आज नागपंचमी पर विशेष — आचार्यअरविन्द तिवारी की कलम से
भुवनवर्मा बिलासपुर 25 जुलाई 2020
रायपुर — भारत कृषि प्रधान देश है। लोकजीवन में भी लोगों का नागों से गहरा नाता है। सांप खेतों का रक्षण करता है, जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांँप हमारे खेतों को हरा भरा रखता है। हिन्दू धर्म में देवी देवताओं की पूजा उपासना के लिये पर्व मनाये जाते हैं। इसी कड़ी में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है , यह पर्व आज भारत सहित अन्य देशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जायेगा। किवदंती के अनुसार बालकृष्ण जब यमुना किनारे अपने सखाओं के साथ गेंद खेल रहे थे तब उनकी गेंद यमुना नदी में चली गयी। जब वे उसे लाने यमुना पर उतरे तो कालियानाग ने उस पर आक्रमण कर दिया लेकिन बालकृष्ण ने उस पर विजय भी हासिल कर ली। तब भगवान से माफी मांँगते हुये लोगों को हानि ना पहुंँचाने का वचन देकर कालियानाग यमुना नदी को छोंड़कर अन्यत्र चला गया। कालियानाग पर भगवान कृष्ण की विजय को ही नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है।आज के दिन वासुकी नाग , तक्षक नाग , शेषनाग आदि की पूजा करने का विधान है। इस दिन लोग अपने घर के द्वार एवं दीवार पर नागों की आकृति बनाकर नागदेवता की दधि, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चाँवल आदि से पूजन आरती कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं। यदि सपेरा आये तो उसके नाग की पूजा करने का भी प्रचलन है फिर सपेरे को दक्षिणा देकर विदा किया जाता है , अंत में नाग पंचमी की कथा सुनी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इससे नाग देवता की कृपा बनी रहती है और नाग देवता घर की सुरक्षा करते हैं। हिन्दू संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। परन्तु नाग पंचमी जैसे दिन नाग का पूजन जब हम करते हैं, तब तो हमारी संस्कृति की विशिष्टता पराकाष्टा पर पहुंँच जाती है। प्राणीमात्र के साथ आत्मीयता साधने का हम प्रयत्न करते हैं, क्योंकि वे उपयोगी हैं। नागदेवता को भगवान शिव और विष्णु का सर्वाधिक प्रिय बताया गया है। नागदेवता देवों के देव महादेव भगवान शिव के गले की शोभा बढ़ाते हैं तो वहीं वह जगत के पालनहार भगवान विष्णु की सैय्या भी हैं। भगवान विष्णु नागदेवता की कुंडली से बनी सैय्या पर ही विश्राम करते हैं। इन सभी के कारण नागदेवता का धार्मिक महत्व काफी अधिक है। इसके साथ ही सबसे क्रूर ग्रहों में माने जाने वाले राहु को भी नाग का रूप माना जाता है। दुर्जन भी यदि भगवद् कार्य में जुड़ जाये तो प्रभु भी उसको स्वीकार करते हैं, इस बात का समर्थन शिव ने साँप को अपने गले में रखकर और विष्णु ने शेष-शयन करके किया है। इसके कारण नागदेवता का धार्मिक महत्व काफी अधिक है।आज के दिन अनेकों गाँवों व कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में योगों के साथ साथ दोषों को भी देखा जाता है। कुंडली के दोषों में कालसर्प दोष एक बहुत ही महत्वपूर्ण दोष होता है जो कई प्रकार का होता है। जिस इंसान की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उसे पारिवारिक जीवन से लेकर व्यापार, नौकरी क्षेत्र में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नागपंचमी का दिन कालसर्प दोष के निवारण के लिये सर्वोत्तम माना गया है। इस दोष से मुक्ति के लिये ज्योतिषाचार्य नागपंचमी पर नाग देवता की पूजा करने के साथ साथ दान दक्षिणा का महत्व बताते हैं। पुराणों के अनुसार नागों को पाताल लोक का स्वामी माना गया है। सांपो को क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। सांप चूहों आदि से किसान के खेतों की रक्षा करते हैं। साथ ही नाग भूमि में बांबी बना कर रहते हैं इसलिये नागपंचमी के दिन भूलकर भी भूमि की खुदाई या खेतों में हल नही चलानी चाहिये। आज के दिन नागदेव का दर्शन अवश्य करना चाहिये। बांँबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिये। नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।
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