विकलांगता को टक्कर देती चंचला पटेल बनी मिशाल

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विकलांगता को टक्कर देती चंचला पटेल बनी मिशाल

भुवन वर्मा बिलासपुर 13 सितंबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायगढ़ — कला और बुलंद हौसला के आगे दिव्यांगता भी नतमस्तक हो जाती है , इस बात को कुमारी चंचला पटेल ने बखूबी से साबित कर दिखाया है। सड़क दुर्घटना में एक पैर खो देने के बावजूद भी इन्होंने हार नही मानी और आज विशेष बच्चों को शिक्षा देकर उनको आगे बढ़ा रही हैं। दिव्यांग होकर दिव्यांग बच्चों के भविष्य बनाने में इनकी शिक्षण कार्य की भूमिका अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है।
रायगढ़ जिले समीप एक छोटे से गाँव बघनपुर निवासी चंचला पटेल (36 वर्षीया) के पिताजी पदमन सिंह पटेल कृषक हैं और माँ राधिका पटेल गृहिणी है। दो भाई एक बहन में चंचला सबसे बड़ी हैं। सभी लड़कियों की तरह सुशिक्षित और स्वावलम्बी बनने के उद्देश्य से चंचला अध्ययन कार्य में लगी थी। अचानक वर्ष 1998 में जब यह दसवी कक्षा की छात्रा थी तभी सायकल से स्कूल जाते समय तेज रफ्तार से जा रहे ट्रक ने इसे अपने चपेट में ले लिया। इस दर्दनाक हादसे से काफी खर्च और प्रयास करने के बावजूद भी इनका एक पैर नही बचाया जा सका , इस हादसे ने मानो उनकी जिंदगी ही बदल दी। अपने जीवन के संघर्षों के बारे में जानकारी देते हुये चंचला ने अरविन्द तिवारी को बताया कि एक पैर खो देने के बावजूद भी वह हार नही मानी और अपनी पढ़ाई जारी रखते हुये बीएड की डिग्री हासिल की। वर्ष 2009 में जिंदल कंपनी के सहयोग से इनको कृत्रिम पैर सुलभ हुआ। तब से लेकर आज तक जिंदल द्वारा इनको किसी ना किसी रूप में हमेशा सहयोग मिलते रहता है। हर चार पाँच साल में एक बार उनके पैर का सर्जरी कराना पड़ता है। चंचला वर्ष 2010 से जिंदल के ही आशा द होप में शिक्षिका हैं जहाँ वे दिमाग कमजोर ( विशेष) बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ योगा और सिखाती हैं। वर्ष 2015 में आदरणीया शालू मैडम द्वारा इनको स्वयं सिद्ध अवार्ड से नवाजा गया। इस उपलब्धता से चंचला कहती हैं कि मेरे तो बुरे दिन हट गये और अच्छे दिन आ गये , बच्चों को पढ़ाकर मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती है। विकलांगता से हताश होने वालों के नाम संदेश में उन्होंने कहा कि काम के लिये जज्बा होनी चाहिये , अगर मन में हौसला हो तो वह किसी भी प्रकार की शारीरिक अपंगता को पीछे छोड़ देती है। विकलांगता से हारना नही चाहिये बल्कि इसका डटकर मुकाबला करना चाहिये , ऐसा करने से एक दिन मंजिल मिल ही जाती है। इनको हर क्षेत्रों में मिल रही सफलता से इनके घर के लोग भी काफी खुश हैं। दिव्यांग होते हुये भी इन्होंने कोरोना संक्रमण काल में घर घर जाकर लोगों को कोरोना से बचाव के बारे में उन्हें जागरूक किया , स्वयं मास्क सिलकर लोगों में वितरित की जिसके लिये इनको कई संगठनों ने सम्मानित किया है। इसके अलावा योगा और शास्त्रीय नृत्य प्रतियोगिताओं में भी इनको कई अवार्ड मिल चुके हैं।

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