मेकाले की कूटनीति का परिणाम वर्तमान परिदृश्य – पुरी शंकराचार्य
मेकाले की कूटनीति का परिणाम वर्तमान परिदृश्य – पुरी शंकराचार्य
भुवन वर्मा बिलासपुर 15 अक्टूबर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग अंग्रेजों की कूटनीति व दूषित शिक्षा नीति को उजागर करते हुए संकेत करते हैं कि मेकाले द्वारा प्रयुक्त और विनियुक्त सहशिक्षा , कोर्ट , क्लब , वर्णविहीनता , वेदों के प्रति अनास्था और उनकी असंगत व्याख्या एवम् विविध पन्थों की मान्यता नामक छह कूटनीति सनातन संस्कृति के विलोप में पर्याप्त हेतु है। उसने सहशिक्षा के नाम पर शील के तथा कोर्ट के नाम पर सम्पत्ति तथा स्नेह के विलोप का षड्यन्त्र चलाया, क्लब के नाम पर अश्लील मनोरञ्जन और मादक द्रव्य की दासता का बीज बोया। सनातन परम्पराप्राप्त वर्णविहीनता के नाम पर सनातन कुलधर्म , जातिधर्म , कुलदेवी , कुलगुरु आदि के विलोप का तथा वर्णसंकरता और कर्मसंकरता से दूषित सामाजिक संरचना का षड्यन्त्र चलाया। वेदों के प्रति अनास्था और उनकी दूषित व्याख्या के द्वारा सनातन संस्कृति के विलोप का अभियान चलाया। विविध पन्थों की मान्यता के नाम पर सार्वभौम धर्मगुरु के रूप में शंकराचार्यों के स्वस्थ मार्गदर्शन से देश को वंचित कर भारत के विखण्डन का षड्यन्त्र क्रियान्वित किया और आर्यों के लौकिक एवं पारलौकिक उत्कर्ष व मोक्ष का मार्ग अवरूद्ध किया।
वर्तमान में विकास के नाम पर भोजन , वस्त्र, आवास , शिक्षा , चिकित्सा , उत्सव त्यौहार , रक्षा , न्याय एवं विवाह के क्षेत्र में ह्रास तथा विनाशोन्मुखता ही परिलक्षित है। शुद्ध और पर्याप्त अन्न जल सबको सुलभ नहीं है। शील , शुद्धि , स्वास्थ्य , शोभा , सुरक्षा व उपयोगिता के सर्वथा विपरीत वस्त्रों का प्रचार प्रसार घातक है। नगर तथा महानगर परियोजना के नाम पर ग्राम , वन , पर्वत , खनिज द्रव्यों का द्रुतगति से विलोप जनजीवन के लिए भीषण अभिशाप है। सुवृष्टि के स्वाभाविक स्त्रोत वन , पर्वत व शास्त्रसम्मत यज्ञ के विलोप से विकास विनाश सिद्ध हो रहा है। विद्युत , सिंचाई , स्वच्छता परियोजना के नाम पर नदी , तालाब , समुद्र का अशुद्धिकरण तथा यन्त्रों द्वारा प्रचुर जलकर्षण से भूगर्भजल में कमी परिणामस्वरूप जलविहीन भूमण्डल का सूचक है। नीति तथा अध्यात्मविहीन शिक्षा तथा शिक्षण संस्थानों का केवल धन , मान के लिए उपयोग धर्मद्रोह और अराजकता का कारण है। केवल तात्कालिक मनोरंजन और मादक द्रव्यों के प्रचलनादि के कारण उत्सव त्यौहार की दिशाहीनता सुसंस्कृत जीवन के लिए घातक है। उन्मादपूर्ण जन जीवन , घातक अस्त्र शस्त्रों की बहुलता, सम्वाद और सञ्चार साधनों की सघनता तथा क्षात्रधर्म की कमी के कारण प्रत्येक व्यक्ति और समाज असुरक्षित है।