देश के सामान्य नागरिक की प्रथम नागरिक बनने की प्रेरक गाथामहामहिम राष्ट्रपति के जन्मदिन पर विशेष
देश के सामान्य नागरिक की प्रथम नागरिक बनने की प्रेरक गाथामहामहिम राष्ट्रपति के जन्मदिन पर विशेष
भुवन वर्मा बिलासपुर 1 अक्टूबर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
नई दिल्ली — देश के चौदहवें महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के 75 वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के लगभग सभी बड़े दिग्गज नेताओं ने जन्मदिन की बधाई एवं शुभकामनाये देते हुये उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना की है।रामनाथ कोविंद का जन्म 01 अक्टूबर 1945 को कानपुर देहात के ब्राह्मण ठाकुर बाहुल्य इलाके परौख गाँव के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में पिता मैकूलाल एवं माता कलावती के घर हुआ। इस इलाके में सिर्फ चार दलित घर थे। उस वक्त देश अंग्रेजों का गुलाम था , उस समय किसी भी दलित का सफर काफी मुश्किलों भरा होता था। लेकिन इन परिस्थितियों में भी उनके परिवार ने इन्हें पढ़ाया लिखाया। इनके पिता परौख गाँव के चौधरी , कपड़ा के व्यापारी एवं वैद्य थे। इनका बचपन गरीबी में गुजरा। एक बार इन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुये कहा था कि फूस की छत से पानी टपकता था तो हम चार भाई और तीनों बहन सहित सब दीवार के सहारे खड़े होकरबारिश बंद होने का इंतजार करते थे। गरीबी की वजह से ये 06 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। रामनाथ कोविंद बचपन से ही एक होनहार विद्यार्थी थे। कानपुर देहात से अपनी प्राथमिक शिक्षा अर्जित करने के उपरांत वे कानपुर चले गये जहाँ कानपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने कॉमर्स और कानून में स्नातक किया।स्नातक करने के बाद कोविंद दिल्ली जाकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गये। दिल्ली में उनकी मुलाकात जन संघ के नेता हुकुम चंद (उज्जैन वाले) से हुई जिसके बाद उनका रूझान राजनीति की तरफ हो गया। कोविंद ने अपने पेशे की शुरुआत एक वकील के तौर पर की। 1971 में वे दिल्ली बार काउंसिल के सदस्य बने। इन्होने दिल्ली में रहकर आईएएस की परीक्षा तीसरे प्रयास में पास की लेकिन मुख्य सेवा के बजाय एलायड सेवा में चयन होने पर नौकरी ठुकरा दी। इनका विवाह 30 मई 1974 को सविता कोविंद के साथ हुआ। इनके एक पुत्र प्रशांत कुमार और एक पुत्री स्वाति है। वर्ष 1977 से 1979 तक कोविंद ने दिल्ली उच्च न्यायलय में बतौर एडवोकेट कार्य किया। इसी अवधि के दौरान वे तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के निजी सहायक भी रहे। वर्ष 1991 में भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बने और कानपुर नगर के घटमपुर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़कर हार गये। इसके बाद कानपुर देहात के भोगनीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े , उसमें भी इनको पराजय का मुँह देखना पड़ा। वर्ष 1978 में ये सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड बने। वर्ष 1980 से 1993 तक उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बतौर केंद्रीय सरकार के स्थायी अभिवक्ता का कार्य किया।सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट में उन्होंने 16 साल तक वकालत की। इस अवधि के दौरान उन्होंने समाज के विभिन्न कमजोर वर्गों के लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करने में मुख्य भूमिका निभायी। एन० डी० ए० सरकार के प्रथम कार्यकाल के दौरान ये केंद्रीय सरकार द्वारा जारी एक आदेश के खिलाफ एस० सी०/एस० टी० कर्मचारी आंदोलन से जुड़े और एस० सी०/एस० टी० कर्मचारियों के खिलाफ जारी किये गये आदेश को निरस्त कराने में सफल रहे। बतौर संसद सदस्य, कोविंद ने सांसद निधि कोष का पूर्णतयः इस्तेमाल करते हुये उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखण्ड के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा से जुडी विभिन्न आधारिक संरचनाओं का निर्माण कराया। अपने कार्यकाल के दौरान ये विभिन्न संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे। ये बी० आर० अम्बेडकर विश्विद्यालय, लखनऊ और भारतीय राज्यपाल प्रबंधन संस्थान, कोलकाता के प्रबंधन मंडल के सदस्य भी रहे हैं।अक्टूबर 2002 में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुये इन्होंने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र की आमसभा को भी संबोधित किया। ये भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के अलावा भारतीय जनता पार्टी के “अनुसूचित जाति मोर्चा” और “अखिल भारतीय कोली समाज” के अध्यक्ष भी रहे हैं। 08 अगस्त 2015 को ये बिहार के 36 वें राज्यपाल बने।19 जून 2017 को एनडीए द्वारा राष्ट्रपति पद के लिये नामित किये जाने पर 20 जून को राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिये। 25 जुलाई 2017 को रामनाथ कोविंद ने भारत के चौदहवें राष्ट्रपति के तौर पर पद और गोपनीयता की शपथ ली। ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी रहे हैं , ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई स्वयंसेवक देश का राष्ट्रपति बना है। बचपन से ही कठिन संघर्षों से गुजरते हुये कोविंद आज उस मुकाम पर खड़े हैं जहाँ उनकी कलम से हिन्दुस्तान की तकदीर लिखी जाती है।