औषधीय पौधे प्रकृति का वरदान : अलीशा

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औषधीय पौधे प्रकृति का वरदान : अलीशा

भुवन वर्मा बिलासपुर 23 अक्टूबर 2020

आदिकाल से ही मनुष्य औषधीय पौधों का इस्तेमाल कर रहा, आज प्रायः जो दादी मां के नुस्खे आज के जमाने की युवा पीढ़ी जानती है, यह वही नुस्खे हैं जो औषधीय पौधों के इस्तेमाल से बनाए जाते हैं। और यह प्रकृति का वरदान ही है कि हमारे आसपास इतने सारे औषधीय गुणों वाले पौधे मौजूद हैं केवल ज़रूरत है तो उनकी उपयोगिता समझने की। हमारे भारत देश में औषधीय पौधों की काफी सारी प्रजातियां पाई जाती हैं और इसी वजह से आयुष मंत्रालय ने कृषकों की आय बढ़ाने का माध्यम इन औषधीय पौधों को बना दिया। यह औषधीय पौधे न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर स्वास्थ्य ठीक रखते हैं अपितु यह सुंदरता बढ़ाने में भी काफी कारगर सिद्ध होते हैं।

कई औषधीय पौधे ऐसे हैं जिनके बारे में हम जानते तो हैं लेकिन उनके असल गुणों से वंचित हैं, कुछ ऐसे ही औषधीय पौधे हैं:-

  1. गिलोय: इसे गुडुची भी कहा जाता है, गिलोय का वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया है, आयुर्वेद में गिलोय की तासीर को गर्म माना जाता है, यह स्वाद में कड़वा और हल्की झनझनाहट उत्पन्न करने वाला होता है।
    फायदे – सूजन कम करता है , शुगर को नियंत्रित करता है, गठिया रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है, सांस संबंधी रोग जैसे दमा और खांसी में फायदा होता है।
  2. सतावर: बेल या झाड़ के रूप वाली शतावरी एक जड़ी-बूटी है, इसका वैज्ञानिक नाम अस्परागुस रेसमोसस है, इनमें सफेद मूल निकलते हैं और औषधीय उपयोग में मुख्यतः यही मूल अथवा इन्हीं ट्यूवर्स का उपयोग किया जाता है।
    फायदे – शक्तिवर्धक के रूप में, चर्मरोगों के उपचार हेतु, शारीरिक दर्द के उपचार हेतु, तेजी से वजन कम करने हेतु, एंटीऑक्सिडेंट और ग्लूटाथियोन होने की वजह से इसका इस्तेमाल सौंदर्य निखारने के लिए भी किया जाता है और लेप की तरह इसे चेहरे पर लगाया जाता है।
  3. दालचीनी: दालचीनी का वैज्ञानिक नाम सिनॅमोमम झेलॅनिकम है। इसका पेड़ झाड़ी की तरह होता है और उसके तने की छाल चुनकर सुखाई जाती है। इसका उपयोग मसालों में किया जाता है और इसका तेल भी काफी फायदेमंद होता है। फायदे – पेट दर्द, सीने में जलन, सर्दी जुकाम, महिलाओं में गर्भाशय के विकार, मुंहासे, कोलेस्ट्रॉल कम करने, मोटापा कम करने में काफी सहायक है, इसके तेल का इस्तेमाल घाव के सूजन कम करने, खुजली से निजात पाने, दांत दर्द कम करने के लिए किया जाता है। आयुष मंत्रालय ने कोरोना से बचाव हेतु दालचीनी पानी का अधिक सेवन करने कहा है।

4.अश्वगंधा: इसकी ताजा पत्तियों तथा जड़ों में घोड़े की मूत्र की गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा पड़ा। इसका वैज्ञानिक नाम विथानिया सोमनिफेरा है। आयुर्वेदिक उपचार के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

फायदे – अश्वगंधा कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है, इम्युन सिस्टम को मजबूत बनाता है, वाइट ब्लड सेल्स और रेड ब्लड सेल्स दोनों को बढ़ाने का काम करता है, आंखो की रोशनी बढ़ाने में सहायक है साथ ही यादास्त तथा एकाग्रता बढाने के लिए उपयोग किया जाता है।

  1. एलोवेरा: घृत कुमारी या एलोवेरा इसे क्वारगंदल, या ग्वारपाठा भी कहा जाता है, इसे औषधियों का राजा भी कहा जाता है। इसके अंदर के लसलसे पदार्थ का उपयोग किया जाता है। इसके जूस का सेवन अत्यधिक फायदेमंद होता है।

फायदे – त्वचा , बालों, पेट और पूरी सेहत को अलग-अलग तरह से लाभ पहुंचाता है, पाचन, ब्लड शुगर, डायबिटीज के लिए, पेट के रोगों, जोड़े के दर्द के लिए बेहद फायदेमंद है।

  1. गुड़मार : इसका वैज्ञानिक नाम जिमनामा सिल्‍वेस्‍टर है, यह बेल के रूप में होता है। इसकी पत्ती का सेवन करने से किसी भी मीठी चीज का स्वाद लगभग एक घंटे तक के लिए समाप्त हो जाता है, इसलिए इसे मधुनाशिनी कहते हैं।

फायदे – मधुमेह रोगियों के लिए काफी फायदेमंद है, यह अक्षिविकार, कास, कुष्ठ, कृमि, व्रण एवं विष को नष्ट करने वाला है। गुड़मार का उपयोग मूत्र संबंधी परेशानियों, मोटापा, खांसी, सांस लेने की समस्‍या, आंखों की समस्‍या, अल्‍सर, पेट दर्द जैसी समस्याओं के निवारण में किया जाता है।

  1. तुलसी: इसका वैज्ञानिक नाम ऑसीमम सैक्टम है, शास्त्रों में तुलसी के महत्व का उल्लेख सभी जानते हैं पर तुलसी एक औषधीय पौधा भी है जिसके काफी लाभ होते हैं।

फायदे – तुलसी में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल तत्व घाव को पकने नहीं देता है, दस्त, महिलाओं के मासिक धर्म, सर्दी जुकाम, मुंह के छालों से निजात दिलाने में सहायक है। हमें नियमित ही तुलसी के पत्तों की चाय या काढ़ा बना कर सेवन करना चाहिए, यह हमारे चेहरे पर चमक भी लाती है।

  1. जटामांसी: इसकी जड़ में बाल जैसे तंतू लगे होते हैं, जटामांसी के कंद गहरे भूरे और काले रंग के जटा के समान रोम युक्त गुणों से युक्त होते हैं इसके सुगंधित तेल में गंध होती है जो कि रसायन वार्लिपाटरियेट कारण पाई जाती है। इसका प्रयोग धूपबत्ती हवन सामग्री एवं बालों की चमक मे’ सुगंध तैयार करने के लिए किया जाता है। इसे बाल झाड़ के नाम से भी जाना जाता है ।

फायदे – सांस, खांसी, विष संबंधी बीमारी, विसर्प या हर्पिज़, उन्माद या पागलपन, अपस्मार या मिर्गी, वातरक्त या गाउट, शोथ या सूजन आदि रोगों में जिस धूपन का इस्तेमाल होता है उसमें अन्य द्रव्यों के साथ जटामांसी का प्रयोग मिलता है। जटामांसी का तेल केंद्रीय तंत्र और डिप्रेशन पर प्रभावकारी होती है। इसका चूर्ण बनाकर चेहरे पर इस्तेमाल करने से चेहरे में रौनक बढ़ जाती है।

  1. आंवला: आंवले में विटामिन सी की भरपूर मात्रा पाई जाती। संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा आदि नामों से जानते हैं। आयुर्वेद में आंवले का सर्वाधिक महत्व है।

फायदे – आंवला इम्युनिटी बढ़ाता है यह प्राकृतिक प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने वाला माना जाता है, प्राकृतिक रूप से खून को साफ करता है, चेहरे के मुंहासों को दूर करता है, हृदय से संबंधित परेशानियां, मांस पेशियों की कमजोरी दूर करता है, ब्लड सरकुलेशन सही रखने में मददगार है, यूरिन की मात्रा को नियंत्रित कर यूरिन इन्फेक्शन से बचाव करता है, वजन घटाने, मधुमेह, पाचन में काफी सहायक है।

  1. अर्जुन: आयुर्वेद में अर्जुन के पेड़ को कई औषधीय गुणों से भरा हुआ बताया गया है। अर्जुन के पेड़ में बीटा-सिटोस्टिरोल, इलेजिक एसिड, ट्राईहाइड्रोक्सी ट्राईटरपीन, मोनो कार्बोक्सिलिक एसिड, अर्जुनिक एसिड पाया जाता है, जिस कारण यह रोग को दूर करने के लिए काफी उपयोगी माना जाता है।

फायदे – अर्जुन की छाल से स्ट्रोक, हार्ट अटैक और हार्ट फेल जैसे हार्ट संबंधी रोगों का इलाज किया जा सकता है, अर्जुन की छाल से हृदय रोग, क्षय, पित्त, कफ, सर्दी, खांसी, अत्यधिक कोलेस्ट्रॉल और मोटापे जैसी बीमारी को दूर करने में मदद मिलती है साथ ही सौंदर्य प्रसाधन में भी इसका उपयोग किया जाता है।

  1. बबूल: औषधि के रूप में बबूल का इस्तेमाल बहुत सालों से किया जा रहा है, । इसमें विटामिन,आयरन, मैग्नीज, जस्ता, प्रोटीन और वसा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, आज भी लोग बबूल के दातून का इस्तेमाल करते हैं। यह फाइबर का काफी अच्छा स्त्रोत होता है।

फायदे – मुंह के छाले, खांसी, दस्त, पीलिया, बाल झड़ने, टॉन्सिल, ज्यादा पसीना आने, घुटने व कमर दर्द, महिलाओं के रोग, एसिडिटी, और दांतों के लिए बबूल अत्यधिक फायदेमंद है।

  1. हर्रा: इसे हरड़ या हरीतकी भी कहा जाता है, हरीतकी को वैद्यों ने चिकित्सा साहित्य में अत्यधिक सम्मान देते हुए उसे अमृतोपम औषधि कहा है।

फायदे – हर्रा का काढ़ा त्वचा संबंधी एलर्जी में लाभकारी है, भूख बढ़ाता है, कब्ज से छुटकारा दिलाने में, उल्टी होने पर, आंखों के रोगों से निजात दिलाने में, पेट के भारीपन में राहत के लिए, शरीर की थकान दूर करने में, खुजली जैसे रोग में, शरीर के घाव को भरने में काफी फायदेमंद होता है।

  1. बहेड़ा: बहेड़ा को बिभीतकी भी कहा जाता है, इसके अंदर एक मींगी निकलती है, जो मीठी होती है। औषधि के रूप में अधिकतर इसके फल के छिलके का उपयोग किया जाता है।

फायदे – कब्ज को दूर करता है, मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है, भूख बढ़ाता है, वायु रोगों को दस्तों की सहायता से दूर करता है, पित्त के दोषों को दूर करता है, सिर दर्द दूर करता है, बवासीर खत्म करता है, आंखों व दिमाग स्वस्थ व शक्तिशाली बनाता है, कफ खत्म करता है तथा बालों की सफेदी को मिटाता है। यह नशा, खून की खराबी और पेट के कीड़ों को नष्ट करता है, टी.बी तथा कुष्ठ रोग में भी बहुत लाभदायक होता है।

  1. करौंदा : आयुर्वेद में इसे कई रोगों का इलाज बताया गया है। इसका वानस्पातिक नाम कैरिसा कैरेंडस है, इसमें आयरन और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साइटोटॉक्सिक विशेषताओं के कारण, यह कैंसर और ट्यूमर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकता है।

फायदे: एनीमिया में लाभकारी, एनाल्जेसिक के रूप में भी काम करता है। दिल को स्वस्थ रखने, डायरिया, सर्दी और खांसी से लड़ने के लिए इसे उपयोगी माना जाता है। यह रक्त को साफ करता है व रक्तचाप को नियंत्रित करता है। इसकी पत्तियों और जड़ का पेस्ट बनाकर जख्मों को भरने के लिए लगाया जाता है।

  1. हथजोड़: अस्थिसंहार या हथजोड़ को आयुर्वेद में औषधि के रुप में सबसे ज्यादा प्रयोग हड्डियों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रकृति से मधुर, कड़वा, तीखा, गर्म, लघु, गुरु, रूखी, कफवातशामक, पाचक और शक्तिवर्द्धक होता है।

फायदे – पेट संबंधी समस्या, पाइल्स, ल्यूकोरिया, मोच, अल्सर आदि रोगों के उपचार में भी काम आता है। इसके अंदर नेचुरल कैल्शियम पाया जाता है जो हड्डियों को जोड़ने में मददगार साबित होता है।

  1. करी पत्ता: इसे मीठा नीम भी कहा जाता है। इसके इस्तेमाल से बालों और त्वचा को पोषण मिलने के साथ-साथ आपकी शरीर अंदर से भी फिट रहता है। इसमें बिटा कैरोटिन जैसे एंटिऑक्सीडेंट होते हैं. इसके साथ ही साथ करी पत्ते में विटामिन सी भी भरपूर पाया जाता है. यह टाइप 2 डायबिटीज मरीजों और दिल के रोगियों के लिए बहुत अच्छा है.

फायदे – यह रोगाणु को नष्ट करता है, बुखार और गर्मी से राहत प्रदान करता है, भूख में सुधार लाता है, मल को नरम करता है और पेट फूलने से राहत देता है। एनीमिया और लिवर की समस्या दूर करता है, शुगर क स्तर को संतुलित रखता है, वजन घटाने में काफी सहायक होता है, साथ ही बालों और त्वचा क लिए काफी लाभदायक है।

  1. नीम: सबसे बहुमूल्य जड़ी-बूटियों में से एक नीम का नाम आयुर्वेद में उल्लेख किया गया है, इसके रेशे-रेशे में खून को साफ करने के गुण भरे पड़े हैं, नीम को निम्ब भी कहा जाता है। सूखे अन्न जैसे गेहूं या चावल को लंबे समय तक कीटाणुओं से मुक्त रखने के लिए पुरातन काल में नीम की पत्तियों को उस अन्न के बक्से में रखा जाता था और आज भी लोग इस विधि का इस्तेमाल करते हैं।

फायदे – नीम का पेड़ त्‍वचा संक्रमण, घावों, संक्रमित जलन और कुछ फंगल इंफेक्‍शन जैसी कई समस्‍याओं को दूर करने में मदद करता है। नीम के तेल से कई तरह के साबुन, लोशन और शैंपू तैयार किए जाते हैं। नीम की पत्तियां मच्‍छरों को भगाने में भी बहुत असरकारी होती हैं। इससे लिवर के कार्य करने की क्षमता में सुधार आता है और ब्‍लड शुगर का स्‍तर संतुलित रहता है। इसका इस्‍तेमाल कुष्‍ठ रोग, नेत्र संबंधित विकारों, आंतों में कीड़े, पेट खराब होने, त्‍वचा और रक्‍त वाहिकाओं में अल्‍सर, बुखार, डायबिटीज एवं लिवर से संबंधित समस्‍याओं में किया जाता है। नीम का तेल गर्भ निरोधक में असरकारी है।

  1. स्टेविया : स्टेविया को मीठे पत्ते या चीनी के पत्ते सहित विभिन्न नामों से जाना जाता है, लेकिन औपचारिक वैज्ञानिक नाम स्टेविया रेबउडियाना है। स्टेविया में एंटीऑक्सिडेंट यौगिक जैसे कि फ्लावोनोइड्स, ट्राइटरपेनस, टैनिन, कैफीक एसिड, काम्पेरोल और क्वैक्सेटीन शामिल हैं। स्टेविया पौधे में फाइबर, प्रोटीन, लोहा, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सोडियम, विटामिन ए और विटामिन सी भी शामिल हैं।

फायदे – यह मधुमेह रोगियों या कार्बोहाइड्रेट-नियंत्रित आहार खाने वाले लोगों के लिए सामान्य चीनी की तुलना में एक आदर्श विकल्प है, मसूड़ों में होने वाली बीमारियों, चर्म विकारों तथा एन्टी वैक्टीरियल भी है। यह वजन घटाने में भी काफी सहायक होता है, यह गैस, पेट की जलन, त्‍वचा रोग और सुंदरता बढ़ाने के लिए भी उपयोगी होता है।

  1. कालमेघ : आयुर्वेद के अनुसार, कालमेघ के इस्तेमाल से आप शरीर में होने वाले विकारों की रोकथाम कर सकते हैं। यह चिरायते जैसी होती है। इसके पत्ते हरे मिर्च के पत्ते जैसे हरे, और पीले होते हैं। इसे देसी चिरायता के अलावा भूनिम्ब, किराततिक्त, कल्पनाथ के नाम से भी जाना जाता है।

फायदे – कालमेघ का उपयोग बुखार, लिवर की समस्याओं, कीड़े, पेट की गैस और कब्ज आदि के इलाज के लिए किया जाता है। कालमेघ में एंटीप्रेट्रिक (बुखार कम करने वाले), जलन-सूजन कम करने वाले, एंटीबैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट, लिवर को सुरक्षा प्रदान करने वाले गुण होते हैं। इसका उपयोग लिवर और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए भी किया जा सकता है साथ ही यह खून साफ करने में भी सहायक है।

  1. मेथी: इसे मेथिका भी कहते हैं, आयुर्वेद में यही बताया गया है कि मेथी अनेक रोगों की दवा भी है। इसके बीजों का प्रयोग मसालों के साथ-साथ औषधि के रूप में किया जाता है। गाँवों में प्रसूता स्त्री को मेथी के लड्डू विशेष रूप से दिये जाते हैं।

फायदे – बालों के लिए, कान की समस्या, हृदयरोग, पेट क रोग, कब्ज की समस्या, उल्टी, पेचिस, ब्लड शुगर, मासिक धर्म विकार, शरीर क घाव, दर्द, लिवर की समस्या, तंत्रिका विकार ठीक करने के साथ साथ सौंदर्य बढ़ाने में भी मेथी काफी फायदेमंद है, मेथी क लेप से मुहांसे दूर होते हैं और बालों में चमक आती है।

और भी अन्य औषधीय पौधे हैं जैसे अदरक, हल्दी, पुदीना, अपराजिता, पहाड़ी लहसुन, अजवायन, इसबगोल, कनेर, कृष्ण नील, जायफल, नींबू घास आदि जिनका उपयोग अत्यंत लाभकारी है, आज रसायन क दुष्प्रभाव को देखते हुए मानव जाति औषधियों की तरफ ही रुख कर रही है ताकि प्राकृतिक वरदान का इस्तेमाल कर अपने शरीर को स्वस्थ रख सके।
साथ ही कोरोना महामारी से बचाव के लिए भी कोई दवाई अब तक नहीं आई है ऐसे में हमें, योगाभ्यास करते रहना चाहिए और आयुष मंत्रालय द्वारा बताए गए उपाय – अदरक, तुलसी, काली मिर्च, तेजपत्ता, दालचीनी, कच्ची हल्दी और गुड़ का काढ़ा बना कर नियमित सेवन करते रहना चाहिए। यह औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ ही हमारे अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएंगे और बीमारियों से बचाने में सहायता करेंगे।

शेख अलीशा
कृषि स्नातकोत्तर
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

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