धान में शीथ ब्लाईट : असंतुलित पोषण और नमी से उपजा घातक रोग
बिलासपुर। अनुचित दूरी पर रोपाई, उच्च नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक का असंतुलित छिड़काव और नम व आर्द्र जलवायु (गर्म व असमान मौसम) – ये सब मिलकर धान की फसल में शीथ ब्लाईट नामक घातक रोग का प्रकोप बढ़ा रहे हैं।
धान की तैयार हो रही फसल में अब मृदाजनित कवक प्रवेश कर चुका है। इसका प्रभाव विशेषकर उन क्षेत्रों में अधिक देखा जा रहा है, जहां नमी और गर्म जलवायु सामान्य रूप से बनी हुई है। फिलहाल यह रोग विकास अवस्था पार कर उन्नत अवस्था में पहुँच रहा है, जिस पर तुरंत प्रबंधन के उपाय किए जाने की आवश्यकता है।
रोग के कारण
– अनुचित दूरी पर रोपाई
– नाइट्रोजन उर्वरक का असंतुलित उपयोग
– अधिक नमी और आर्द्र वातावरण
ऐसे करें पहचान
प्रारंभिक अवस्था : पानी के स्तर के पास पत्ती के आवरण (तना) पर अंडाकार, हरे-भूरे पानी से लथपथ धब्बे दिखाई देते हैं।
प्रगति अवस्था : धब्बे बड़े हो जाते हैं, अनियमित भूरे या बैंगनी किनारे के साथ भूरे-सफेद रंग में बदल जाते हैं। घाव आपस में मिलकर जलरेखा से लेकर ध्वज-पत्ते तक फैल सकते हैं।
गंभीर अवस्था : संक्रमित पत्तियाँ मर जाती हैं। रोग पुष्पगुच्छ तक पहुँचकर दाना भरने की प्रक्रिया को बाधित कर देता है। उन्नत अवस्था में धब्बे मिलकर झुलसी हुई आकृति बना लेते हैं और पत्तियों का झुलसना प्रारंभ हो जाता है। अंततः पौधे झुकने लगते हैं और दाने भराव कमजोर हो जाता है।
फसल पर असर : होंगे दाने छोटे
रोग की तीव्रता को देखते हुए प्रभावित खेतों की उपज 5 से 25 प्रतिशत तक कम हो सकती है। दाने छोटे होंगे और उनमें चाकपन अधिक दिखाई देगा। कटाई के बाद प्रभावित खेतों के फसल अवशेष का प्रबंधन आवश्यक है क्योंकि यह रोग अवशेषों में लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
रोग प्रबंधन के प्रभावी उपाय
रोग की पहचान होने पर कार्बेन्डाजिम, हेक्साकोनाजोल, प्रोपिकोनाजोल या वेलिडामाईसिन का छिड़काव मानक मात्रा में करना चाहिए। छिड़काव 12 से 15 दिनों के अंतराल पर दो बार रोग की तीव्रता अनुसार करें।
सिर्फ रसायनों पर निर्भर रहने की बजाय एकीकृत प्रबंधन की रणनीति अपनाना आवश्यक है, क्योंकि शीथ ब्लाईट ऐसा रोग है जो फसल की उत्पादकता और किसानों की आय दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
एकीकृत प्रबंधन की आवश्यकता
– संतुलित पोषण का प्रयोग
– उचित दूरी पर रोपाई
– फसल अवशेष का निपटान
– बीजों का उपचार
– समय पर रसायनों का छिड़काव (कार्बेन्डाजिम, हेक्साकोनाजोल, प्रोपिकोनाजोल, वेलिडामाईसिन आदि)
– जैविक विकल्पों का प्रयोग : ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास, बैसिलस जैसी जैवनाशी तकनीकें
रासायनिक एवं जैविक समन्वय आवश्यक
धान में शीथ ब्लाईट रोग असंतुलित नाइट्रोजन के उपयोग, अधिक नमी और घनी रोपाई के कारण बढ़ रहा है। इसका समाधान केवल रसायनों पर निर्भरता नहीं है, बल्कि रासायनिक व जैविक उपायों के समन्वय से ही फसल की उपज और गुणवत्ता बचाई जा सकती है।
डॉ. विनोद कुमार निर्मलकर
साइंटिस्ट (प्लांट पैथोलॉजी), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर
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