प्रधानमंत्री की मृत माँ को गाली: यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि चुनाव जीतने के बाद वे क्या करेंगे….! क्या यही है आपका लोकतांत्रिक व्यवहार

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दरभंगा बिहार के एक चुनावी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी को मां की गाली दी गयी। यदि कुछ राजनैतिक लोग किसी स्थान पर मंच से सरेआम माइक से चिल्ला चिल्ला कर प्रधानमंत्री की मृत माँ को गाली दे लेते हैं, तो यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि चुनाव जीतने के बाद वे क्या करेंगे।

यह समझने में किसी को परेशानी नहीं होगी कि उन अभद्र लोगों को यह साहस कहाँ से मिला होगा कि वे मंच से देश के बड़े नेता को गाली दे लें। यकीनन उन्हें राहुल से शक्ति मिली होगी। आजकल जैसी भाषा वे बोल रहे हैं, उस से बस एक कदम आगे खड़े हो गए उनके समर्थक…
मैं समझ नहीं पाता, किसी को प्रधानमंत्री से इतनी अधिक घृणा क्यों है। वे यूँ ही तो नहीं आ गए उस पद पर….? संवैधानिक तरीके से चुन कर आये हैं। जिस तरह आपको अधिकार है कि आप राहुल या तेजस्वी को वोट कर सकते हैं, वैसे ही शेष लोगों को भी अधिकार है कि वे नरेंद्र मोदी को वोट करें।
आप चुने हुए प्रधान को गाली देते हैं, उनके समर्थकों को अंधभक्त कह कर गाली देते हैं, और उसके बाद आपका दावा है कि आप संविधान की रक्षा कर रहे हैं….? मात्र दस साल सत्ता के बाहर रहे तो आपकी यह दशा हो गयी कि आप मंच से गन्दी गन्दी गालियां देने दिलाने लगे, यही है आपका संविधान के प्रति प्रेम? यही है आपका लोकतांत्रिक व्यवहार?????
इस घटना का सबसे दुखद पक्ष यह है कि उस गालीबाज से उसकी पार्टी कोई प्रश्न तक नहीं करेगी। उसे डांटा भी नहीं जाएगा, बल्कि उसे शाबाशी दी जाएगी और सम्भवतः उसका पार्टी में प्रमोशन भी हो जाय… मात्र पचहत्तर वर्ष होते होते हमारे लोकतंत्र की यह दशा हो गयी…
मैं सोच रहा हूँ, दरभंगा के उस मंच से जब लगातार गाली दी जा रही थी तो किसी का भी ईगो हर्ट नहीं हुआ? किसी को भी यह अभद्रता नहीं चुभी ? मण्डन मिश्र की धरा जो आदिशंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित करने के विशिष्टताबोध से गौरवांवित होती रही है, उसके पास अब केवल गालियां बची हैं? या फिर बाहरी घुसपैठियों से भरते जा रहे उस क्षेत्र में मिथिला का मूल चरित्र कहीं खोता चला जा रहा है……?
जो भी है, दुखद है, भयावह है…
बाकी क्रिया पर प्रसन्न होने वालों, प्रतिक्रिया आपको भी दुख देगी. इसलिए क्रिया पर ही दुखी होइये। जो हुआ है वह बहुत बुरा है ।
आलेख- सर्वेश कुमार तिवारी पटना

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