श्रीगोवर्धन मठ पुरी की गौरवशाली परम्परा

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श्रीगोवर्धन मठ पुरी की गौरवशाली परम्परा

भुवन वर्मा बिलासपुर 22 अक्टूबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — शिवावतार भगवत्पाद आदि शंकराचार्य जी श्रीमन्नारायण गुरु परम्परा से दसवें क्रम पर और श्रीगोवर्धन मठ पुरी में शंकराचार्य परम्परा में वर्तमान शंकराचार्य जी 145 वें क्रम पर हैं। आदि शंकराचार्य महाभाग द्वारा ईसा पूर्व स्थापित इस मान्य पीठ ने विश्व कल्याण के लिये हर काल हर परिस्थिति में मार्गदर्शन किया है , जो इस कोरोना महामारी के संकटकाल में भी यान्त्रिक विधा के आलम्बन से विभिन्न समसामयिक विषयों पर सुलभ मार्गदर्शन पूज्यपाद शंकराचार्य जी के पावन सानिध्य में उपलब्ध हो रहा है ,यही इस पीठ की विशेषता रही है। इस संदर्भ में उल्लेख है कि भारतवर्ष विश्व के हृदयस्थल के रूप में विख्यात है,विराजित है ।

विश्व में जो भी लौकिक तथा पारलौकिक चमत्कृति है , वह हमारे प्राचीन ग्रंथों में सन्निहित वेदसम्मत ज्ञान कांड, उपासना कांड तथा कर्म कांड के चलते ही है। वेदों का संरक्षण व संवर्धन व्यासपीठ के माध्यम से होता है । शिवावतार भगवत्पाद आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी ने मूर्ति भंजकों के शासन को समाप्त कर स्वस्थ व्यास गद्दी व राज गद्दी की परंपरा को पुनः प्रारंभ किया ।

धर्म के रक्षण के लिये चार मठों की स्थापना की जिसमें प्रथम पीठ गोवर्धनमठ पुरी है । इस मठ के प्रथम आचार्य श्री पद्मपाद आचार्यजी महाराज है , अब तक गोवर्धन मठ के 145 आचार्य हो चुके हैं। इस मठ के 143 वें शंकराचार्य श्री भारती कृष्णतीर्थ जी महाराज ने विश्व को वैदिक गणित प्रदान किया। इसके अलावा 144 वें शंकराचार्य श्री निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज ने गौ की रक्षा के लिये 72 दिनों का अनशन किया। वर्तमान 145 में शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज संपूर्ण विश्व में अपनी अद्भुत मेधा शक्ति संपन्न के लिये जाने जाते हैं। वैदिक गणित , अर्थशास्त्र में उनकी अबाध गति के चलते संयुक्त राष्ट्र संघ , विश्व बैंक , कैंब्रिज यूनिवर्सिटी , ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी , उत्तरी कोरिया , दक्षिणी कोरिया समेत 110 देश इनकी प्रतिभा का लोहा मानते हैं।

राम जन्मभूमि , रामसेतु के रक्षण में अपनी प्रतिबद्धता के चलते संपूर्ण सनातन जगत में महाराज श्री का अद्भुत प्रभाव है। शून्य व एक पर महाराज जी की दस पुस्तके हैं , साथ ही अध्यात्म पर आधारित 150 से अधिक शंकराचार्य जी द्वारा विरचित विभिन्न ग्रंथ भी प्रकाशित हो चुके हैं । पार्टी तथा पंथों में विभक्त हिंदुओं को व्यासपीठ से जोड़ने व राष्ट्र में सुसंस्कृत , सुशिक्षित , संपन्न , सेवा परायण , सर्वहितप्रद सनातन शासनतन्त्र एवं स्वस्थ व्यक्ति तथा समाज की संरचना हेतु महाराजश्री संपूर्ण राष्ट्र में अनवरत रूप से प्रवास करते हैं । इस कलिकाल में ऐसे विभूति का जनकल्याण के लिये स्वस्थ मार्गदर्शन हेतु सहज रूप में उपलब्धता एक चमत्कृति है जो सिर्फ इस देवभूमि भारत में ही संभव होता है। पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी के श्रीचरणों में शिष्य बी०डी० दीवान द्वारा संकलित एवं समर्पित।

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