सेकुलरकरण का अभिप्राय — पुरी शंकराचार्य

1

भुवन वर्मा बिलासपुर 28 जुलाई 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी नीश्चलानन्द सरस्वती महाराज समसामयिक विषय पर अपना संदेश सूत्रात्मक रूप में व्यक्त करते हैं। श्रीरामजन्मभूमि संदर्भ में पहले कहा कि एक ओर सत्ताका बल सुलभ न होनेपर भी महत्त्वाकाङ्क्षा प्रबल, दूसरी ओर सत्ताका बल सुलभ तथा महत्त्वाकाङ्क्षा भी प्रबल। तीसरी ओर केवल सुमङ्गल सत्यका बल। फिर उन्होंने कहा कि श्रीरामभद्र के मन्दिर-निर्माण के प्रकल्प का पूर्ण स्वागत है; तथापि धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकल्प का सेकुलरकरण सर्वथा अदूरदर्शितापूर्ण अवश्य है । फिर पूर्व के वक्तत्व में उल्लेखित सेकुलरकरण को स्पष्ट करते हुए कहा कि धार्मिक तथा आध्यात्मिक प्रकल्पके सेकुलरकरणका अभिप्राय यह है कि सत्तालोलुप तथा अदूरदर्शी शासक और शासनतन्त्रका अन्धानुकरण करने के लिए समुत्सुक या विवश दोनों तन्त्र अपनी सत्ता तथा उपयोगिताको विलुप्त कर दे। वर्तमान समय में पुरी शंकराचार्य जी के द्वारा दी गई नसीहतें भले ही श्रीराममंदिर निर्माण एवं क्रियान्वयन में संलग्न सभी पक्ष अतिउत्साह के अतिरेक में उपेक्षा कर रहे हैं लेकिन भविष्य में ये उपदेश वास्तविकता में फलीभूत होंगे तब पछतावा होगा कि इस संबंध में पुरी शंकराचार्य जी ने समय से पूर्व सचेत किया था। ध्यान रहे हम-सब उस भगवान श्रीरामभद्र के अनुयायी हैं जो मर्यादा पुरूषोत्तम हैं , धैर्य के अवतार हैं । उन्माद में मान्य धर्माचार्यों की अवहेलना से कैसे हम श्रीराम के सच्चे भक्त सिद्ध होंगे।

About The Author

1 thought on “सेकुलरकरण का अभिप्राय — पुरी शंकराचार्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *