महाराज पृथु को आदि राजपुरूष की उपाधि दी गई है , इसका कारण है कि महाराज पृथु को मानव जीवन के आवास ,कृषि आदि के लिये आवश्यक भूतल को समतल करने का श्रेय है , उनको पृथ्वी के संतुलन के विधा का ज्ञान था कि अनावश्यक पर्वतादि के विनाश से कालान्तर में भूकम्प का कारण बन सके।

अनेकों उदाहरण से स्पष्ट है कि वेदज्ञ मनीषियों द्वारा ज्ञान विज्ञान कितना उन्नत है एवं आज के आधुनिक युग में भी उपयोगी व प्रासंगिक है , जैसे सनातन परम्परा में पीपल वृक्ष , गोवंश को पूज्य माना जाता है , आधुनिक विज्ञान ये सिद्ध करता है कि दोनों ही जीवनदायिनी आक्सीजन प्रदान करते हैं। प्रकृति की स्वघटित घटनाएं जैसे ग्रहण आदि तिथि का ही अनुगमन करते हैं। वर्तमान यांत्रिक युग में विकास के क्रियान्वयन की मन:कल्पित विधा से धर्म के प्रमुख दस लक्षणों का विलोप हो रहा है , इसमें प्रमुख धृति या धारणाशक्ति या धैर्य का क्षरण हो रहा है । धैर्य के आलम्बन से ही सन्मार्ग पर चलकर धर्म की प्राप्ति होती है । धैर्य की पराकाष्ठा ही कैवल्य मोक्ष का साधन है। वर्तमान विकास से सिर्फ सुख, साधन की वृद्धि हो रही है , पुरुषार्थ चतुष्टय का क्षय हो रहा है। पुरुषार्थविहीन व्यक्ति की संरचना ही वर्तमान विकास की देन है। मानव जीवन के लिए आवश्यक पृथ्वी के धारक तत्त्वों की रक्षा सिर्फ सनातन सिद्धांत के पालन के द्वारा ही संभव है। सनातन सिद्धांत हर काल हर परिस्थिति में प्रासंगिक एवं सर्वोत्कृष्ट है।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *