जीर्णोद्धार का बाट जोहता श्रीराघवजी मंदिर

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जीर्णोद्धार का बाट जोहता श्रीराघवजी मंदिर

भुवन वर्मा बिलासपुर 15 अक्टूबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जाँजगीर चांँपा — कोसा , कांसा एवं कंचन की नगरी चाँपा में पुण्यसलिला हसदेव नदी किनारे सुरम्य परिवेश में ग्राम लछनपुर , विकासखंड बलौदा में जांँजगीर चाँपा मेन रोड से दो किलोमीटर दूर उत्तर की ओर हसदेव पब्लिक स्कूल के पहले “श्रीराघव जी मंदिर” (बावा डेरा) अवस्थित है। नदी किनारे आसपास आबादी है जहांँ तक जाने के लिये ग्राम पंचायत द्वारा सीसी रोड बनवाया गया है। विश्वस्त सूत्रों से मिलीजानकारी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण चांँपा निवासी स्वर्गीय श्री मनोहर लाल दुबे (द्विवेदी परिवार) द्वारा 250 वर्ष पहले करवाया गया था। इस मंदिर में श्री जगन्नाथ महाप्रभु , बड़े भईया बलभद्र एवं बहन देवी सुभद्रा की मूर्ति के साथ राम ,लखन , जानकी सहित पवनपुत्र बजरंग बली की मूर्ति भी स्थापित है। उस समय इस मंदिर के के चारो ओर वन अच्छादित थे इस कारण यहां की राम लखन जानकी जी की मूर्ति को वनवासी राम के नाम से ख्यापित किया गया। पूर्वजों की सोच थी कि मेरे परिवार का जो सदस्य जगन्नाथ पुरी उड़ीसा ना जा सके वह यहां इस मंदिर में दर्शन लाभ लेकर अपनी मनोकामना प्राप्ति हेतु ,पूजा पाठ कर सकें , इसी उद्देश्य से इसे कुल देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया । हर खुशी के अवसर पर परिवार के सदस्य अपनी मनोकामना हेतु या पूर्ण होने पर इस मंदिर में पहुँचकर अपने कार्य सिद्धि पर पूजा पाठ भजन कीर्तन यथा शक्ति श्रद्धा भक्ति से कर अपनी आस्था को दर्शित करते है एवं महाप्रभु का मंगलमय आशीर्वाद प्राप्त करते है।

इसके सुव्यवस्थित संचालन हेतु निर्माणकर्त्ता द्वारा 10.210 हेक्टेयर ( वर्ष 2014 -15 की जानकारी के अनुसार) भूमि को राघव जी मंदिर के नाम से दान कर दिया गया था ताकि आने वाले समय में मंदिर के व्यवस्थापन का भार आने वाली पीढ़ी पर ना पड़े। उक्त भूमि के आय से ही मंदिर के ऊपर होने वाले( मरम्मत ,पूजा पाठ प्रसाद पुजारी का) खर्च के सुचारू रूप से वहन किया जा सके। मंदिर निर्माणकर्त्ता द्विवेदी परिवार से मिली जानकारी के अनुसार उनके घर और मंदिर के बीच हसदेव नदी प्रवाहित होती है। नदी के उस पार मंदिर होने से उसकी नियमित पूजापाठ और देखरेख के लिये कालांतर में मंदिर निर्माणकर्त्ता परिवार द्वारा श्री श्री बालमुकुंद तपसी जी महाराज महंत बजरंग बली मंदिर डोंगाघाट को सविनय जिम्मेदारी के साथ मंदिर के आय से खर्च को पूरा करते रहने की व्यवस्था सौंप दी गयी। निर्जन इलाके में इस मंदिर के निर्माण होने से यहांँ साधु संत निवास करते थे , पास में ही एक बावली और पानी पीने के लिये कुआंँ का निर्माण कराया गया था। मंदिर से पूर्व में 100 मीटर की दूरी पर हसदेव नदी कलकल बहती धारा से यह स्थान और भी सुरम्य लगने लगता है। मंदिर में सेवा कार्य करने वाले परिवारों के लिये मंदिर से लगे मकान भी बनवाया गया था जो अब खंडहर का रूप ले चुका है। समय पर्यन्त श्री श्री सिद्ध पुरुष तपसी जी महाराज के समाधिस्थ होने के उपरांत डोंगाघाट के महंत श्री शंकरदास जी के सानिध्य में राघवजी मंदिर का संचालन हुआ।

इस मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी (प्रबंधक) जिले के पदेन जिलाधीश महोदय है और उनके अधीनस्थ महंत पूजा पाठ आदि कार्य का संचालन करते है। मंदिर के स्वामित्व वाले भूमियों का महंत के द्वारा अनाधिकृत कब्जा देने का सिलसिला शुरू हुआ। समय पर्यन्त श्री नरोत्तमदास जी महंत हुये , ये भी राघव जी मंदिर के व्यवस्था पर ध्यान ना देते हुये राघव जी के स्वामित्व वाले जमीनों को अन्य लोगों को अनाधिकृत कब्जा देने लगे। उन्होंने भी धीरे धीरे मंदिर की ओर ध्यान देना कम कर दिया। मंदिर का अहाता गिर जाने पर निर्माता ( दानदाता ) परिवार के सदस्य द्वारा अहाता को बनवाने हेतु महंत से निवेदन किया गया जिस पर महंत के द्वारा समय नहीं होने की बात कही गयी ,तब दानदाता परिवार के सदस्य द्वारा मंदिर का अहाता निर्माण कराया गया। मंदिर के कुयें का भी इसी तरह बुरा हाल है उसके अहाते गिर चुके हैं, जिसे बनवाने हेतु महंत के द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। राघव मंदिर की जमीन पर अन्य लोगो को अन्य मंदिर बनाने की सहमति महंत द्वारा दिया गया जिसकी जानकारी दानदाता परिवार को नहीं दी गयी। इस तरह अनाधिकृत कार्य को देखकर दान दाता परिवार द्वारा राघव जी मंदिर के सुव्यवस्था हेतु जिलाधीश महोदय के अनुमोदन से एक संचालन समिति का गठन किया गया ,इसमें अध्यक्ष -पदेन अनुविभागीय अधिकारी राजस्व एवं सदस्यगण मंदिर के महंत , ग्राम पंचायत के पदेन सरपंच , मंदिर के पुजारी , और दानदाता परिवार के तीन सदस्य इस तरह सात सदस्यीय समिति का गठन किया गया। जिसकी लिखित जानकारी प्रत्येक सदस्य को दिया गया। समिति के गठन होने से एकाधिकार ख़त्म होने और मनमानी करने में अवरोध उत्पन्न होने के डर से वर्तमान महंतश्री द्वारा समिति को निरस्त कराने हेतु जिलाधीश महोदय को आवेदन दिया गया। जिस पर जिलाधीश महोदय द्वारा बाकी सदस्यों को अपना पक्ष रखने का अवसर दिये बिना निरस्त कर दिया गया। मंदिर प्रबंधक (जिलाधीश महोदय )की व्यस्तता के कारण महंत अपनी मनमानी से अनाधिकृत कब्जा देने जैसा अचल संपत्ति का दुरूपयोग करने लगा। मंदिर की भूमि 1.910 एकड़ मड़वा पॉवर प्लांट के द्वारा भू अर्जित किया गया,जिसका मुआवजा महंत ने 2712341 रूपये दिनांक 15 जून 2010 को प्राप्त किया। आज दस वर्ष उपरांत भी मंदिर की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है और मंदिर की स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है। मंदिर की इस स्थिति के लिये मंदिर प्रबंधक (जिलाधीश महोदय) की व्यस्तता कहें या महंत की मनमानी को कहें लेकिन आज श्रीराघव जी मंदिर अपने जीर्णोद्धार के लिये बाट जोहता नजर आ रहा है। आज हर कार्य में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया जा रहा है, इसी कड़ी में संचालन समिति का गठन किया गया था लेकिन उसे भी निरस्त कर दिया गया। इस घोर कलियुग में भक्त के सामने भगवान भी लाचार और बेबस नजर आ रहे हैं। मंदिर प्रबंधक जिलाधीश महोदय अगर इस मंदिर समिति को क्रियाशील करने हेतु निर्देश नही देंगे तो वह दिन भी दूर नही जब बावाडेरा से श्रीराघवजी मंदिर ही विलुप्त हो जायेगा।

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