बस्तर में शुरू हुई धान की बायोफोर्टीफाइड किस्मों की खेती: दंतेवाड़ा के 16 गांव को जोड़ा गया बायोटेक किसान हब परियोजना से

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भुवन वर्मा बिलासपुर 28 जुलाई 2020


रायपुर/ दंतेवाड़ा- प्रोटीन की कमी दूर करने वाली धान की खेती को प्रोत्साहित करने पहली बार एक साथ प्रदेश के 16 गांव को जोड़ा जा रहा है। यह सभी 16 गांव बस्तर के दंतेवाड़ा जिले में है जहां के किसान इस योजना को लेकर अच्छा उत्साह दिखा रहे हैं। महत्वपूर्ण यह कि इन प्रजातियों की फसल से उत्पादित चावल से प्रोटीन की मात्रा बढ़ाई जा सकेगी।

बायोफोर्टीफाइड किसान हब नाम है उस परियोजना का जो पहली बार छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में आकार लेने जा रही है। 16 गांव के लिए एक साथ लागू इस परियोजना की सफलता के बाद इसका विस्तार प्रदेश के दूसरे जिलों में किए जाने की योजना है क्योंकि कमोबेश हर जिला का चावल उपभोक्ता प्रोटीन की कमी जैसी समस्या का सामना कर रहा है। परियोजना में धान की जिन प्रजातियों को लिया गया है उनमें न केवल प्रोटीन और जिंक की प्रचुरता है बल्कि बोनी की अलग अलग विधियों के उपयोग से 10 से 15 दिन पहले फसल तैयार हो जाती है।

लगेंगे इतनी मात्रा में बीज

बायोफोर्टीफाइड तकनीक से धान की खेती के लिए छिड़काव विधि से प्रति हेक्टेयर 100 से 110 किलो बीज की जरूरत होगी। कतार विधि से बोनी पर 60 से 80 किलो बीज की जरूरत होगी। जबकि रोपाई विधि वह भी कतार में फसल लेने के लिए 40 से 50 किलो बीज की जरूरत पड़ेगी। जबकि सामान्य परंपरागत विधि से बोनी के लिए बीज की मात्रा में 15 से 20 फ़ीसदी बीज की जरूरत अधिक होती है। नई तकनीक के बाद किसान बीज पर लगने वाले अतिरिक्त खर्च से बच सकेंगे।


5 से 10 दिन पहले तैयार होगी फसल

बायोफोर्टीफाइड तकनीक से धान की फसल में वही प्रजाति ली जा सकेगी जिसे इस परियोजना के लिए चुना गया है यानी प्रोटीन और जिंक की मात्रा ज्यादा रखने वाली प्रजातियां इस परियोजना के लिए स्वीकृत की गई है। जिस प्रजाति को सबसे ज्यादा जगह मिली रही है उसमें जिंक राईस एम एस 20 मुख्य है क्योंकि इसमें प्रोटीन और जिंक की मात्रा सबसे अधिक पाई गई है। इसलिए इसे ही पसंद किया जा रहा है


दंतेवाड़ा के ये 16 गांव
बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत बायोफोर्टीफाइड धान की खेती के लिए दंतेवाड़ा के जिन 16 गांव का चयन किया गया है उसमे झोड़ियाबाडम,घोटपाल,रोंजे, समलूर, बारसूर, कटूलनार, गुमड़ा, हारम, हाउनार, कारली,पालनार,बर्रेम, कासोली, हिड़पाल,कवलनार, और मटेनार ग्राम मुख्य है। यहां दंतेवाड़ा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की टीम किसानों की मदद कर रही है। ताकि किसान परियोजना का पूरा लाभ उठा सकें।

” प्रोटीन और जिंक की प्रचुरता वाली धान की प्रजाति को इस परियोजना के लिए चुना गया है। बस्तर में सफलता के बाद इसका विस्तार प्रदेश के अन्य जिलों में किए जाने का प्रस्ताव है ” – डॉ ए के सरावगी, प्रोफेसर एंड हेड जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर।

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