Bihar SIR; आधार को दस्तावेज मानना होगा – बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश
नई दिल्ली। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आज बिहार के विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) मामले में चुनाव आयोग (ECI) को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि आधार कार्ड को मतदाता सूची में शामिल होने के लिए 12वें वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए।
हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा, लेकिन यह पहचान और निवास स्थापित करने के लिए वैध है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने यह फैसला राष्ट्रीय जनता दल (RJD), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिया।
65 लाख नाम हटाने पर उठे थे सवाल
बिहार में SIR प्रक्रिया 2003 के बाद पहली बार बड़े पैमाने पर चल रही है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना है। इस प्रक्रिया के तहत ड्राफ्ट मतदाता सूची 18 अगस्त को प्रकाशित हुई, जिसमें करीब 65 लाख लोगों के नाम हटाए गए थे। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटाने का माध्यम है, जो मुख्य रूप से गरीब और अल्पसंख्यक समुदायों को प्रभावित कर रहा है। चुनाव आयोग ने शुरू में केवल 11 दस्तावेज (जैसे पासपोर्ट, राशन कार्ड, जन्म प्रमाणपत्र, ड्राइविंग लाइसेंस आदि) को ही पहचान के लिए वैध माना था, और आधार को इसमें शामिल नहीं किया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि आधार सबसे आम दस्तावेज है, खासकर गरीबों के पास, और इसे न स्वीकार करना उनके मताधिकार को प्रभावित कर रहा है। इसके अलावा, मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया में अनियमितताएं बताई गईं, जैसे जीवित लोगों को मृत घोषित करना या बिना कारण बताए नाम काटना। विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया सत्ताधारी भाजपा और एनडीए को फायदा पहुंचाने के लिए की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिया था सुझाव, अब आदेश
यह मामला जुलाई से ही सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। 28 जुलाई 2025 को कोर्ट ने मौखिक रूप से चुनाव आयोग को सुझाव दिया था कि आधार कार्ड और EPIC (वोटर आईडी) को मतदाता सूची में शामिल करने के लिए विचार करें, और बड़े पैमाने पर बहिष्कार के बजाय समावेश पर जोर दें। 29 जुलाई को कोर्ट ने 65 लाख नाम हटाने की संभावना पर चिंता जताई और कहा कि जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करेंगे। 6 अगस्त को कोर्ट ने ECI से अनियमितताओं पर जवाब मांगा। 12 अगस्त को याचिकाकर्ताओं ने SIR को अवैध बताया, और कोर्ट ने गलतियां नोट कीं। 13 अगस्त को कोर्ट ने कानूनी प्रावधानों का हवाला दिया। 14 अगस्त को कोर्ट ने ECI को निर्देश दिया कि हटाए गए नामों को ऑनलाइन प्रकाशित करें और आधार को स्वीकार करें। 22 अगस्त को कोर्ट ने ECI को हटाए गए वोटर्स को आधार से ऑनलाइन आवेदन की अनुमति देने का निर्देश दिया। 1 सितंबर को कोर्ट ने क्लेम्स/आपत्तियों की डेडलाइन नहीं बढ़ाई, लेकिन कहा कि नामांकन की अंतिम तारीख तक आवेदन माने जाएंगे, और आधार अस्वीकार करने के मामलों पर स्पष्टीकरण मांगा। आज के आदेश में कोर्ट ने इन सुझावों को औपचारिक रूप से लागू करते हुए ECI को तुरंत निर्देश जारी करने को कहा।
याचिकाकर्ताओं ने फैसले का स्वागत किया
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के आज के आदेश का स्वागत किया है, लेकिन उन्होंने ECI पर पहले के आदेशों की अवहेलना का आरोप लगाया। RJD की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा कि तीन पहले के कोर्ट आदेशों के बावजूद ECI के अधिकारी आधार को स्टैंडअलोन दस्तावेज के रूप में नहीं स्वीकार कर रहे थे, और एक बूथ लेवल ऑफिसर को आधार स्वीकार करने पर शो-कॉज नोटिस जारी किया गया। उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना बताया और कहा कि इससे गरीब लोग प्रभावित हो रहे हैं। अन्य याचिकाकर्ता, जैसे वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय और गोपाल शंकरनारायणन ने भी आधार को “12वें दस्तावेज” के रूप में स्पष्ट करने की मांग की, क्योंकि पहले के आदेशों का असर नहीं हुआ। AIMIM की ओर से सीधे कोई प्रतिक्रिया दर्ज नहीं हुई, लेकिन वे भी याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं और विपक्षी दलों ने सामान्य रूप से इस फैसले को सकारात्मक बताया है। कुल मिलाकर, याचिकाकर्ता संतुष्ट लगते हैं, लेकिन उन्होंने ECI से तुरंत क्रियान्वयन की मांग की है।
आज के आज निर्देश जारी करने का आदेश
कोर्ट ने ECI को उसी दिन (8 सितंबर) अपने मैदानी अधिकारियों को निर्देश जारी करने को कहा। ECI के वकील राकेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.6% ने दस्तावेज जमा किए हैं, और आधार से कोई बड़ा फायदा नहीं होगा, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि केवल वास्तविक नागरिक ही वोट दे सकते हैं, और फर्जी दस्तावेजों को रोका जाएगा। अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होगी।
यह फैसला बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों से पहले महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि अधिक से अधिक लोग, खासकर गरीब और हाशिए पर रहने वाले, मतदाता सूची में शामिल हो सकें। कोर्ट ने ECI को आधार की प्रामाणिकता की जांच करने का अधिकार भी दिया है।
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